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थैला में कार्यालय कागज पर विद्यालय

नवादा। सरकार सूबे में शिक्षा पर करोड़ों-अरबों खर्च कर सु²ढ़ एवं गुणवत्ता शिक्षा का ढ़ो

By Edited By: Updated: Wed, 13 Jan 2016 08:37 PM (IST)
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नवादा। सरकार सूबे में शिक्षा पर करोड़ों-अरबों खर्च कर सु²ढ़ एवं गुणवत्ता शिक्षा का ढ़ोल पीट रही हो पंरतु सच पकरीबरावां प्रखंड के बुधौली पंचायत की नवसृजित विद्यालय तरहरा में नहीं दिखता। वर्ष 2010 से विद्यालय की स्थापना के बाद कभी भी शिक्षक विद्यालय पहुंचते ही नहीं हैं। कोई अधिकारी भी हाल लेने के लिए गांव नहीं पहुंचते हैं। आजाद भारत के आजाद नागरिक कहलाने वाले तरहरा गांव के लोग अपने बच्चों के लिए कुछ करने और कराने का सपना दिल में संजोकर हर दिन शिक्षकों का आने का इंतजार करते रहते हैं, पर नहीं पहुंचते हैं शिक्षक। जी हां चौकिए नहीं, यह सच है कि तरहरा नवसृजित विद्यालय के शिक्षक कई महीनों में एक दिन थौला में कुछ पंजी लेकर आते है, ताड़ के पेड़ के नीचे बैठते हैं फिर वहीं से लौट जाते हैं। अपना भवन नहीं है सो खुले में स्कूल चलता है। जहां स्कूल चलता है वहां एक चुल्हा बना हुआ है जो आजतक जला भी नहीं है। जो शिक्षक कभी कभार पहुंचते हैं घंटे दो घंटा में वे चल देते हैं। फिर बच्चे इस इंतजार में मायूस हो जाते हैं, कि अब क्या पता कब आयेगें गुरूजी। जिले में तो वैसे कई नवसृजित विद्यालय हैं जहॉ भवन के अभाव में बच्चों की पढ़ाई आसमान के नीचे और पेड़ के छांव में होती है। लेकिन पकरीवरावां प्रखंड अर्नगत बुधौली पंचायत के तरहरा गांव का नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में जहां वच्चों के लिये न तो भवन है और शिक्षकों के लिये एक कमरा है। आजतक विद्यालय के बच्चे मध्याह्न भोजन का स्वाद नहीं चख पाये हैं। विद्यालय प्रधान अनिल कुमार इनदिनों प्रखंड के बीआरसी में पदस्थापित हैं। उनके स्थान पर विद्यालय का प्रभार शिक्षिका रिया राय पर है । गांव की बनावट ऐसी है कि पहुंचने का कोई सुगम मार्ग नहीं है। जिसके कारण विद्यालय में कार्यरत शिक्षकों को परेशानी होती है। सभी शिक्षक निश्चिन्त होकर फरार रहते हैं क्योंकि इस विद्यालय तक कोई पदाधिकारी निरीक्षण करने पहुंच ही नहीं पाते हैं। विद्यालय प्रधान के अनुसार मध्याह्न भोजन प्रतिदिन विद्यालय में बनता है परन्तु बच्चों के अभिभावक इंकार करते हैं। ग्रामीण कहते हैं कि न शिक्षक आते हैं और न ही मध्याह्नन भोजन बनता है। अभिभावकों ने कहा कि 15 अगस्त को झंडा फहराने के बाद आज तक कोई शिक्षक गांव नहीं आये हैं। वैसे भोजन बनाने के लिये गांव के बाहर खलिहान में एक चुल्हा का निर्माण ग्रामीणों के सहयोग से कराया गया है परन्तु चुल्हे की स्थिति से लगता है कि आज तक उस पर कभी खाना नहीं बना है। ग्रामीणों ने कहा कि मध्याह्न भेाजन मिले नहीं मिले लेकिन अगर हमारे बच्चों को शिक्षक पढ़ा ही दें तो वह काफी है। सुदूरवर्ती गांव में पैदल जाने का भी मार्ग नहीं है। ग्रामीण अपनी बदहाली पर रो रहे हैं। गांव में किसी प्रकार की सरकारी योजनाएं कार्यान्वित नहीं हुई है। बरसात के दिनों में तो हमेशा अघोषित छुट्टी रहती है। विद्यालय में कुल छ: शिक्षक और शिक्षिकाएं है तथा नामांकित छात्र मात्र 135 हैं। सोचने बाली बात यह है कि नवसृजित विद्यालय में या किसी भी प्राथमिक विद्यालय में 40 बच्चों पर एक शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। इस स्कूल में छ़ह शिक्षकों पर कम से कम 240 छात्र होने चाहिए। गांव में ग्रामीणों के अनुसार बच्चों की वास्तिवक संख्या नामांकित संख्या से बहुत कम है। शिक्षक नियुक्ति में भी काफी हेरफेर की बू आ रही है। आखिर किस आधार पर बिना भवन और छात्र की संख्या के बावजूद विद्यालय में छ: शिक्षक की नियुक्ति की गयी है। विद्यालय प्रधान छात्र उपस्थिति पंजी से लेकर शिक्षक उपस्थिति पंजी तथा विभिन्न संबंधित कागजात अपने थैले में लेकर चलते हैं। पाठशाला का जगह खुले आसमान के नीचे है। इस संबंध में विद्यालय प्रधानाध्यापक अनिल कुमार ने बताया कि भवन निर्माण के लिये जमीन उपलब्ध है परन्तु राशि के अभाव में निर्माण नहीं हो पा रहा है। जिससे बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी एवं प्रखंड विकास पदाधिकारी गांव में किसी भी पदाधिकारी का आगमन यहां नहीं हुआ है। शिक्षा के अधिकार कानून के मायने यहां बदल गए हैं।

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