मुसीबत बने प्रत्याशी, खत्म नहीं हो रहा कांग्रेस नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला
Lok sabha Election 2024 भले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान बेहद आक्रामक दिख रहे हों लेकिन वह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश नहीं भर पा रहे हैं। इसका एक कारण गठबंधन के नाम पर अपने पुराने गढ़ों में भी अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ना है। इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था।
मतदान का तीसरा चरण करीब आ गया, लेकिन कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने या फिर चुनाव लड़ने से इन्कार करने का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। गत दिवस एक ओर जहां दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने अन्य कांग्रेसी नेताओं संग भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली, वहीं पुरी से कांग्रेस प्रत्याशी सुचारिता महंती ने यह कहते हुए टिकट लौटा दिया कि पार्टी चुनाव लड़ने के लिए धन नहीं दे रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके क्षेत्र में ओडिशा विधानसभा चुनावों के लिए कमजोर उम्मीदवार उतारे गए हैं। वह चुनाव लड़ने से पीछे हटने वाली दूसरी उम्मीदवार हैं। इसके पहले इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। इसके और पहले सूरत में कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन रद हो गया था, क्योंकि उनके प्रस्तावकों के हस्ताक्षर फर्जी पाए गए थे।
पहले तो कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी का नामांकन रद होने के लिए भाजपा पर आरोप लगाए, लेकिन बाद में उसी प्रत्याशी को उसके संदिग्ध आचरण के कारण निलंबित कर दिया। राजस्थान के बांसवाड़ा के मामले को भी नहीं भूला जा सकता। वहां कांग्रेस को अपने ही प्रत्याशी को हराने की अपील करनी पड़ी, क्योंकि अंत समय में पार्टी ने दूसरे दल के उम्मीदवार को समर्थन देना तय किया। इस तरह के मामले केवल यही नहीं बताते कि कांग्रेस उपयुक्त प्रत्याशियों का चयन करने में नाकाम है, बल्कि यह भी इंगित करते हैं कि उसके पास अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने और अपने कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करने की कोई ठोस रणनीति नहीं है।
भले ही राहुल गांधी चुनाव प्रचार के दौरान बेहद आक्रामक दिख रहे हों, लेकिन वह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश नहीं भर पा रहे हैं। इसका एक कारण गठबंधन के नाम पर अपने पुराने गढ़ों में भी अपनी राजनीतिक जमीन छोड़ना है। किसी और यहां तक कि कांग्रेसजनों के लिए भी यह समझना कठिन है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी से समझौता करने से पार्टी को क्या हासिल होने वाला है?
इस बार गांधी परिवार दिल्ली में उस आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को वोट देगा, जिसने उसे रसातल में पहुंचाया। राहुल गांधी का अमेठी के बजाय रायबरेली से चुनाव लड़ना भी कांग्रेस की दिशाहीनता का सूचक है। यह हास्यास्पद है कि गांधी परिवार के करीबी राहुल के अमेठी से चुनाव न लड़ने के फैसले को यह कहकर मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं कि पार्टी ने स्मृति इरानी का महत्व कम कर दिया। क्या सच यह नहीं कि कांग्रेस ने अमेठी से स्मृति इरानी की जीत सुनिश्चित करने का काम किया है? इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कांग्रेस कई राज्यों में बेमन से चुनाव लड़ रही है। आखिर क्या कारण है कि राहुल या प्रियंका ने अभी तक बंगाल का दौरा नहीं किया है?