कभी घूम-घूम कर मांगा करते थे भीख, अब एक उपाय से चमक गई किस्मत; बिहार में तेजी से बढ़ रहा कारोबार
पटना में भीख मांगने वाले लोगों को मुख्यधारा से जोड़ने का सफल प्रयास किया गया है। उन्हें कौशल विकास के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाया गया है। अब वे अपने श्रम के पैसे मांगने के लिए हाथ आगे कर रहे हैं। उनके बनाए उत्पाद बाजार में आ गए हैं। समाहरणालय और विकास भवन में स्टाल लगाकर उन्हें बिक्री के लिए प्रदर्शित किया गया है। यह परिवर्तन की एक तस्वीर है।
मृत्युंजय मानी, पटना। सड़क किनारे तो कहीं मंदिर या सार्वजनिक स्थलों पर हाथ पसारे भीख मांगने वाले। वर्षों से बनी हुई प्रवृत्ति। भीख मांगने वालों की कतार राज्य और देश की एक नकारात्मक छवि गढ़ती हुई।
यह दृश्य आम है, जिससे सभी का रोज सामना होता है। जैसे यह सामाजिक व्यवस्था में रच-बस गई हो, लेकिन अब उन्हीं लोगों के बनाए उत्पाद बाजार में लाए जा रहे हैं। यह परिवर्तन की एक तस्वीर है। भीख मांगने की प्रवृत्ति को लेकर दैनिक जागरण ने अभियान चलाते हुए शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट किया था।
बोधगया में ऐसे लोगों को चिह्नित कर उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार कौशल विकास कर मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया गया। आज कई इस प्रवृत्ति से मुंह मोड़ चुके हैं। पटना में भी जिला प्रशासन ने भीख मांगने वाले ऐसे लोगों को चिह्नित करते हुए उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का सफल प्रयास किया।
इस दीपावली उन्हीं लोगों द्वारा तैयार उत्पाद भी प्रदर्शित किए जा रहे हैं। समाहरणालय और विकास भवन में स्टाल लगाकर उन्हें बिक्री के लिए प्रदर्शित किया गया है।
अब लोगों को मिली नई पहचान
बच्चों को भी भीख के पेशे में शामिल करने के संबंध में जब दैनिक जागरण ने ध्यान आकृष्ट किया था तो पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर परिसर से ऐसे बच्चों को मुक्त कराया गया था। उनलोगों को एक नया जीवन और नई पहचान मिली है, जिनकी सुबह ही हाथ पसारने से होती थी।अब वे अपने श्रम के पैसे मांगने के लिए हाथ आगे कर रहे हैं। उनके बनाए उत्पाद बाजार में आ गए हैं। जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने कहा कि दैनिक जागरण ने इस कुवृत्ति के विरुद्ध जागरूकता की सराहनीय पहल की। प्रशासन ने वैसे लोगों को पुनर्वासित किया है। अभी यही शुरुआत है।
भिक्षुकों द्वारा तैयार सामग्री के विषय में बताते एनजीओ के प्रतिनिधि l जागरण
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