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Manvi Madhu Kashyap: ताली बजाई-बधाई गाई और अखबार बांटे...बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा को ताने सुनाने वाले अब ठोकेंगे सलामी

जिसने बचपन से ही अपनी पहचान को लेकर भेदभाव सहा। समाज और रिश्तेदारों के तानों के डर से असली पहचान छिपाई। आर्थिक तंगी झेली। पिता का साया सिर से उठने के बाद घर की जिम्‍मेदारी भी संभाली। कभी समाज के ताने सुनने वाली मानवी मधु कश्‍यप अब लोगों के लिए मिसाल बन गई है। पढ़िए बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा की प्रेरित करने वाली कहानी...

By Deepti Mishra Edited By: Deepti Mishra Updated: Tue, 16 Jul 2024 02:28 PM (IST)
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बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा मानवी मधु कश्यप। जागरण ग्राफिक्‍स टीम

दीप्ति मिश्रा, पटना/नई दिल्‍ली। ''मां ने बेटे को जन्‍म दिया था। मैंने होश संभाला तो खुद को लड़की महसूस किया और समाज ने मुझे 'हिजड़ा, किन्नर, छक्का और कोथी' जैसे नाम दिए। दोहरी जिंदगी जीना मेरे वश में नहीं था और इसमें मेरा कोई कसूर भी नहीं था, लेकिन सम्मानजनक जिंदगी जीने का सपना देखना और उसे अपनी आइडेंटिटी के साथ साकार होते देखना मेरे वश में था। मेरे इस सपने को सरकार और गुरु दोनों का साथ मिला, उसी का नतीजा है कि मैं आज बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दरोगा बन पाई हूं।'' यह कहना है कि बांका जिले के पंजवारा गांव की हरने वाली मधु कश्यप का। आधार कार्ड में मानवी मधु कश्यप का यही नाम है। यहां पढ़िए बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा मानवी मधु कश्यप की कहानी, उन्‍हीं की जुबानी...

मैं मानवी मधु कश्‍यप, बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा बनी हूं। मैंने तो सिर्फ ताली न बजाने और भीख न मांगने की कसम खाकर परीक्षा की तैयारी शुरू की थी, तब मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि राज्य की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा होने का तमगा मिलेगा। यह तमगा मेरे लिए ताउम्र की उपलब्धि है, जिसकी खुशी मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती हूं।

सच कहूं तो यकीन नहीं हो रहा है कि मैंने परीक्षा पास कर ली और सब इंस्पेक्टर बन गई हूं। हालांकि, मेरी यह राह आसान नहीं रही। भीख मांगनी पड़ी, तालियां बजानी पड़ी और लोगों की हिकारत और दुत्कार सही। गांववालों के ताने सुने। खैर आज मैं खुश हूं। अब अपने सपनों का आकार थोड़ा और बड़ा कर लिया है। मैं यूपीएससी पास करके आईएएस अधिकारी बनना चाहती हूं।

परिवार के लोग आपकी पहचान से सहज थे या फिर नकार दिया?

मैं बांका जिले के पंजवारा गांव निवासी नरेंद्र प्रसाद सिंह और माला देवी की चौथी संतान हूं। दो भाई और बहन हैं, जिनकी शादी हो चुकी है। सात साल की उम्र से या फिर यूं कहिए कि मैंने जब से होश संभाला, तब से ही समझ गई थी कि मैं लड़का नहीं हूं। लोअर मिडिल क्‍लास में जन्मी तो परिवार का प्यार तो खूब मिला, लेकिन समाज के तानों का डर भी साथ में थमा दिया गया।

मेरी मां मेरी वास्तविक पहचान के बारे में जानती थी, लेकिन समाज के डर से उन्होंने कभी जाहिर नहीं किया। वह डरती रहीं कि लोग क्या कहेंगे। उनके बच्चे को प्रताड़ित किया जाएगा। वह अक्सर समझाती थी कि तुम्हें सजना-संवरना जो भी पसंद है, वो सब कमरे में करो। किसी के सामने नहीं। वरना परिवार की बहुत बेइज्जती होगी। तुम बड़े होकर कुछ अच्छा काम करना ताकि तुम्हारी पहचान शरीर से नहीं, बल्कि तुम्हारे काम से हो। हालांकि, पिता मेरी पहचान से कभी सहज नहीं रहे।

पढ़ाई-लिखाई में कोई दिक्कत तो नहीं आई?

मैंने पढ़ना चाहती थी तो घरवालों ने भी रोका नहीं। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई गांव के ही स्‍कूल एस एस हाई स्कूल पंजवारा से हुई। इसके बाद 12वीं की पढ़ाई सीएमडी कॉलेज से पूरी की। घर में आर्थिक तंगी चल रही थी। एक बार तो लगा कि आगे की पढ़ाई नहीं कर पाउंगी, लेकिन फिर गांव के एक शख्स से 1300 उधार दिए और सुबह-सुबह अखबार बांटने का काम भी दिया। तब जाकर 12वीं में दाखिला हो पाया था।

मैंने पूरे 5 साल घर-घर अखबार पहुंचाने का काम किया था। तब जाकर सीएमडी कॉलेज, बांका से 12वीं और तिलका मांझी विश्वविद्यालय भागलपुर से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसी बीच पापा नहीं रहे। पढ़ाई और घर की जिम्‍मेदारी एक साथ संभालना मुश्किल हो रहा थाा। दूसरी ओर मेरे शरीर में आ रहे बदलाव के चलते पंजवारा में जिंदगी हर दिन दूभर होती जा रही थी। ऐसे में ग्रेजुएशन के लास्ट ईयर में मैं घर बिहार छोड़कर अपनी बहन के पास आसनसोल चली गई।

जीजा जी रेलवे में सेवारत हैं। उन्होंने मेरी पढ़ाई में मेरा सहयोग किया। मैंने वहां रहकर एडीसीए और आईटीआई किया। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी। साथ ही गणित की कोचिंग ले ली ताकि मुझे कोई अच्छी नौकरी मिले और वो भी अपनी वास्तविक पहचान के साथ।

यहां शुरू हुआ मानवी मधु बनने का सफर

आसनसोल में रहने के दौरान मुझे कुछ मेरे जैसे दोस्त मिल गए। उनके साथ मैं बेंगलुरु चली गई। वहां अपने समुदाय के लोगों के साथ में वास्तविक पहचान के साथ रहने लगी। सजती-संवरती और लड़की की तरह तैयार होती। हालांकि, घरवालों को सच बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। घरवालों से कहा था- मैं बैंक में जॉब करने लगी हूं।

एक दिन मेरे गुरु ने मुझसे भीख मांगकर और बधाई गाकर पैसे कमाने का आदेश दे दिया। मैं उनके सामने रोई। गुहार लगाई कि घर का सारा काम कर लूंगी, लेकिन ये काम मत कराइए। गुरु ने कहा- ज्यादा लड़की मत बनो और ये बिल्‍कुल मत भूलो कि हम लोग हैं, हम लोग हिजड़े हैं और हमारा यह काम है। उस दिन बड़ा धक्‍का लगा। मन में आया कि जो महिलाएं बच्चे पैदा नहीं कर सकतीं, क्या वे महिला नहीं होतीं।

खैर, भीख मांगी। बधाइयां गाईं। इनसे जो धनराशि मिलती, उसमें से आधी गुरु को थमा देती और आधी अपनी सर्जरी के लिए बचा लेती। कोरोना महामारी आई तो समुदाय के लोग अपने-अपने घर चले गए। मेरा घर बहुत दूर था, इसलिए मैं वहीं रही।

दो वक्‍त खाने के लाले थे। जहां खाना बंटता, वहां घंटों लाइन में लगकर खाना मांगकर लाती, तब पेट भरता। लॉकडाउन खुला तो मैं दीदी-जीजा जी के पास आसनसोल लौट आई।

यहां से मिली सही राह

इसी दौरान, मुझे पता चला कि पटना के दानापुर में हमारे समुदाय के लिए गरिमा गृह (वन स्‍टॉप सेंटर) खुल गया है। यहां आकर रहने लगी। ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता और दोस्ताना संस्था चलाने वाली रेशमा प्रसाद नहीं चाहती थी कि कोई भी ट्रांसजेंडर बच्चा ताली बजाए या भीख मांगे। वो चाहती हैं कि सब पढ़ें-लिखें और सामान्‍य जिंदगी जिएं।

ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता और दोस्ताना संस्था चलाने वाली रेशमा प्रसाद के साथ मानवी। फाइल फोटो

जब मैं रेशमा प्रसाद से मिली, तभी मैंने कसम खाई कि कुछ भी हो जाए मैं न भीख मांगूंगी और ताली नहीं बजाऊंगी। मैंने दो साल गरिमा गृह में रहकर पढ़ाई की।

मानवी मधु बताती हैं, साल 2021 में कोचिंग के लिए कई इंस्‍टीट्यूट के चक्कर लगाए, लेकिन मेरी शारीरिक बनावट देखकर सबने हिकारत से देखते हुए मना कर दिया। रेशमा प्रसाद ने अदम्या अदिति गुरुकुल के गुरु डॉ. एम रहमान से बात की। रहमान सर ने मुझे न सिर्फ पढ़ाया, बल्कि फीस भी नहीं ली और किताब-कॉपी खरीदने के लिए पैसे भी दिए।

कोचिंग के लिए गरिमा गृह से सुबह 5 बजे निकलती और दोपहर में दो बजे पहुंचती। कभी रात की रोटी बच जाती तो उसे खा लेती और अगर नहीं बचती तो दो बजे तक भूखी रहती। जब बीपीएसएससी की परीक्षा में बैठी तो पहली बार में पास कर लिया और बिहार की पहली ट्रांसजेंडर दारोगा बन गई।

नीतीश की मदद से बन पाई मानवी

इसी बीच रेशमा प्रसाद ने मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार से मिलवाया। बिहार में सरकार ट्रांसजेंडरों को डेढ़ लाख रुपये की मदद राशि देती है। मुझे भी यह राशि मिली और कुछ रकम मेरे पास थी, जो मैंने बेंगलुरु में रहकर बचाई थी। इस तरह में अक्टूबर, 2022 में सर्जरी करवाकर पूरी तरह मानवी मधु कश्‍यप बन गई।

हालत ये थी कि करीब आठ महीने घर में किसी को बताया नहीं। वीडियो कॉल नहीं किया। एक साल बाद जब गांव गई तो गांववाले बोले- ''देखो, ये असली रूप में आ गया। जब हम कहते थे कि किन्नर है, छक्‍का है, तब तो मना करती थी। अब खुद ही देख लो।''

मां बहुत रोईं। मुझे भी बुरा लगा, तभी सोच लिया था कि अब घर तभी आऊंंगी, जब कुछ बनकर दिखाऊंंगी। सर्जरी के दौरान मैंने उत्पाद शुल्क विभाग की कॉन्स्टेबल भर्ती की लिखित परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन फिजिकल में 6 सेकंड की देरी हो गई, जिसके कारण सलेक्‍शन नहीं हुआ था।

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बिहार में मिलता है ट्रांसजेंडर आरक्षण

पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार को फरवरी 2021 में राज्य में कॉन्स्टेबल और दारोगा की भर्ती में ट्रांसजेंडर को आरक्षण सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। इसके बाद बिहार सरकार ने कोर्ट को जानकारी देते हुए कहा था कि कॉन्स्टेबल और दारोगा के प्रत्येक 500 पदों पर एक पद ट्रांसजेंडर समाज के लोगों के लिए आरक्षित किया जाएगा।

हाल ही में बिहार पुलिस अधीनस्थ सेवा आयोग का परीक्षा परिणाम (BPSSC Result) आया है। इस परीक्षा में दारोगा के सभी 1275 पदों के लिए चयन कर लिया गया। खास बात यह रही कि बिहार पुलिस में पहली बार तीन ट्रांसजेंडर भी दारोगा बने। इन तीन ट्रांसजेंडर में दो ट्रांसमैन और एक ट्रांसवुमन मानवी मधु भी दारोगा है।

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बता दें कि पिछले साल सितंबर में यह भर्ती निकाल गई थी। इसके बाद 17 दिसंबर 2023 को प्रीलिम्स, 25 फरवरी 2024 को मुख्य परीक्षा और 10 जून से 19 जून के बीच लिखित परीक्षा पास करने वाले अभ्यर्थियों का फिजिकल टेस्ट कराया गया। 9 जुलाई 2024 को अंतिम परिणाम घोषित जारी किया गया।

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(नोट: स्‍टोरी में  लिखे गए शब्‍द मानवी मधु ने जागरण न्‍यू मीडिया से बातचीत के दौरान इस्‍तेमाल किए हैं)