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Bihar Politics: करीबी दोस्त से हाथ मिलाकर लालू ने चला भविष्य का दांव, एक साथ कई फायदे के मूड में RJD सुप्रीमो

Bihar News 15 साल पहले लालू प्रसाद और रंजन यादव की दोस्ती सियासी वजह से टूटी थी। दोस्ती टूटने के बाद रंजन यादव से ही लालू प्रसाद को चुनाव में मात भी मिली। 2009 में रंजन से पराजित होने के बाद लालू प्रसाद कभी कोई चुनाव नहीं लड़ पाए। लेकिन एक बार फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर बड़ा दांव चल दिया।

By Sunil Raj Edited By: Sanjeev Kumar Published: Fri, 10 May 2024 04:08 PM (IST)Updated: Fri, 10 May 2024 04:08 PM (IST)
लालू ने करीबी दोस्त से हाथ मिलाकर चल दी चाल (जागरण)

सुनील राज, पटना। Bihar Political News: तकरीबन डेढ़ दशक पहले लालू प्रसाद और रंजन यादव की दोस्ती टूटी थी। दोस्ती टूटने के बाद रंजन यादव से ही लालू प्रसाद को चुनाव में मात भी मिली। 2009 में रंजन से पराजित होने के बाद लालू प्रसाद (Lalu Yadav) कभी कोई चुनाव नहीं लड़ पाए। लेकिन अब अपनी बेटी मीसा के लिए जीत की राह आसान बनाने के लिए लालू ने  पुराने गिले शिकवे को भूल एक बार फिर रंजन यादव से फिर दोस्ती कर ली है। जिसके बाद राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा है कि इस दोस्ती में दूर की सोच है।

लालू ने चल दी बड़ी चाल

पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर लालू प्रसाद एक दशक से लालू यादव अपनी बेटी डा. मीसा भारती की जीत का जोर लगा रहे हैं। पर वे पाटलिपुत्र के यादवों को साध नहीं पाए। यादव वोट 15 वर्ष पहले लालू प्रसाद से जो छिटका आज तक दूर है।

रंजन यादव के आने के बाद लालू के हाथ थोड़े मजबूत जरूर हुए हैं और भविष्य में छिटके हुए यादवों को एकजुट करने में मदद करेंगे। इतना ही नहीं 2025 के विधानसभा चुनाव में भी रंजन यादव कारगर साबित हो सकते हैं।  पार्टी में इस बात की चर्चा है कि अब लालू यादव  अपने खास दोस्त रंजन यादव, रीत लाल यादव, भाई वीरेंद्र, और  के साथ मिलकर रामकृपाल के यादव वोट में चौ-तरफा सेंधमारी करेंगे।

पाटलिपुत्र सीट का दिलचस्प इतिहास, खुद हार चुके लालू

बिहार की 40 लोकसभा सीटों में पाटलिपुत्र सीट का अपना ही महत्व है। हालांकि इस सीट का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं। नए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई पाटलिपुत्र सीट पर 2009 पर हुआ पहला ही चुनाव काफी दिलचस्प था। पहला मुकाबला लालू प्रसाद और उनके परम मित्र रंजन यादव के बीच हुआ। पहली बार ही पाटलिपुत्र संसदीय सीट पर हुए मुकाबले में लालू प्रसाद अपने मित्र और जदयू उम्मीदवार रंजन यादव से पराजित हो गए। 2014 तक लालू पर चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध लग चुका था, लेकिन वे पाटलिपुत्र सीट पर मित्र रंजन यादव से मिली पराजय भूल नहीं पाए थे।

इस बार रामकृपाल और मीसा के बीच मुकाबला

लिहाजा पाटलिपुत्र सीट पर जीत के लिए उन्होंने अपनी बेटी डा. मीसा को उम्मीदवार बना दिया। लेकिन लालू प्रसाद का फिर इस सीट से झटका लगा। उनकी पार्टी के पुराने और वफादार नेता रामकृपाल उनकी राह का रोड़ा बन गए। हालांकि भतीजी (मीसा) ने चाचा (रामकृपाल) से उनके लिए सीट छोडऩे का आग्रह तक किया लेकिन बात नहीं बनी। 2014 के बाद 2019 में भी लालू प्रसाद अपनी बेटी मीसा को जीत नहीं दिला पाए। अब एक बार फिर इस सीट पर चाचा (रामकृपाल) और भतीजी (मीसा) के बीच मुकाबला है।

पाटलिपुत्र में रंजन यादव की ठीक ठाक पकड़

पाटलिपुत्र क्षेत्र में रंजन यादव की अपनी ही साख है। इस क्षेत्र में यादव वोट पर उनकी पकड़ भी है। लालू प्रसाद, रीतलाल, भाई वीरेंद्र और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं को साथ लेकर यादव वोट में सेंधमारी करेंगे और इसके अगुआ बनेंगे रंजन यादव। पाटलिपुत्र में यादव वोटर करीब चार लाख हैं।

दूसरे नंबर पर करीब तीन लाख भूमिहार, पौने दो लाख के करीब मुस्लिम और इतने ही ब्राह्मण वोट भी हैं। जबकि दलित मतदाता 1.40 लाख होंगे। लालू प्रसाद दूर की सोच रखते हैं और देख रहे हैं कि रंजन के साथ के फायदे ही फायदे हैं। लालू प्रसाद की यह रणनीति चुनाव में कितनी कारगर होगी यह तो समय बताएगा। पर लोगों की बीच यह चर्चा जरूर है कि क्या लालू प्रसाद और रंजन की दोबारा दोस्ती मीसा को जीत दिला पाएगी?

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