Lok sabha Election 2024: सुनीता केजरीवाल से कल्पना सोरेन तक, जब दिग्गज नेताओं की पत्नियों ने संभाला सियासी मोर्चा
Lok Sabha Election 2024 पत्नियां या फिर कहें महिलाएं किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी लेने से पीछे नहीं हटती हैं फिर चाहे वह पति की गैरमौजूदगी में सियासी मोर्चा संभालना हो या परिवार की विरासत संभालना वह हर चुनौती का डटकर सामना करती आई हैं। भारतीय राजनीति में भी ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जहां पत्नी अपने पति या फिर परिवार की सियासत को संभाल रही हैं। पढ़ें रिपोर्ट....
चुनाव डेस्क, नई दिल्ली। इतिहास गवाह है कि पति पर जब-जब विपत्ति आई है, तब-तब उनकी पत्नियां उनके सामने ढाल बनकर खड़ी हुई हैं, फिर चाहे वह राजनीति का मैदान ही क्यों न हो। भारतीय राजनीति में भी ऐसी पत्नियां हैं, जिन्होंने अपने पति की गैरमौजूदगी में उनके सियासी मोर्चे को न सिर्फ संभाला बल्कि अपनी काबिलियत के दम पर नारी शक्ति का लोहा भी मनवाया।
इस लोकसभा चुनाव में भी कई बड़े नेताओं की पत्नियां सियासी मैदान में उतरी हैं, इनमें से कुछ परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं, तो कुछ अपने पति पर आए संकट को अपनी मजबूती का हथियार बनाकर राजनीतिक संघर्ष में जुट गई हैं।
सुनीता केजरीवाल
लोकसभा चुनाव से ऐन पहले जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ईडी ने गिरफ्तार किया, तब उनकी पार्टी गहरे संकट में थी। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, राज्यसभा सांसद संजय सिंह समेत पार्टी के कई बड़े नेता पहले से जेल में थे। ऐसे में पार्टी और कार्यकर्ताओं के सामने संकट था कि बड़े नेताओं की गैरमौजूदगी में चुनाव कैसे लड़ेंगे।
ऐसे मुश्किल समय में अब तक राजनीतिक परिदृश्य से दूर रहीं सुनीता केजरीवाल ने मोर्चा संभाला और पार्टी के मुखिया की तरह जिम्मेदारी उठाई। उन्होंने जेल में बंद अरविंद केजरीवाल का संदेश भी लोगों को पढ़कर सुनाया। अब लोकसभा चुनाव के रण में भी वह पार्टी के लिए योध्दा की तरह मैदान में उतर गई हैं और लगातार रोड शो औऱ रैलियों के माध्यम से अभियान में जुटी हुई हैं।
कल्पना सोरेन
आम आदमी पार्टी की तरह झारखंड में भी सत्तारूढ़ दल झारखंड मुक्ति मोर्चा पर बड़ा संकट आया, जब पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भ्रष्टाचार के एक मामले में जेल हुई। इसके बाद पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में राजनीति से दूर रहने वाली हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन आगे आईं और झामुमो और सोरेन परिवार की राजनीतिक विरासत आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया।
हेमंत सोरेन के जेल जाने से पहले उनकी जगह कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा भी थी। हालांकि बाद में चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन पति की गैरमौजूदगी में कल्पना ने भी सियासी लड़ाई लड़ने का फैसला किया।
उन्होंने लगातार रैलियों और सभाओं में हेमंत सोरन की गिरफ्तारी का मुद्दा उठाया और जनता से भावनात्मक तौर पर जुड़ने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने भाजपा पर हेमंत सोरेन को निशाना बनाने का आरोप भी लगाया। अब वह चुनावी लड़ाई में भी उतर चुकी हैं और गांडेय विधानसभा से आईएनडीआईए प्रत्याशी के तौर पर उपचुनाव लड़ रही हैं।
डिंपल यादव
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के साथ डिंपल यादव भी मुलायम सिंह यादव की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। मुलायम सिंह के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट से डिंपल ने 2022 में उपचुनाव लड़ा था और जीती थीं। अब वह दोबारा से इस सीट से मैदान में हैं।
इससे पहले डिंपल यादव कन्नोज से भी दो बार सांसद रह चुकी हैं। हालांकि 2019 में उन्हें इस सीट से हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में उनके सामने विरासत बचाने और बनाए रखने की अग्नि परीक्षा है, जिसमें खरा उतरने के लिए वह दिन-रात जुटी हुई हैं।
राबड़ी देवी
पति पर आए सियासी संकट के समय उसकी विरासत संभालने और उसे आगे बढ़ाने का सबसे उदाहरण हैं राबड़ी देवी। वह भले ही अब चुनावी लड़ाई से दूर हो चुकी हैं, लेकिन बिहार की राजनीति में वह अपनी अमिट छाप छोड़ चुकी हैं। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को जब चारा घोटाले में जेल जाना पड़ा तो राबड़ी देवी को वह अपना राजनीतिक उत्तराधिकार चुनकर गए।
वह बिहार की मुख्यमंत्री बनने वाली पहली महिला हैं और 1997 से लेकर 2005 तक तीन बार इस पद पर रहीं। कम पढ़ा-लिखा होने और कोई सियासी अनुभव न होने के कारण उस वक्त उनके मुख्यमंत्री बनाए जाने का मजाक भी उड़ाया गया था, लेकिन उन्होंने कई सालों तक सरकार चलाकर अपनी राजनीतिक कुशलता साबित की थी।
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