Buxar Lok Sabha Election: बक्सर में कांटे का मुकाबला, मिथिलेश तिवारी और सुधाकर सिंह को अपनों से खतरा
बक्सर सीट पर वैसे तो मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है लेकिन निर्दलीय आनंद मिश्रा पूर्व मंत्री ददन पहलवान के अलावा बसपा के अनिल कुमार ने भाजपा और राजद के उम्मीदवारों को परेशान कर दिया है। साफ कहें दोनों गठबंधन के उम्मीदवारों को अपनों से खतरा है और मुकाबला गैरों से करना है। दोनों को अपने ही वोट बैंक में सेंधमारी का डर सता रहा है।
दीनानाथ साहनी, बक्सर। Buxar Lok Sabha Seat महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर में जातीय गोलबंदी चरम पर है। इसकी तस्वीर आरा-बक्सर फोरलेन के ब्रह्मपुर से दिखनी लगती है। किसी से बात करें वो जातीय समीकरण का गणित समझा देगा। खास बात यह कि बक्सर में एक बड़ी आबादी खुद को वाराणसी से कनेक्ट करके भी देख रही है जहां से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं।
बस, यही कनेक्शन एनडीए के भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी के लिए जीत का आसरा है। भाजपा के तमाम स्थानीय नेता अपने उम्मीदवार को साथ लेकर जनता के बीच घूम रहे हैं और नरेन्द्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं। समझा रहे हैं- प्रधानमंत्री पड़ोस से ही हैं ।
मिथिलेश तिवारी के सामने कई चुनौतियां
इसके बावजूद, भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी के सामने चुनौतियां कम नहीं। उन्हें भाजपा के आधार वोटों को एकजुट रखने में पसीना छूट रहा है। पूर्व आइपीएस आनंद मिश्रा, जो ब्राह्मण समाज से हैं और स्थानीय जनता में प्रभाव रखते हैं, निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर कर भाजपा के आधार वोटों में सेंध लगाने में जुटे हैं।
कमोबेश यही चुनौतियां राजद उम्मीदवार सुधाकर सिंह के सामने है, जिन्हें निर्दलीय ददन पहलवान के लड़ाई में आने से राजद के आधार वोटों में टूट का खतरा है। यह भी कि मतदान बाद छपरा की हिंसा का कनेक्शन भी राजद उम्मीदवार को स्वजातीय यानी राजपूत वोट को विभाजित करने का संदेश देने लगा है। वोटरों का एक वर्ग इन्हें भी बाहरी ही मानता है।
ग्रामीण इलाके में ज्यादातर वोटर अभी बोलचाल में खुल नहीं रहे। वो हवा का रुख देख रहे हैं। आम धारणा है कि राजनीति से जुड़े लोग इधर-उधर की बात करके आम लोगों को बरगला देते हैं। लगता है कि आम लोगों ने राजनीतिज्ञों से यह अदा सीख ली है। उनसे सवाल कीजिए- वोट किसे देंगे? जवाब मिलता है- किसी न किसी को दे ही देंगे।
आरा-बक्सर फोरलेन के बगल में गरदहा खुर्द गांव में नीम के पेड़ की छांव में बैठे ग्रामीण से चुनाव पर चर्चा होती है। शैलेश कुमार नाराजगी जताते कहते हैं- दोनों प्रमुख उम्मीदवार बाहरी हैं। चुनाव बाद दिखेंगे नहीं। यही नाराजगी वहां बैठे अन्य लोग ने जताई। हां, निर्दलीय आनंद मिश्रा के प्रति यह कहकर सहानुभूति भी जताई कि भाजपा उन्हें टिकट का भरोसा दिया और फिर धोखा। मोदी जी के नाम पर वोट देंगे या नहीं देंगे- यह तय होगा वोटिंग के रोज।
यहां के धोबी घाट के निवासी जानेमाने समाजसेवी और एक्टिविस्ट शिवप्रकाश राय से मुलाकात होती है। उन्होंने बताया- बक्सर के लोगों को केवल किसी राजनीतिक सभा या रैली के दौरान ही यहां हवाई अड्डे का पता चल पाता है। हवाई अड्डा की यह जमीन अंग्रेजों के जमाने में ही अधिसूचित कर दी गई थी। विकास के सवाल पर उन्होंने कहा- जो भी जीतकर गया उसी छल किया। लोग ईलाज कराने बनारस जाते हैं या पटना। अश्विनी चौबे ने बक्सर के बदले भागलपुर को अस्पताल दे दिया।
सेवानिवृत्त शिक्षक रामेश्वर पाठक ने कहा- हर बार बाहर के उम्मीदवार ही बक्सर की जनता पर थोप देते हैं। मोदी जी के नाम पर वोट लेकर जीत भी जाते हैं। यह सब कब तक? उनके संग बैठे रामदास मिश्र ने मोदी लहर के सवाल पर कहा- लहर कहां है। देख नहीं रहे वोटिंग के प्रति कोई उत्साह नही है लोगों में।
वोटबैंक में सेंधमारी का डर
वैसे तो मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है, लेकिन निर्दलीय आनंद मिश्रा, पूर्व मंत्री ददन पहलवान के अलावा बसपा के अनिल कुमार ने भाजपा और राजद के उम्मीदवारों को परेशान कर दिया है। साफ कहें दोनों गठबंधन के उम्मीदवारों को अपनों से खतरा है और मुकाबला गैरों से करना है। दोनों को अपने ही वोट बैंक में सेंधमारी का डर सता रहा है।
भाजपा ने बक्सर से वर्ष 2014 और 2019 में जीत हासिल करने वाले अश्विनी चौबे का टिकट काट कर गोपालंगज के पूर्व विधायक मिथिलेश तिवारी को उम्मीदवार बनाया है। अश्विनी चौबे खुलकर अपनी नाराजगी तो नहीं जता पाए पर अब चुनाव क्षेत्र में भी सक्रिय नहीं दिख रहे। इससे कई अर्थ निकाले जा रहे हैं।
अश्विनी चौबे के मौन से भाजपा उम्मीदवार की परेशानी बढ़ गई है। भाजपा के स्थानीय नेताओं में बाहरी उम्मीदवार देने से नाराजगी पहले है। जीत के लिए मिथिलेश तिवारी को मोदी की गारंटी व नीतीश कुमार के सुशासन की उम्मीद हौसलाअफजाई कर रहा है। ऐसा स्थानीय भाजपा नेता अरविंद शर्मा ने कहा। जबकि राजद के सुधाकर सिंह के लिए भी दुश्वारियां कम नहीं हैं।
सुधाकर सिंह अपने पिता जगदानंद सिंह की विरासत संभालने चुनावी जंग में उतरे हैं। उनका खेल बिगाड़ने में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के करीबी रहे ददन पहलवान निर्दलीय डटे हैं। कछ इलाके में ददन पहलवान का अपना प्रभाव है। वहीं बसपा के अनिल कुमार भी वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में हैं। मोटे तौर पर कहिए तो भाजपा व राजद की उम्मीद विरोधी वोटों के बिखराव रोकने के साथ-साथ अपने-अपने कुनबे के बचाने पर टिकी है।
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