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Vinayak Chaturthi 2024: वैशाख माह की विनायक चतुर्थी पर करें इस स्तोत्र का पाठ, बिना बाधा पूरे होंगे सभी काम

पंचांग के अनुसार प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस तिथि को भगवान गणेश की आराधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसे में आप बप्पा की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए वैशाख माह में आने वाली विनायक चतुर्थी पर गणेश संकटनाशन स्तोत्र का पाठ करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

By Suman Saini Edited By: Suman Saini Published: Wed, 08 May 2024 06:36 PM (IST)Updated: Wed, 08 May 2024 06:36 PM (IST)
Vinayak Chaturthi 2024 विनायक चतुर्थी पर करें इस स्तोत्र का पाठ।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Vaisakh Vinayak Chaturthi 2024: हिंदू धर्म में गणपति जी की विघ्नहर्ता के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि वह अपने साधकों के सभी कष्ट हर लेते हैं। ऐसे में आप भी अपने जीवन को कष्टों से मुक्त करने के लिए विनायक चतुर्थी पर गणेश जी की विधि-विधान से पूजा कर सकते हैं। आइए पढ़ते हैं गणेश जी की पूजा विधि और कृपा प्राप्ति का स्तोत्र

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विनायक चतुर्थी का मुहूर्त (Chaturthi Shubh Muhurat)

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 11 मई को दोपहर 02 बजकर 50 मिनट पर हो रही है। साथ ही, चतुर्थी तिथि का समापन 12 मई को, दोपहर 02 बजकर 03 मिनट पर होने जा रहा है। ऐसे में 11 मई, शनिवार के दिन विनायक चतुर्थी मनाई जाएगी। इस दौरान पूजा का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा -

पूजा का मुहूर्त - सुबह 10 बजकर 57 मिनट से 01 बजकर 39 मिनट तक।

पूजा विधि (Ganesh Puja Vidhi)

विनायक चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घर के मंदिर में एक चौकी रखकर उसपर हरे रंग का कपड़ा बिछाएं। इसके बाद गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अब प्रतिमा के सामने घी का दीप जलाएं और गणपति जी को गंगाजल से अभिषेक करें।

बप्पा को पुष्प, दूर्वा घास, सिंदूर आदि अर्पित करें। भोग के रूप में मोदक या लड्डू अर्पित करें अंत में गणेश जी की आरती करें। विशेष कृपा प्राप्ति के लिए गणेश जी के मंत्र और गणेश संकटनाशन स्तोत्र का भी पाठ करें।

गणेश संकटनाशन स्तोत्र (Ganesh Sankatnashan Stotra)

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।

भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।

तृतीयंकृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रंचतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमंच षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णतथाष्टकम्।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तुविनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तुगजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभतेविद्यांधनार्थी लभतेधनम्।

पुत्रार्थी लभतेपुत्रान्मोक्षार्थी लभतेगतिम्।।6।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलंलभेत्।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभतेनात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।

तस्य विद्या भवेत्सर्वागणेशस्य प्रसादत:।।8।। ॥

इति श्रीनारदपुराणेसंकष्टनाशनंगणेशस्तोत्रंसम्पूर्णम्॥

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डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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