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बननी थी एतिहासिक धरोहर, बन गया मरूस्थल

भोजपुर। बाबू कुंवर सिंह की ऐतिहासिक नगरी जगदीशपुर में सात बड़े-बड़े तालाब हैं। झझरीया त

By Edited By: Updated: Mon, 09 May 2016 03:05 AM (IST)
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भोजपुर। बाबू कुंवर सिंह की ऐतिहासिक नगरी जगदीशपुर में सात बड़े-बड़े तालाब हैं। झझरीया तालाब(कुंवर तालाब), पोस्ट आफिस तालाब, शिव जी तालाब, राजा के तालाब, पूरना तालाब, दयाराम के तालाब, दूधनाथ मंदिर तालाब जिसका निर्माण बाबू वीर कुंवर सिंह व उनके पूर्वजों द्वारा करवाया गया था। ताकि ये तालाब जल सुविधा के साथ-साथ सामाजिक, सास्कृतिक व धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र बन सके, इसीलिए तालाबों की नगरी भी जगदीशपुर को कहा जाता है। लेकिन सभी तालाब आज सरकार की उपेक्षा के कारण बदहाली के कगार पर है।

पानी के अभाव में सभी तालाब मरुभूमि बन गये हैं। इनमें एक महत्वपूर्ण तालाब झझरीया तालाब है जो काफी ऐतिहासिक तालाब है।

जगदीशपुर स्थित बाबू वीर कुंवर सिंह का ऐतिहासिक तालाब झझरीया पोखरा(कुंवर तालाब) सरकार की उपेक्षा के कारण आज अस्तित्व खोने के कगार पर है। पूरा तालाब आज रेत बन चुका है इतने बड़े तालाब में एक बूंद पानी नहीं है। तालाब के अंदर गंदगी व बड़े-बड़े घास इसकी बदहाली को बया कर रही है। कभी पानी से लबालब रहने वाला यह तालाब समाज व सरकार की उदासीनता से इसे सूखने पर विवश कर दिया है।

झझरीया तालाब का महत्व:

झझरीया तालाब का अपना एक इतिहास है। इस तालाब का निर्माण 1826 से 1850 के बीच बाबू वीर कुंवर सिंह ने करवाया था। जिसका सौन्दर्यीकरण भी उन्होंने किया था। तब तालाब के चारो तरफ झांझरनुमा चादर की तरह दीवाल का निर्माण कराया गया था जो काफी आकर्षक हुआ करता था व कलाकृतियों को दर्शाता था। आज तालाब के दक्षिण पूर्व दिशा में बचे कुछ इसके अवशेषो को देखा जा सकता है। बाबू कुंवर सिंह तालाब निर्माण के साथ इसके ठीक सामने एक शिवमंदिर भी बनवाये थे जिसमें वे तालाब में स्नान के बाद इसी शिवमंदिर (जो अब नगरपालिका है) में पूजा अर्चना करते थे। विशेष तौर पर शिवरात्रि व अन्य धार्मिक उत्सव पर तालाब के चादरनुमा दीवारों पर जो छोटे-छोटे खिड़कीनुमा छेदों पर दीया जलाया जाता था।

लेफ्टिनेंट जनरल एस.के.सिन्हा ने भी अपनी पुस्तक में की है चर्चा:

लेफ्टिनेंट जनरल एस.के.सिन्हा (पूर्व राज्यपाल असम व काश्मीर) ने अपनी पुस्तक वीर कुंवर सिंह 1857 के महायोद्धा सहित अन्य इतिहासकारो ने भी अपनी किताबो में लिखा हैं कि 11 अगस्त 1857 को मेजर आयर ने वीर कुंवर सिंह का मकान व धार्मिक स्थल शिवमंदिर को भी ध्वस्त कर दिया था जिसका विधिवत रिपोर्ट मेजर आयर ने अपने उच्चाधिकारियों को दिया था। यही कारण है कि इस तालाब की महत्ता काफी बढ़ जाती है।

अपने हीं कर रहे नजरअंदाज:

इसके बावजूद भी आज झझरीया तालाब सरकार व प्रशासन की उदासीनता के कारण मरूभूमि में तब्दील होकर अस्तित्व खोने के कगार पर है। हजारों लोगों को पानी का स्रोत पहुंचाने वाला यह तालाब खुद एक-एक बूंद पानी का मोहताज है। हालांकि कई सरकारी एजेंसियों ने तालाब की सफाई, सौंदर्यीकरण, मरम्मतीकरण के नाम पर लाखों रुपये की निकासी कर राशि का बंदरबांट कर दिया लेकिन तालाब की स्थिति लगातार बदहाल होते जा रही है।

कहते हैं लोग:

जगदीशपुर नगर पालिका के पूर्व उपाध्यक्ष कुंवर बीरेन्द्र कुमार सिंह, अरशद वारिस खान, जगरनाथ केशरी की माने तो यह तालाब धरती के गर्भ में इतना पानी रिसा देता था कि पूरे नगर का भू-जलस्तर हमेशा चढ़ा रहता था। लेकिन इसके सूखने के साथ ही पानी का जल सतह काफी नीचे गया।

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