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नीतीश कुमार की मुहिम को धार देगा अन्ना हजारे का आंदोलन

अन्ना हजारे के सोमवार को दिल्ली में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन से बनने वाला माहौल बिहार की राजनीति को भी प्रभावित करेगा। वह इस कारण भी कि अध्यादेश के खिलाफ नीतीश कुमार जोरदार ढंग से आवाज बुलंद करते रहे हैं।

By pradeep Kumar TiwariEdited By: Updated: Tue, 24 Feb 2015 09:56 AM (IST)
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पटना (एसए शाद)। अन्ना हजारे के सोमवार को दिल्ली में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन से बनने वाला माहौल बिहार की राजनीति को भी प्रभावित करेगा। वह इस कारण भी कि अध्यादेश के खिलाफ नीतीश कुमार जोरदार ढंग से आवाज बुलंद करते रहे हैं। उनकी पार्टी जदयू ने तो 2009 में ही भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध किया था, और उसके सभी छह सांसदों ने इस्तीफा दे दिया था। तब उस समय यह बिल यूपीए सरकार लाई थी। अब जब नीतीश कुमार भाजपा, खासकर नरेंद्र मोदी, के खिलाफ विभिन्न दलों की गोलबंदी में जुटे हैं, उनके चुनावी एजेंडे में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश टाप पर है। चौतरफा गोलबंदी की झलक वह अपने शपथ ग्रहण समारोह में रविवार को दिखा भी चुके हैं।

संसद में 2009 जदयू एवं अन्य दलों के विरोध का यह परिणाम हुआ कि कुछ माह बाद बिल की समीक्षा का जिम्मा सुमित्रा महाजन (वर्तमान में लोकसभा अध्यक्ष) की अध्यक्षता में संसद की ग्रामीण विकास पर बनी स्थायी समिति को सौंप दिया गया। समिति में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद भी शामिल थे। जदयू के राष्ट्रीय महासचिव जावेद रजा के मुताबिक, तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष ने सांसदों का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया था, मगर हमारे विरोध का व्यापक असर तो हुआ ही।

महाजन समिति ने बिल मेंं आवश्यक संशोधन के लिए अपनी रिपोर्ट दी तो उन आपत्तियों का भी ख्याल रखा जिनका जदयू ने विरोध किया था। जदयू के प्रदेश प्रवक्ता डा. अजय आलोक ने कहा-'13 अप्रैल, 2013 को संसद में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने महाजन कमेटी की रिपोर्ट के हवाले से कहा था कि बिल में आवश्यक संशोधन कर लिए गए हैं। अब कोई भूमि माफिया लाभ नहीं ले सकेगा। भूमि अधिग्रहण के कारण कोई बुरा सामाजिक प्रभाव भी नहीं होगा।' डा. आलोक ने कहा कि हमारी पार्टी जनता को बताएगी कि भाजपा खुद अपने द्वारा किए गए संशोधनों को भूल गई। कांग्रेस के असली बिल से भी क्रूर भूमि अधिग्रहण कानून का अध्यादेश भाजपा ने सत्ता में आते ही जारी कर दिया। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश हमारे चुनावी एजेंडों में प्रमुख रहेगा।

जहां तक चौतरफा गोलबंदी की बात है तो नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में पश्चिम से अगर महाराष्ट्र कांग्रेस के कृपाशंकर सिंह आए तो पूरब से बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने भाग लिया। उत्तर भारत के नेताओं में तो यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, हरियाणा से आइएनएलडी के अभय चौटाला, दुष्यंत चौटाला जैसे कई नेता आए। दक्षिण भारत से जनता दल(सेक्युलर) के अध्यक्ष एवं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा खुद शामिल हुए। इन सभी नेताओं की राजनीति नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही भाजपा के विरोध पर केंद्रित है। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस को छोड़ ये सभी दल उस जनता दल परिवार का हिस्सा हैं जिसका नेतृत्व वीपी सिंह ने किया था। तब निशाने पर कांग्रेस थी, लेकिन बदली परिस्थिति में यह मोर्चाबंदी भाजपा के खिलाफ है। अन्ना का ताजा आंदोलन भले ही किसी राजनीतिक दल से जुड़ नहीं है, लेकिन जो राजनीतिक माहौल तैयार होगा वह इस मोर्चाबंदी के पक्ष मे ही जाएगा।

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