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सभी आरोपी हाईकोर्ट से बरी

By Edited By: Updated: Thu, 10 Oct 2013 04:35 AM (IST)
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पटना : पटना हाईकोर्ट ने प्रदेश के सबसे बड़े नरसंहार (लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार) के सभी 26 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने इनके विरुद्ध सजा लायक साक्ष्य नहीं पाया। इनमें दो अब इस दुनिया में नहीं हैं। एक फरार हैं। एक दिसम्बर 1997 की रात लक्ष्मणपुर बाथे (अरवल) गांव में 58 लोग मारे गए थे। मारे गए लोगों में दो से लेकर आठ वर्ष के 16 बच्चे, 27 महिलाएं व बूढ़े भी शामिल थे। निचली अदालत, यानी पटना सिविल कोर्ट के एडीजे विजय प्रकाश मिश्रा ने 7 अप्रैल 2010 को 16 को फांसी व 10 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट ने इसे 'रेयर आफ दी रेयरेस्ट' माना था।

बहरहाल, बुधवार को पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीएन सिन्हा और न्यायमूर्ति एके लाल की खंडपीठ ने इन सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

जिन लोगों को फांसी की सजा से मुक्त किया गया है, वे हैं-गिरजा सिंह, सुरेन्द्र सिंह, अशोक सिंह, गोपाल शरण सिंह, बालेश्वर सिंह, द्वारिका सिंह, बिजेन्द्र सिंह, नवल सिंह, बलिराम सिंह, नन्दु सिंह, शत्रुधन सिंह, नन्द सिंह, प्रमोद सिंह, राम केवल शर्मा , धर्मा सिंह और शिव मोहन शर्मा। इनमें गिरिजा सिंह व शिवमोहन शर्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं। धर्मा सिंह फरार बताया जाता है। जो उम्रकैद की सजा से बरी किए गए हैं, वे हैं-अशोक शर्मा, बबलू शर्मा, मिथिलेश शर्मा, धरीक्षण सिंह, चन्देश्वर सिंह, नवीन कुमार, रविन्द्र सिंह, सुरेन्द्र सिंह, सुनील कुमार और प्रमोद सिंह। इन सभी को निचली अदालत ने सजा सुनाई थी। इनमें अधिकतर बाथे, कामता व चन्दा गांव के निवासी हैं।

दर्ज प्राथमिकी के मुताबिक रणवीर सेना के करीब दो सौ लोगों ने लक्ष्मणपुर बाथे गांव में घुसकर 58 लोगों को मार डाला था। गांव में करीब तीन घंटे तक खूनी कारनामा चला। यह बारा नरसंहार का बदला बताया गया था। बारा में 1992 में 37 लोगों की हत्या हुई थी। पुलिस ने बाथे नरसंहार के 11 वर्ष बाद 46 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। बाद के दिनों में इनमें 19 बरी कर दिए गए थे। मामले में ट्रायल कोर्ट में अभियोजन के 117 गवाह व बचाव पक्ष के 152 गवाहों ने गवाही दी। पटना हाईकोर्ट के आदेश से यह मामला 1999 में जहानाबाद कोर्ट से पटना सिविल कोर्ट में ट्रायल के लिये आया था।

इस बीच महाधिवक्ता राम बालक महतो ने पूछे जाने पर कहा कि फैसले का अध्ययन करने के बाद राज्य सरकार कानूनी सलाह लेगी। इसके बाद इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया जाएगा।

आज फैसला सुनाते वक्त पटना हाईकोर्ट खंडपीठ की टिप्पणी

''ऐसा किसी भी प्रत्यक्षदर्शी ने नहीं कहा है कि घटना उसके सामने घटित हुई। अदालत में काफी कमजोर साक्ष्य प्रस्तुत किया गया। साक्ष्य के आधार पर किसी को फांसी या उम्रकैद नहीं दी जा सकती। इस मामले में निष्पक्ष और त्वरित गति से साक्ष्य नहीं जुटाया गया।''

-न्यायाधीश वीएन सिन्हा व एके लाल

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निचली अदालत के जज ने तब कहा था ..

''यह घटना बड़ी दर्दनाक है। घटना घटित करने के समय आरोपियों ने 2 से लेकर 8 वर्ष के बच्चों तक को भी नहीं छोड़ा। असहाय व गरीब वर्ग के लोगों की हत्या की गयी। आरोपियों के पास दया नाम की चीज नहीं थी। चार से लेकर नौ गवाहों ने अदालत में एक ही आरोपी की पहचान की है। सजा इस तरह की होनी चाहिये कि भविष्य में इस तरह के अपराध करने में लोग डरें।''

-विजय प्रकाश मिश्रा, एडीजे

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