क्या उपचुनाव में चलेगा PK की जन सुराज का जादू या पुराने दलों में ही होगा मुकाबला? पढ़ें रिपोर्ट
बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में जातीय प्रतिबद्धता परिवारवाद और तीसरे विकल्प की संभावना पर जनता अपनी राय देगी। परिणाम से राजनीति में परिवारवाद की स्वीकार्यता और जातियों की राजनीतिक दलों के प्रति प्रतिबद्धता की परख होगी। अगर परिणाम इन दोनों से अलग होता है तो यह संदेश भी निकलेगा कि छोटे हिस्से में ही सही लोग परिवर्तन के आकांक्षी हैं।
राज्य ब्यूरो, पटना। विधानसभा की चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सभी दल अपने सर्वोत्तम साधनों का उपयोग कर रहे हैं। परिणाम कई राजनीतिक दलों की मान्यताओं के बारे में जनता की राय जाहिर करेगा। परिणाम से राजनीति में परिवारवाद की स्वीकार्यता और जातियों की राजनीतिक दलों के प्रति प्रतिबद्धता की परख होगी। अगर परिणाम इन दोनों से अलग होता है तो यह संदेश भी निकलेगा कि छोटे हिस्से में ही सही लोग परिवर्तन के आकांक्षी हैं।
भाकपा माले और जन सुराज पार्टी (Jan Suraaj Party) को छोड़ दें तो सभी दलों ने परिवारवाद की राजनीति को प्रश्रय दिया है। संबंधित विधानसभा क्षेत्र के विधायक रहे नेता पुत्रों को उम्मीदवार बनाया गया है। भाजपा ने रामगढ़ में अपने पुराने कार्यकर्ता अशोक कुमार सिंह को टिकट दिया है, लेकिन तरारी में उसने पूर्व विधायक सुनील पांडेय के पुत्र विशाल प्रशांत को उम्मीदवार बनाया है।तरारी से भाकपा माले के उम्मीदवार राजू यादव विशुद्ध कार्यकर्ता हैं। राजनीति उन्हें विरासत में नहीं मिली है। रामगढ़ के राजद उम्मीदवार अजित सिंह और इसी दल से बेलागंज के उम्मीदवार विश्वनाथ कुमार सिंह और बेलागंज की हम उम्मीदवार दीपा मांझी विरासत की राजनीति के प्रतिनिधि हैं।
इसी श्रेणी में बेलागंज की जदयू उम्मीदवार मनोरमा देवी को भी रखा जा सकता है। वह अपने पति बिंदी यादव की राजनीतिक विरासत को बढ़ा रही हैं। हालांकि, बिंदी यादव को कभी विधानसभा चुनाव में सफलता नहीं मिली, जबकि मनोरमा विधान परिषद की सदस्य रह चुकी हैं। दिलचस्प यह है कि आम चुनाव में राजद पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाला एनडीए उपचुनाव में इसकी चर्चा नहीं कर रहा है।
जातियों की दलीय प्रतिबद्धता
मान लिया गया है कि यादव और मुसलमान राजद के लिए प्रतिबद्ध हैं। दक्षिण बिहार के लोकसभा चुनाव परिणाम ने राजद और खासकर महागठबंधन के खेमें में कुशवाहा और वैश्य वोटरों को भी जोड़ दिया था। संयोग से ये सभी उपचुनाव विधायकों के सांसद बनने के कारण हो रहे हैं। परिणाम यह भी बताएगा कि लोकसभा चुनाव के समय बना जातीय समीकरण अब भी कायम है और यह 2025 के विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन के पक्ष में बना रह सकता है।लोकसभा चुनाव के दौरान इन चारों विस सीटों पर एनडीए उम्मीदवारों की हार हुई थी। बेलागंज में माय समीकरण की असली परख होगी। राजद के अलावा जदयू और जन सुराज के उम्मीदवार इसी समीकरण के हैं।
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