बिहार : पूर्व विधायक राम इकबाल वारसी का निधन
डॉ राम मनोहर लोहिया को अपना आदर्श मानते हुए उनके पदचिन्हों का आजीवन अनुसरण करने वाले पूर्व विधायक राम एकबाल वरसी का आज पटना के एम्स अस्पताल में निधन हो गया।
पटना [वेब डेस्क]। समाजवादी आंदोलन का एक और खंभा ढह गया । प्रखर समाजवादी चिंतक, विचारक व झंडाबरदार पूर्व विधायक राम इकबाल वारसी अब नहीं रहे । रविवार की देर रात पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में उन्होंने अंतिम सांस ली ।
वे पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे । ईलाज के लिए अस्पताल में दाखिल कराया गया था । वारसी के निधन की खबर से बिहार के राजनीतिक गलियारे में शोक एवं मातम पसर गया है । दिवंगत वारसी के अंतिम दर्शन के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी सहित अन्य राजनीतिक दिग्गज पहुंचे हैं ।
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वारसी 1969 में तत्कालीन पीरो विधानसभा क्षेत्र से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे । उनके अक्खड़ समाजवादी विचारों व जनहित के लिए समर्पण से प्रभावित डॉ राम मनोहर लोहिया ने उन्हें एक नया नाम दिया - पीरो का गाँधी ।इस नये नाम ने उनके गजब का आवेश व जज्बा भर दिया था । इस नाम को सार्थक बनाने के लिए वारसी ने अपने को जन सेवा के लिए पूरी तरह समर्पित कर दिया ।
गरीबों, मजलूमो व समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को उनका वास्तविक हक दिलाना वारसी के जीवन का लक्ष्य बन गया था । वे विधायक रहते हुए जिस तरह मुखर होकर गरीबों की आवाज उठाते रहे उसी तरह जीवन के अंतिम समय में भी उनकी यह मुहिम धीमी नहीं पडी ।
उनका मानना था कि जब तक समाज के अंतिम पायदान पर खड़े लोगों को उनका हक नहीं मिलता तब तक लोकतंत्र का सपना साकार नहीं होगा । 1926 में तरारी प्रखंड के छोटे से गांव वारसी में जन्मे इस महा मानव ने जनसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था तभी तो अपने तथा खुद के कुनबे के बारे में कुछ सोचा तक नहीं ।
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वारसी एवं उनके परिजन अभावों के बीच जीते रहे पर वारसी ने पूर्व विधायक के नाम पर सरकार की ओर से मिलने वाले पेंशन को लालच का ठिकरा बताकर उसमें से फुटी कौड़ी भी लेने से इंकार कर दिया ।वे कहते थे कि सरकार का यह पैसा गरीबों पर खर्च किया जाना चाहिए ।
वारसी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में भी सक्रिय रहे । घर परिवार की माली हालत खस्ताहाल होने के बावजूद इसकी परवाह न करते हुए वे डालमिया फैक्ट्री में मुंशी की नौकरी को लात मार कर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े थे । इस दौरान जेल में उनकी मुलाकात जय प्रकाश नारायण सहित अन्य राजनीतिक दिग्गजों से हुई जिनसे वे काफी प्रभावित हुए ।
वैसे वे डॉ राम मनोहर लोहिया को अपना आदर्श मानते हुए उनके पदचिन्हों का आजीवन अनुसरण करते रहे ।वारसी के निधन से हुई राजनीतिक जगत में आयी रिक्तता की भरपाई शायद नहीं हो सकती है ।