Bihar Congress: बिहार कांग्रेस में आलाकमान की पहल पर बदलाव की बयार, आगे बढ़ाए जा रहे नए चेहरे
Bihar Politics बिहार कांग्रेस में बदलाव की शुरुआत हो गई है। आलाकमान ने प्रदेश इकाई को चुनावी राजनीति के अनुकूल बनाने के लिए कदम उठाए हैं। युवा कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद अब छात्र और अल्पसंख्यक विभाग की कमान उन लोगों को सौंपी गई है जो आलाकमान के प्रति अधिक निष्ठावान हैं। इस बदलाव का मकसद पार्टी को मजबूत करना और आगामी चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करना है।
विकाश चन्द्र पाण्डेय, पटना। Bihar Politics: बिहार कांग्रेस (Bihar Congress) की जड़ों में चूंकि दीमक लगी है, इसलिए उपचार भी मिट्टी का होगा। अघोषित रूप से आलाकमान का यही निर्णय है। इसकी शुरुआत धीमी गति से हुई है, क्योंकि पिछले वर्षों में प्रदेश इकाई से मिले कड़वे अनुभव केंद्रीय नेतृत्व को आज भी कचोटते हैं।
ऐसे में बिना किसी विवाद और विघटन के संगठन को चुनावी राजनीति के अनुकूल बनाने का लक्ष्य है। इसके लिए व्यक्ति विशेष की पसंद को दरकिनार कर जुझारू चेहरे आगे किया जा रहा है।
युवा कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन से इसकी शुरुआत हुई और अब छात्र व अल्पसंख्यक विभाग की कमान उन लोगों को सौंपी जा चुकी है, जो आलाकमान के प्रति अधिक निष्ठावान हैं।
कांग्रेस प्रदेश समिति का गठन तक नहीं
बिहार (Bihar News) कांग्रेस में अंतर्विरोध ऐसा कि प्रदेश समिति का गठन तक नहीं हो पा रहा, जबकि अध्यक्ष के रूप में डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह के कार्यकाल के 20 माह पूरे हो चुके हैं।
उनसे पहले डॉ. मदन मोहन झा और कौकब कादरी का कार्यकाल भी बिना समिति वाला ही रहा। इस बीच विधानसभा और लोकसभा के तीन चुनाव संपन्न हो गए।
तीनों के परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे। ऐसे में दबी जुबान प्रदेश नेतृत्व की आलोचना हो रही है। अशोक चौधरी के कार्यकाल में भी कुछ ऐसी ही आलोचना होने लगी थी।
उसकी परिणति सुखद नहीं रही थी। इसीलिए आलाकमान आलोचकों से भी उसी अनुपात में दूरी बनाए हुए है, जितना प्रदेश इकाई को दूसरे हाथों में गिरवी रख देने की मंशा रखने वालों से। लोकसभा चुनाव के बाद संगठन में हो रही नियुक्तियां इसका स्पष्ट संकेत करती हैं।
सत्ता की हेराफेरी
पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इस वर्ष जनवरी में सत्ता की हेराफेरी में दो विधायकों (मुरारी गौतम, सिद्धार्थ सौरव) की बगावत को सांगठनिक प्रबंधन में कमी का परिणाम माना गया था।
उसके बाद लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट की चाह में दूसरे दलों से कटे-छंटे कई चेहरे कांग्रेस के तो हुए, लेकिन पहले से तपे-तपाए कई दिग्गजों को निराश होना पड़ा।
पप्पू यादव को लेकर हुए विवाद से स्पष्ट हो गया कि पटना से दिल्ली दूर है। उसी के बाद आलाकमान के कान खड़े हो गए। बहरहाल प्रदेश समिति के लिए पटना से भेजे गए नामों की सूची दिल्ली में धूल फांक रही है।
प्रदेश नेतृत्व की पसंद दरकिनार
इस बीच प्रदेश नेतृत्व की पसंद को दरकिनार कर भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) का प्रदेश अध्यक्ष जयशंकर प्रसाद को बना दिया गया, जो कन्हैया कुमार के चहेते हैं।
महागठबंधन में बेगूसराय पर बात नहीं बनने के कारण आलाकमान ने बुझे मन से कन्हैया को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मैदान में उतारा था। इमरान प्रतापगढ़ी की तरह कन्हैया को भी राहुल गांधी का प्रिय बताया जाता है।
पिछले सप्ताह शनिवार को ओमैर खान उर्फ टीका खान को अल्पसंख्यक विभाग का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जो इमरान प्रतापगढ़ी के करीबी हैं।
ओमैर भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के सहयात्री रहे हैं। चर्चा है कि जनाधार का ध्यान रखते हुए यह कड़ी अभी आगे बढ़ेगी।
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