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Bank Loan in Bihar: बैंकों से लोन लेना होगा बेहद आसान, वित्त मंत्री ने दे दिया सिंगल विंडो सिस्टम बनाने का आदेश

Personal Loan in Bihar बिहार सरकार आम आदमी तक बैंकों लोन की पहुंच आसान करने की कवायद में जुटी हुई है। इसी संदर्भ में वित्त मंत्री ने बैंकों को ऋण वितरण के लिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाने का निर्देश दिया है। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में कार्यरत बैंक राज्य के प्रति अपने उत्तरदायित्वों से मुकर नहीं सकते हैं।

By Vikash Chandra Pandey Edited By: Mohit Tripathi Published: Sat, 15 Jun 2024 11:04 AM (IST)Updated: Sat, 15 Jun 2024 11:04 AM (IST)
बैंकों को ऋण वितरण के लिए सिंगल विंडो सिस्टम बनाने का निर्देश। (सांकेतिक फोटो)

राज्य ब्यूरो, पटना। कमतर प्रदर्शन को भी आंकड़ों की बाजीगरी से अपनी सराहनीय उपलब्धि बताने वाले बैंकों को सरकार ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि बिहार के प्रति अपने उत्तरदायित्व से वे मुकर नहीं सकते हैं। राज्य में कार्यरत बैंकों की शाखाओं में जमा धन या तो सरकार का है या फिर नागरिकों का।

स्पष्ट है कि उस धन पर पहला हक बिहार का है, लेकिन बैंक यहां अपेक्षा के अनुरूप ऋण का वितरण नहीं कर रहे। किसानों, पशुपालकों व मत्स्यपालकों के बीच ऋण वितरण में सर्वाधिक उदासीनता है। इस कारण राज्य का साख-जमा अनुपात (सीडी रेशियो) आज भी राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।

शुक्रवार को राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री सम्राट चौधरी ने सीडी रेशियो बढ़ाने का निर्देश देते हुए कहा कि ऋण वितरण के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की व्यवस्था की जाए, ताकि बार-बार बैंकों के चक्कर न लगाने पड़ें। इसके साथ ही ऋण वितरण की प्रक्रिया को और सुलभ बनाते हुए भुगतान के लिए एक समय-सीमा तय की जाए।

राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की यह संयुक्त बैठक (88वीं एवं 89वीं) थी। उसमें सम्राट ने कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य इत्यादि क्षेत्रों में पूंजी की उपलब्धता बढ़ाने के साथ बैंकों को रोजगार के नए अवसर पैदा करने का निर्देश दिया।

सम्राट चौधरी ने बड़े बैंकों से आग्रह किया कि वे सीडी रेशियो बढ़ाने में अपेक्षित योगदान दें। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिहार के बैंकों में जमा राशि की तुलना में ऋण वितरण नहीं हो रहा, जबकि बैंकों का एनपीए (गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां) 11.5 प्रतिशत से घटकर 7.54 प्रतिशत हो गया है।

बिहार का सीडी रेशियो 57.5 प्रतिशत पर पहुंच गया है, फिर भी यह राष्ट्रीय औसत (86.57 प्रतिशत) से काफी कम है। वार्षिक ऋण लक्ष्य (एसीपी) में गिरावट चिंताजनक है।

दूध उत्पादन में गुजरात और मछली उत्पादन में आंध्र प्रदेश से बिहार इसलिए पिछड़ रहा, क्योंकि यहां के पशुपालकों व मत्स्यपालकों को बैंक अपेक्षित सहयोग नहीं कर रहे।

उन्होंने कहा कि बैठक में जिन मुद्दों पर चर्चा हुई है, उसका परिणाम अगली बैठक में मिलना चाहिए। अभी डबल इंजन की सरकार है जिससे बैंकों को पूरा सहयोग मिलेगा।

स्वरोजगार के लिए ऋण देने का आग्रह

वन, पर्यावरण एवं सहकारिता मंत्री डॉ. प्रेम कुमार ने जिला एवं प्रखंड स्तर पर बैंकों के साथ बैठक पर जोर दिया। ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित युवकों-युवतियों के 4561 आवेदनों में से मात्र 1417 को ही स्वीकृति देकर ऋण उपलब्ध कराने पर नाराजगी जताई।

उन्होंने शेष 2862 प्रशिक्षित आवेदकों को भी स्वरोजगार शुरू करने के लिए ऋण देने का अनुरोध किया। गरीबों के लिए घर बनाने में भी बैंकों से सहायता उपलब्ध कराने को कहा।

पशुपालन एवं मत्स्य संसाधन मंत्री रेणु देवी ने कहा कि बिहार मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर हो चुका है। इसमें बैंकों का कोई विशेष सहयोग नहीं रहा। बैंक सहयोग करें तो पशुपालन एवं मत्स्य उत्पादन में बिहार बड़ा निर्यातक हो सकता है।

नगर विकास मंत्री नितिन नवीन ने फुटपाथी दुकानदारों को ऋण उपलब्ध कराने और शहरी क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूहों को आर्थिक सहायता देने का आग्रह किया।

कृषि क्षेत्र की उपेक्षा से क्षुब्ध हुए मंगल

बैंकों की हीला-हवाली के कारण बैठक में कृषि मंत्री मंगल पांडेय क्षुब्ध रहे। तल्ख तेवर के साथ उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र की अनदेखी उचित नहीं।

लगभग दो तिहाई जनसंख्या आज भी कृषि पर आश्रित है। ऐसे में कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाए बगैर बिहार का विकास नहीं हो सकता। बैंक इसमें कोताही बरत रहे।

वर्ष 2023-24 के लिए निर्धारित लक्ष्य के विरुद्ध मात्र 27 प्रतिशत किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का वितरण हुआ। उन्होंने कहा कि इस औसत से यदि बिहार में ऋण वितरण होता रहा तो राष्ट्रीय औसत के निकट पहुंचने में वर्षों लग जाएंगे।

बैंकों को उद्यमियों के पास जाना होगा

रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय निदेशक सुजीत कुमार अरविंद ने कहा कि अब समय आ गया है कि ऋण देने के लिए बैंक उद्यमियों के पास जाए। उन्होंने राज्य के सीडी रेशियो को लेकर चिंता जताई और कहा कि इसे बढ़ाने की आवश्यकता है। प्राथमिक क्षेत्र की तुलना में गैर-प्राथमिक क्षेत्र को अधिक ऋण देने पर प्रश्न उठाते हुए उन्होंने कहा कि बिहार में कृषि क्षेत्र में ऋण को लेकर बैंकों को और गंभीर होना चाहिए।

विकास आयुक्त ने बैंकों को दिखाया आईना

दक्षिण-पश्चिम के राज्यों के सीडी रेशियो का हवाला देते हुए विकास आयुक्त चैतन्य प्रसाद ने एसएलबीसी की बैठक में बैंकों को आईना दिखा दिया।

उन्होंने कहा कि दक्षिण-पश्चिम के राज्यों का सीडी रेशियो सौ प्रतिशत से अधिक है, तो बिहार का 58.71 प्रतिशत ही क्यों है। आंध्र प्रदेश का सीडी रेशियो 157 प्रतिशत, तेलंगना का 126 प्रतिशत, तमिलनाडु का 144 प्रतिशत और महाराष्ट्र का 101 प्रतिशत है।

दूसरी तरफ बिहार का सीडी रेशियो 58.71 प्रतिशत ही है, जबकि राज्य की गैर निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) में भी लगातार कमी आ रही है। विकास आयुक्त ने कहा कि बैंकों को बिहार के विकास के लिए आगे आना होगा।

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