मातृ नवमी कल, दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध व होगा तर्पण; शुभ संयोग में 28 को मनेगा इंदिरा एकादशी का व्रत
मातृ नवमी के पावन अवसर पर हम अपनी दिवंगत माताओं दादी परदादी नानी और अन्य महिला पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस दिन हम उनके लिए श्राद्ध तर्पण और दान करते हैं साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं। माना जाता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे हमें आशीर्वाद देते हैं।
जागरण संवाददाता, पटना। पितृपक्ष के दौरान आश्विन कृष्ण नवमी में मातृ श्रद्धा को समर्पित मातृ नवमी 26 सितंबर गुरुवार को पुनर्वसु नक्षत्र व सिद्धि योग में मनाई जाएगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, जयद योग एवं सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग विद्यमान रहेगा। इस दिन परिवार में दिवंगत महिलाओं के श्राद्ध, तर्पण, दान व ब्राह्मण भोजन कराने का विधान है। मातृ नवमी को खास कर माता, दादी, परदादी तथा नानी, परनानी एवं वृद्ध परनानी इनमें दिवंगत नारी शक्ति के स्मरण व उनके निमित्त श्रद्धा भाव से पूजन किया जाएगा।
आदर पूर्वक किए गए श्राद्ध से पितरों की अनुकंपा मिलती है। घर परिवार में सकारात्मकता का वातावरण बना रहता है।ज्योतिष आचार्य पंडित राकेश झा ने बताया की पितृपक्ष में पिता, पितामह, प्रपितामह तथा मातृ पक्ष में माता, पितामही, प्रपितामही इसके अलावा नाना पक्ष में मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह वहीं नानी पक्ष में मातामाही, वृद्ध प्रमातामही के साथ-साथ गुरु व अन्य गोलोक वासी संबंधियों का गोत्र एवं नाम लेकर तर्पण व पिंडदान किया जाता है। तर्पण, पिंडदान व श्राद्ध कर्त्ता अपने तीन पुरखों का नाम व गोत्र के साथ उनकी तृप्ति हेतु तर्पण करते हैं।
शुभ संयोग में 28 को इंदिरा एकादशी
आश्विन कृष्ण एकादशी यानि इंदिरा एकादशी 28 सितंबर शनिवार को अश्लेषा नक्षत्र व सिद्ध योग में इंदिरा एकादशी का व्रत मनाया जाएगा। इसके अलावे इस दिन जयद् योग भी सुयोग बन रहा है । सनातन धर्म में इंदिरा एकादशी का खास महात्म्य होता है। इस एकादशी को दिवंगत साधु-संत, वैष्णव जनों का तर्पण व श्राद्ध किया जाएगा। सनातन धर्मावलंबी इस पावन दिन श्रीहरि विष्णु तथा सत्यनारायण स्वामी की विधि- विधान से पूजा-अर्चना करेंगे। एकादशी व्रत को करने से श्रद्धालु को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह एकादशी पापों को नष्ट व पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है। इंदिरा एकादशी का व्रत एवं इसकी कथा के श्रवण मात्र से व्यक्ति को वायपेय यज्ञ का पुण्य मिलता है। भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं इस एकादशी के महात्म्य का वर्णन किए हैं । पितृपक्ष में एकादशी या अमावस्या को ब्राह्मणों को शंख , चक्र एवं गदाधारी श्रीमहाविष्णु के रूप में उनको भोजन कराना एवं श्रद्धापूर्वक दान करने से परिवार में सुख-शान्ति बनी रहती है तथा वंशवृद्धि होती है
गजछाया योग में पितृ विसर्जन
आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से शुरू होकर दो अक्टूबर आश्विन कृष्ण अमावस्या को पितृ पक्ष का समापन होगा। एक अक्टूबर मंगलवार को पितृपक्ष का चतुर्दशी तिथि है, इसी दिन शस्त्रादि से मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों का श्राद्ध होगा। दो अक्टूबर बुधवार को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र व ब्रह्म योग में स्नान-दान सहित सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध एवं पितृ विसर्जन का महालया पर्व के रूप में संपन्न होगा।
इस दिन अमावस्या सूर्योदय से लेकर रात्रि 11:05 बजे तक है। ऐसे में सर्वपितृ तर्पण का पुनीत कार्य दो अक्टूबर बुधवार को करते हुए ब्राह्मण भोजन कराकर पितरों की विदाई की जाएगी।ये भी पढ़ें- Pitru Paksha 2024: आखिर गया में क्यों किया जाता है पिंडदान? प्रभु श्रीराम से भी जुड़ा है यह दिव्य स्थान
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