सभी प्रमुख दलों में कुछ विशेषज्ञ चुनाव पर पड़ने वाले प्रशांत किशोर के प्रभाव का आकलन करने के लिए तैनात किए गए हैं। वे उनकी प्रतिदिन की गतिविधियों पर नजर रखते हैं। शीर्ष नेतृत्व को रिपोर्ट करते हैं।
राजनीतिक दलों के बीच यह विमर्श शुरू हो गया है कि अगर पीके विधानसभा की सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतार देते हैं तो उनके दल पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अभी कहना मुश्किल है और स्वयं पीके भी चुनाव परिणाम को लेकर आश्वस्त नहीं हैं, लेकिन, आम लोगों के बीच जिस गंभीरता से उनकी चर्चा हो रही है, अगले विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
कुछ लोग उनकी तुलना 2020 के विधानसभा चुनाव में उतरी प्लूरल्स पार्टी से करते हैं। प्लूरल्स पार्टी मीडिया के विज्ञापनों के माध्यम से प्रकट हुई थी, चुनाव परिणाम के साथ विलीन हो गई। सच यह है कि प्लूरल्स पार्टी से तुलना करना पीके के साथ अन्याय है।
कोई उनसे असहमत हो सकता है, लेकिन भारत के विभिन्न राज्यों के चुनावों को प्रभावित करने की उनके अतीत की अनदेखी नहीं कर सकता है।
पीके से जन सुराज पार्टी, चुनावी रणनीति और सरकार बनी तो उसकी जन कल्याणकारी योजनाओं पर दैनिक जागरण के बिहार ब्यूरो प्रमुख अरुण अशेष ने विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश।
बिहार विधानसभा चुनाव के बाद प्रशांत किशोर कहां रहेंगे?
हम दो संभावनाओं को देख रहे हैं। पहली-जन सुराज पार्टी की भारी बहुमत से सरकार बनेगी। दूसरी-अगर परिणाम पक्ष में नहीं आया तो हमारी सीटें दहाईं आंकड़ा नहीं पार करेंगी। चार या पांच सीटों पर हम सिमट जाएंगे।
आपने इस आकलन का आधार क्या है? यदि आपकी पार्टी को बहुमत नहीं मिलती है तो आपके पास प्लान बी क्या है?
– हम दो वर्षों से आम लोगों के बीच घूम रहे हैं। हम उनसे कह रहे हैं कि हर बार दूसरे के लिए आपने वोट किया है। एक बार अपने लिए, अपनी संतानों के लिए वोट कीजिए। लोग इस तर्क से सहमत हो रहे हैं। यह अपील अगर मतदान के दिन तक लोगों के मन में बनी रही तो जन सुराज पार्टी की सीटों की गिनती नहीं हो पाएगी। लैंड स्लाइड विक्ट्री होगी। हां, अगर लोगों के मन में जाति और धर्म के नाम पर वोट देने की पुरानी प्रवृत्ति बनी रही तो हम आगे की लड़ाई की तैयारी में लग जाएंगे।
जाति और धर्म आधारित राजनीति को आप कैसे अपने पक्ष में मोड़ेंगे?
– हम मानते हैं कि जाति और धर्म बिहार की राजनीति के सच हैं, लेकिन यह भी तय है कि ये अंतिम सच नहीं हैं। अभी आपने लोकसभा चुनाव में देखा होगा। पार्टी से जुड़ी जातियों का भ्रम पूरी तरह टूट गया था। कुशवाहा और वैश्य जैसी जातियां एनडीए से जुड़ी मानी जाती थीं। वह एनडीए से अलग हो गईं। अत्यंत पिछड़ी जातियों के साथ भी ऐसा ही हुआ। बिहार विधानसभा चुनाव तक इस प्रवृत्ति में और बदलाव आएगा। हमें यह संभावना नजर आ रही है।
राजद के पास माय समीकरण है। भाजपा के पास हिंदू हैं। जदयू के पास अत्यंत पिछड़ी जातियां हैं। इस क्रम में पीके के पास क्या है?
– हमारे पास सभी जातियों का कुछ न कुछ वोट है। ऐसे समूहों का वोट है, जो पारंपरिक दलों के पाखंड से ऊब कर मतदान में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। हम किसी एक जाति पर केंद्रित नहीं हैं। सभी जातियों का वोट हमें मिलने जा रहा है। आप यादवों को राजद से जोड़ रहे हैं। हम भी मान रहे हैं, लेकिन यह नहीं कह सकते कि सौ प्रतिशत यादव राजद को ही वोट देंगे। उसमें से दो-चार प्रतिशत वोट हमारी पार्टी को मिल जाएगा तो बढ़त मिल जाएगी।
मुसलमान तो राजद से बंधे हुए हैं। उन्हें आप कैसे जोड़ेंगे?
– बीते 30 साल से मुसलमान लालू प्रसाद को छोड़कर किसी की नहीं सुन रहे थे। हमारी सुन रहे हैं। पटना में आयोजित पार्टी बैठक में बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल हुए थे। वे अभी हमको सुन रहे हैं। धीरे-धीरे हमारी नीतियों से सहमत भी हो जाएंगे। जन सुराज विधानसभा की 40 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार देगी। मुस्लिम वोटर भी बदलाव चाहते हैं। उनकी बेचैनी झलक रही है। कई मुस्लिम बहुल सीटों पर राजद की हार इसका प्रमाण है।
बिहार में लंबे समय से एनडीए की सरकार है। विकास का दावा भी है। सड़क-बिजली और कई अन्य मानकों पर आम लोग भी सहमत हैं कि विकास हुआ है। जन सुराज के पास विकास का वैकल्पिक माडल क्या है?
नाली और गलियों के निर्माण को विकास मत कहिए। हमारे पास ऐसे बिहार का माडल है, जो बेंगलुरु और चेन्नई से राज्य का मुकाबला कराएगा। यहां के लोग 10-12 हजार की नौकरियों के लिए दूसरे राज्यों में नहीं जाएंगे। इससे अधिक वेतन पर काम करने के लिए दूसरे राज्यों के लोग बिहार आएंगे।
हम कह रहे हैं कि भाजपा ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर का वादा किया था। वह पूरा हो गया। नीतीशजी ने सड़क और बिजली का वादा किया था। वह भी पूरा हो गया। हम लोगों से पूछ रहे हैं कि मंदिर, सड़क और बिजली के बाद आपके बच्चों को शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की सुविधा चाहिए या नहीं।
इस समय एनडीए और राजद के बीच सीधे मुकाबले की तस्वीर बन रही है। इसमें जसुपा की जगह कहां है?
– मुसलमान अगर हमारी तरफ आते हैं तो राजद कमजोर होगा। वैसी हालत में एनडीए और जन सुराज के बीच सीधा मुकाबला होगा। आप लोगों से संवाद कीजिए।
वे बताएंगे कि किसी दल के विरोध के नाम पर ही अमुक दल को वोट दे रहे हैं, क्योंकि उनके पास अब तक कोई विकल्प नहीं था। इसलिए लोग किसी दल को पराजित करने के ध्येय से मतदान कर रहे थे। इस बार हम विकल्प लेकर आए हैं। लोग अपनी सरकार बनाने के लिए वोट देंगे।
दूसरे दलों से अलग उम्मीदवार का चयन कैसे करेंगे?
– हम प्रयास करेंगे कि ऐसे लोगों को उम्मीदवार बनाएं, जो इससे पहले कभी चुनाव नहीं लड़े हैं। हम काबिल उम्मीदवार बनाएंगे। सूची जारी होते ही लोग कहने लगेंगे कि जन सुराज ने सचमुच सक्षम, ईमानदार और बेदाग उम्मीदवार उतारा है।
बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं। कोई भी दल सभी सीटों के लिए उम्मीदवार नहीं जुटा पाता है। आप इतने जिताऊ उम्मीदवार कहां से लाएंगे?
– हमारे पास हरेक विधानसभा क्षेत्र के लिए पांच-छह जिताऊ उम्मीदवारों की सूची तैयार है। हम इन्हें चुनाव से बहुत पहले जनता के बीच विचार के लिए प्रसारित करेंगे। फिर लोगों से मशविरा करेंगे, जिन्हें अधिक लोगों का समर्थन मिलेगा, उम्मीदवार बना देंगे। इस प्रक्रिया से जन सुराज के उम्मीदवारों की स्वीकार्यता बढ़ेगी। चुनाव आसान हो जाएगा। हम जनता को प्रतिनिधि वापसी का अधिकार भी देंगे। दो साल के कामकाज के मूल्यांकन के दौरान अगर कोई विधायक मानकों पर खरा नहीं उतरता है तो ऐसे विधायक को विस की सदस्यता से त्याग-पत्र देना होगा।
आप चुनावी जीत के प्रति इतने आश्वस्त कैसे हो सकते हैं?
– 2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम को याद कीजिए। सिर्फ दो सीट जीतकर नीतीश कुमार पस्त हो गए थे। यहां तक कि नैराश्य भाव में उन्होंने मुख्यमंत्री का पद तक छोड़ दिया था। उस दौर में हमने उनका साथ दिया। वह मुख्यमंत्री बने। आज तक पद पर हैं।
आपकी पार्टी में भी कई पस्त चेहरे हैं, उनका क्या उपयोग है?
– (हंसते हुए....) हमारे पास मसाला है। हम पस्त लोगों में मसाला भरेंगे, फुर्ती आ जाएगी।
आप कभी नीतीश के उत्तराधिकारी माने गए थे। चुनाव मैदान में उनका विरोध कैसे करेंगे?
– कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री से हमारी मुलाकात हुई थी। उसी दिन हमने तय किया था कि उनकी वर्तमान अवस्था को देखते हुए हम उन पर प्रहार नहीं करेंगे। हम वही कर रहे हैं। कह रहे हैं कि लंबी पारी के बाद उन्हें अवकाश ले लेना चाहिए। यदि वे स्वयं ऐसा नहीं करते हैं तो जनता उन्हें बिठा देगी। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अच्छी छवि रही है। काम भी अच्छा किया है, लेकिन समय आया तो जनता ने उन्हें पद से हटा दिया। हम उम्मीद करते हैं कि नीतीश कुमार के साथ भी कुछ वैसा ही होगा। बेशक लोग किसी को नायक समझ कर वोट देते हैं मगर जैसे ही वह यह समझ लेते हैं कि आपकी अवस्था नायकत्व करने की नहीं रह गई है तो आपको पद से हटा भी देते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि नीतीश कुमार के साथ भी कुछ वैसा ही होगा। लोग किसी को नायक समझ कर वोट देते हैं, मगर लोग जैसे ही यह समझ लेते हैं कि आपकी अवस्था नायकत्व करने की नहीं रह गई है तो पद से हटा भी देते हैं। लोग समझ जाते हैं कि इन्हें सत्ता मिल भी गई तो चला नहीं पाएंगे। दोयम दर्जे के नेता चलाएंगे। भ्रष्ट अधिकारी चलाएंगे। यह नवीन पटनायक के साथ हुआ। अगले चुनाव में नीतीश कुमार के साथ भी होगा। यह सबको पता है कि नीतीश कुमार की सरकार कौन लोग चला रहे हैं।
क्या जन सुराज पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाएगी?
– नहीं। जनसुराज और एनडीए के बीच सीधा मुकाबला होगा। राजद तीसरे नंबर पर चला जाएगा। एक बात और स्पष्ट कर दें कि हम किसी की बी टीम नहीं हैं। अगर भाजपा में जाना होता तो हम बहुत पहले उस पार्टी में चले गए होते। भाजपा का प्रस्ताव भी आया था। बिहार भाजपा में नेतृत्वकारी चेहरा नहीं है। अवसर मिल रहा था। हमने इन्कार कर दिया।
चुनाव महंगा होगा... धन का प्रबंध कैसे करेंगे?
– धन कोई समस्या नहीं है। हम जन सहयोग से धन जुटाएंगे। ऐसा होने पर सरकार पर भी किसी खास समूह के हित में नीतियां बनाने का दबाव नहीं रहेगा। सरकार की सभी नीतियां राज्यवासियों के हित में बनेंगी। गलत लोगों के धन से बनी सरकारें जनहित की योजनाएं नहीं बना सकती हैं।
यह देखा गया है कि लोग चुनाव के दिनों में पार्टी बनाते हैं। असफल होने पर राज्य से विदा हो जाते हैं। ऐसी नौबत आने पर पीके क्या करेंगे?
– मेरी उम्र अभी 45 साल है। मेरे पास राजनीति के लिए बहुत समय है। हम अगले चुनाव की तैयारी करेंगे। वैसे, मैं अपने अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि अगले साल नवंबर में राज्य में सत्ता परिवर्तन होगा। जन सुराज की सरकार बनेगी। हां, मुझे सरकार या संगठन में किसी पद की इच्छा नहीं है। और यह सिर्फ बयान नहीं है। इस वचन को लोग सरकार बनने के बाद भी देखेंगे।।
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