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Bihar Politics : सच हुआ एग्जिट पोल तो बिहार में आएगा सियासी भूचाल, टूट सकता है तेजस्वी का CM बनने का सपना

तात्कालिक नफा-नुकसान से आगे बिहार की राजनीति पर लोकसभा चुनाव के परिणाम का दीर्घकालिक प्रभाव तय है। इस परिणाम के साथ ही लगभग डेढ़ वर्ष बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की पटकथा का लेखन भी शुरू हो जाएगा। एक्जिट पोल अगर सही निकले तो महागठबंधन को अथाह दुख देने वाला यह लगातार तीसरा चुनाव होगा। ऐसे में उसके अस्तित्व-नेतृत्व पर संकट होगा।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Shashank Shekhar Published: Sun, 02 Jun 2024 08:21 PM (IST)Updated: Sun, 02 Jun 2024 08:21 PM (IST)
सच हुआ एग्जिट पोल तो बिहार में आएगा सियासी भूचाल, टूट सकता है तेजस्वी का CM बनने का सपना

विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। तात्कालिक नफा-नुकसान से आगे बिहार की राजनीति पर लोकसभा चुनाव के परिणाम का दीर्घकालिक प्रभाव तय है। इस परिणाम के साथ ही लगभग डेढ़ वर्ष बाद होने वाले विधानसभा चुनाव की पटकथा का लेखन भी शुरू हो जाएगा।

दोनों गठबंधनों के स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं होने पर भी उपलब्धि व प्रदर्शन के आधार पर बड़े भाई की भूमिका का पुनर्निर्धारण भी संभावित है। स्थापित चेहरों की क्षमता का पुनर्आकलन होगा तो साख-धाक के लिए जूझने वालों की कूवत की परख भी हो जाएगी।

एक्जिट पोल अगर सही निकले तो महागठबंधन को अथाह दुख देने वाला यह लगातार तीसरा चुनाव होगा। ऐसे में उसके अस्तित्व-नेतृत्व पर संकट होगा। अगर अनुमान गलत हुए तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के लिए बिहार की सत्ता को निर्बाध रखने की चुनौती होगी।

परिणाम महागठबंधन के लिए महत्वपूर्ण

कोई दो राय नहीं कि इस बार का परिणाम महागठबंधन के लिए तुलनात्मक रूप से अधिक महत्वपूर्ण है। कसौटी पर तेजस्वी यादव की नेतृत्व-कला और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की इच्छा वाला नया सामाजिक समीकरण है।

माय (मुस्लिम-यादव) के साथ कुशवाहा समाज को जोड़कर उन्होंने राजद के जनाधार में विस्तार की एक महीन चाल चली थी। उसकी पैमाइश के साथ कांग्रेस के जनाधार और मतों के हस्तांतरण की क्षमता की परख होनी है तो वाम दलों की बुनियाद का आकलन भी। मुकेश सहनी के सानिध्य का फलाफल भी मिलना है। इनके आधार मतों में सेंधमारी से ही बिहार में राजग को विस्तार मिला है।

महागठबंधन में सीटों के साथ टिकट वितरण से लेकर प्रचार की कमान तय करने तक सारे निर्णयों के सूत्रधार लालू रहे हैं और तेजस्वी नायक की भूमिका में। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब स्ट्राइक रेट पर राजद अतिशय मुखर रहा है। तब सफलता का श्रेय उसी ने लिया था।

इस बार विफल होने पर हार का ठीकरा भी उसी के सिर फूटना है। ऐसे में असीम धैर्य की अपेक्षा होगी, जिसकी राजद नेतृत्व से मात्र कल्पना की जा सकती है। सारण और पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में मतदान के दौरान लगे आरोप इसके प्रमाण हैं। उन दोनों क्षेत्रों में लालू की पुत्रियां क्रमश: रोहिणी आचार्य और मीसा भारती राजद की प्रत्याशी थीं। सारण में लालू कैंप किए रहे, जबकि पाटलिपुत्र में उन्होंने रोड-शो किया था।

हाशिये के वोट मायने के 

एक्जिट पोल ने राजद को तात्कालिक तौर पर बहुत बेचैन किया है और आगे अपने खेमे को सहेज रखने की कठिन चुनौती है। इस चुनौती को नजरअंदाज करने पर उसकी चौहद्दी माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण तक ही सिमटकर रह जानी है। दूसरी तरफ राजग से अति पिछड़ा वर्ग का अभी पूर्णतया मोह-भंग नहीं हुआ।

सवर्णों का सानिध्य उसे पूर्ववत बताया जा रहा, जबकि वंचित और महावंचित के बीच खींची गई मोटी रेखा भी मलिन हो चुकी है। अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित आठ सीटों के परिणाम इसकी तस्दीक करेंगे।

श्रेय की होड़ में कुलबुलाएंगे साझीदार 

परिणाम अनुकूल रहने पर भाजपा अपने भविष्य के हिसाब से सहयोगियों को साधने-बांधने का प्रयास कर सकती है, क्योंकि राजग का चुनाव अभियान ही पूर्णतया नरेन्द्र मोदी पर केंद्रित रहा है। ऐसे में भाजपा का एक धड़ा फ्रंट फुट पर खेलने के लिए मचल सकता है। सुशील मोदी के देहांत के बाद कोई अवरोधक भी नहीं रहा।

श्रेय की होड़ मचेगी तो उसमें दबने-पिछड़ने वाले साझीदार कुछ तो कुलबुलाएंगे ही। तब गया और काराकाट का दर्द भी उखड़ आएगा। कोई संशय नहीं कि इसी बहाने विशेष राज्य के दर्जा जैसे मुर्दा हो चुके मुद्दे भी जिंदा हो जाएं।

विपरीत परिणाम पर मचेगा हड़कंप 

सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण स्थिति एक्जिट पोल के विपरीत परिणाम पर होगी। तब राजग में उलट-पुलट की आशंका बढ़ेगी। वैसे में भाजपा के लिए बिहार में अपने बूते सत्ता की कामना को अभी दबाए रखना होगा। दूसरी तरफ महागठबंधन, विशेषकर राजद को उस अति-उत्साहित समाज को नियंत्रित रखना होगा, जो दूसरे के घेरे में घुसपैठ तक अपनी स्वतंत्रता मानता है।

इस समाज ने अतीत में राजद का परचम लहराया है, लेकिन संभावना की राह में रोड़े भी यही समाज अटका रहा। कोई अतिरिक्त उपाय निकाले बिना इस नव-संप्रभु वर्ग के साथ सामाजिक न्याय की आस वाली दूसरी जातियों को जोड़ पाना संभव नहीं।

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