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Patna News: पटना के डाकबंगला चौराहा की कहानी 131 वर्ष पुरानी, ऐसे हुआ था नामकरण; पढ़ें इस जगह का इतिहास

Patna News डाक बंगला चौराहा पटना के मध्य भाग में एक प्रमुख व्यावसायिक और मनोरंजन केंद्र है। यह बेली रोड और फ्रेजर रोड के सेंटर में स्थित है। यह पटना शहर के सबसे व्यस्त पैदल यात्री और ऑटोमोबाइल हब में से एक है। लोक नायक जय प्रकाश कमर्शियल कॉम्प्लेक्स क्रॉस रोड के दक्षिण पश्चिम कोने पर स्थित है जो कि पटना के ऐतिहासिक डाक बंगले का पूर्ववर्ती स्थान था।

By Jitendra Kumar Edited By: Sanjeev Kumar Updated: Fri, 12 Jul 2024 03:49 PM (IST)
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पटना के डाकबंगला चौराहा की कहानी (जागरण)

जितेंद्र कुमार, पटना। Patna News: लोकनायक जयप्रकाश भवन, यह डाकबंगला चौराहा पर है। इसमें कई कार्यालय हैं, दुकानें भी हैं। शहर का बहुत ही प्रसिद्ध स्थल। हर कोई जानता है, पर जिस बहुमंजिले भवन में आज जा रहे हैं, वह कभी सुंदर सा डाकबंगला हुआ करता था। चारों ओर पेड़, खुली जगह। डाकबंगला चौराहा लोगों की जुबान पर चढ़ गया। इसके पीछे की भी कहानी है।

ऐसे हुआ था डाकबंगला चौराहा का नामाकरण

पहले यह बांकीपुर डाकबंगला हुआ करता था। एक गांव ही था। आगे चलकर जब पटना बिहार की राजधानी बना तो बांकीपुर उसका एक क्षेत्र भर रह गया। तो जिस डाकबंगला चौराहे को आज देख रहे, वह बांकीपुर हुआ करता था। डाकबंगला चौराहा का नामकरण भी कविगुरु के नाम पर रवींद्र चौक हो गया है। यह और बात है कि लोग आज भी डाकबंगला चौराहा ही बोलते हैं।

इस चौराहे की कहानी के 131 वर्ष हो गए

इस डाक बंगला चौराहे (Dak Bungalow Chauraha) की कहानी को 131 वर्ष हो गए। वर्ष 1885 में नागरिक सेवाओं के लिए बिहार एंड ओडिसा लोकल सेल्फ गवर्मेंट एक्ट बना। हालांकि, बिहार अभी अलग प्रांत नहीं बना था। बंगाल का ही हिस्सा था। नागरिक सेवाओं के लिए शहरी क्षेत्र में नगरपालिका और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए जिला परिषद का उदय हुआ।

1893 में यहीं पर डाकबंगला का निर्माण कराया गया और यह डाकबंगला चौराहे के रूप में प्रसिद्ध हो गया। 20वीं सदी के आठवें दशक तक नेताओं की बैठकी इसी डाकबंगला में होती रही। 1984 में इसे तोड़कर छह मंजिला व्यावसायिक परिसर बनाया गया। यह जिला परिषद के अधीन है।

ऐसे था पटना जिला परिषद का विस्तार

Patna News: पटना जिला परिषद का विस्तार पूरब में अंग क्षेत्र (पूर्व बिहार) की सीमा तो दक्षिण में मगध और पश्चिम में शाहाबाद की सीमा तक था। ब्रिटिशकाल से ही बख्तियारपुर से राजगीर और फतुहा से इस्लामपुर तक रेल सेवा पटना जिला परिषद के अधीन थी।

1982 तक जब गंगा पर गांधी सेतु का निर्माण पूरा नहीं हुआ था, तब तक नदी घाटों पर नाव परिचालन और सड़क परिवहन भी इसके जिम्मे रहा। बैलगाड़ी, तांगा, साइकिल सहित अन्य स्रोतों से मिलने वाले टैक्स से स्कूल, अस्पताल और जन सुरक्षा का कार्य जिला परिषद के अधीन था। डाकबंगला को तोड़कर जिस लोकनायक भवन का निर्माण किया गया, वहां निजी क्षेत्र की कंपनियों ने व्यावसायिक परिसर बनाया।

वाष्प इंजन रोड रोलर से ग्रामीण पथ निर्माण 

सड़कों के निर्माण के लिए वाष्प इंजन रोड रोलर लाया गया। दो साल पहले तक जिला अभियंता कार्यालय के सामने पड़े वाष्प इंजन रोड रोलर को संरक्षित किया गया है। खगौल डाकबंगला में भी ऐसे दो प्राचीन वाष्प इंजन रोड रोलर अभी भी हैं। वर्ष 1938 में पटना जिला परिषद का कार्यालय सह सभाकक्ष का निर्माण किया गया।

डच वास्तुकला से बनाए गए भवन में जिला अभियंता का कार्यालय हुआ करता था। लोकल सेल्फ गवर्मेंट कैडर के अभियंता, वैद्य, यूनानी चिकित्सक, डाकबंगला के खानसामा, भिश्ती, चौकीदार, रोड सरकार, दीवान जैसे पदधारक हुआ करते थे। पटना जिला अभियंता और जिला परिषद कार्यालय तोड़कर अब छह मंजिला नया कलेक्ट्रेट भवन बनाया जा रहा है।

1927 में अध्यक्ष को मिली थी कार

बात सन 1927 की है। आज की तरह चिकनी और चौड़ी सड़कें नहीं थीं, लेकिन जिला परिषद अध्यक्ष का क्षेत्र तीन सांसदों के क्षेत्र के बराबर हुआ करता था। जन सुविधाओं की निगरानी के लिए सुदूर गांवों तक पहुंचना आसान नहीं था। तत्कालीन जिला परिषद अध्यक्ष बी. गुरुसहाय लाल के नाम से कार का रजिस्ट्रेशन हुआ था। वे लंगरटोली मोहल्ला के रहने वाले थे।

हालांकि, 1928 में दीघा घाट निवासी सी. डेविड के नाम से भी माडल फिएट कार का रजिस्ट्रेशन हुआ। उसी साल दूसरी गाड़ी कदमकुआं निवासी एमएलए मदूद अहमद ने खरीदी। पटना जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजय कुमार कहते हैं कि परिषद की संपत्ति का सदुपयोग नहीं हो सका। इसके वैभवशाली इतिहास को संजोया नहीं जा सका। वर्तमान में भी बची हुई संपत्ति को विकसित कर बहुत कुछ किया जा सकता है।

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