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One Nation One Election पर क्या है नीतीश कुमार की सोच, पीएम मोदी के साथ या खिलाफ?

केंद्र सरकार ने एक देश एक चुनाव (One Nation One Election) के संबंध में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। मुख्यमंत्री सह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार आरंंभ से ही एक देश एक चुनाव की नीति के समर्थक रहे हैं। इस कदम से सुशासन की संरचना को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

By BHUWANESHWAR VATSYAYAN Edited By: Rajat Mourya Updated: Thu, 19 Sep 2024 09:25 PM (IST)
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बिहार CM नीतीश कुमार और पीएम नरेंद्र मोदी। फाइल फोटो
राज्य ब्यूरो, पटना। जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने गुरुवार को कहा कि हमें खुशी है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election) के संबंध में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली उच्चस्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। मुख्यमंत्री सह जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार आरंंभ से ही 'एक देश एक चुनाव' की नीति के समर्थक रहे हैं।

संजय झा ने कहा कि इसी वर्ष 17 फरवरी को वह दिल्ली में पार्टी के नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह के साथ पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति से मुलाकात की थी और 'वन नेशन वन इलेक्शन'  के संदर्भ में जदयू के नजरिये से संबंधित आधिकारिक ज्ञापन सौंपा था।

'एक देश एक चुनाव महत्वपूर्ण कदम होगा'

उसमें बताया गया था कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और जदयू (JDU) का मानना है कि सुशासन की संरचना को मजबूत करने की दिशा में 'एक देश एक चुनाव' एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इससे पहले, वर्ष 2018 में भी भारत के विधि आयोग द्वारा आमंत्रित सुझावों के जवाब में नीतीश कुमार और जदयू ने लोकसभा तथा विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की नीति को अपना समर्थन दिया था।

उन्होंने बताया कि विधि आयोग ने निर्वाचन विधियों में सुधार से संबंधित अपनी रिपोर्ट में 'वन नेशन वन इलेक्शन' की सिफारिश की थी। उस पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय समिति विचार कर रही थी। जदयू ने इस संदर्भ में देशभर में सीआईआई, फिक्की, एसोचैम सहित विभिन्न औद्योगिक, नागरिक एवं अन्य संगठनों के साथ हुए विमर्श में उभरी राय पर गंभीरता से विचार किया।

साथ ही, भारत में एक साथ चुनाव कराने के इतिहास को भी ध्यान में रखा। वर्ष 1947 में आजादी मिलने के बाद से लोकसभा और विधान सभाओं के चुनाव अधिकतर एक साथ आयोजित हुए थे लेकिन 1960 के दशक के अंतिम वर्षों से एक साथ चुनाव का सिलसिला विभिन्न कारणों से बाधित हो गया।

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