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कुमारी पूजन परंपरा : क्या आज भी चाहिए गुड़ियों से खेलने वाली दुर्गा?

दुर्गा पूजा में कुमारी पूजन की परंपरा और फिर उसके बाद लड़कियों के लिए वैसी ही मानसिकता, इस दोयम दर्जे की सोच से हम आखिर कबतक बाहर आएंगे।

By Kajal KumariEdited By: Updated: Tue, 11 Oct 2016 03:03 PM (IST)

पटना [काजल]। पूरे देश में नवरात्रि की धूम मची है, लोग नाच रहे हैं, गा रहे हैं, खुशियां मना रहे हैं। जगह-जगह मेले लगे हैं। पूरा देश उत्सव के रंग में रंगा हुआ है। कल यानि रविवार को नवरात्रि पूजन की अष्टमी तिथि है फिर सोमवार को नवमी तिथि को भी मां अंबे की पूजा की जाएगी।

इन दोनों दिनों की खास पूजा की विशेषता है कि इन दो दिनों कुमारी पूजन की परंपरा है। कुमारी पूजन में छोटी-छोटी बच्चियों को मां दुर्गा का स्वरुप मानकर उनकी पांव पूजा की जाती है। उन्हें विधिवत सजाया जाता है उन्हें मनपसंद भोजन कराया जाता है।

पूजन के बाद उन्हें दक्षिणा देकर विदाई दी जाती है। यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है। हमारे देश में कन्या पूजन और नारी की पूजा का विधान है जो किसी और देश में नहीं।

भारत में शुरू से ही देवी पूजन की परंपरा रही है। हमारा मानना है कि ...यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता, हमारे शास्त्र-पुराण एेसा ही मानते हैं और आज भी हम अपनी परंपरा को निभाते हुए दुर्गा पूजा में कुमारी कन्याओं का पूजन कर उन्हें देवी स्वरूप मानते हैं। लेकिन क्या दुर्गा पूजा तक ही माता का पूजन या कुमारी कन्याओं का पूजन होना चाहिए? उसके बाद हमारी सोच कहां चली जाती है?

अभी हाल-फिलहाल एक मूवी आई थी पिंक...इसमें आज भी लड़कियों को लेकर समाज की सोच, समाज की ओछी मानसिकता दिखाई गई है। शारीरिक शोषण, मानसिक शोषण तो जैसे आज मेट्रो शहर में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों के जीवन का हिस्सा है। अाज भी शिक्षित कहे जाने वाले समाज की मानसिकता वैसी ही कुंठित है।आज भी अपने पैरों पर खड़ी लड़कियों को बहुत कुछ झेलना पड़ता है। ये दोयम दर्जे की मानसिकता क्यों?

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आज भी लैंगिक विषमता, दहेज की प्रताड़ना, महिला हिंसा,बलात्कार की घटनाएं आम बात हैं। इसके लिए जिम्मेवार हम हैं, हमारा समाज है। आज भी सरकारी स्कूलो के वर्ग तीन या चार की पाठ्यपुस्तकों में ल से लड़की का चित्र गुड़िया खेलती हुई और लड़के का चित्र क्रिकेट खेलता हुआ।

म से मां की पहचान रसोई में काम करती हुई और प से पिता का चित्र अॉफिस में काम करने वाले के रुप में, वहीं दादाजी अखबार पढ़ते हुए और दादी पूजा करती हुई दिखती है।

एेसा क्यों है कि हमारे पुस्तकों में प्रारंभिक शिक्षा के साथ ही अ से अनार ही पढ़ाया जाता है अ से अधिकार नहीं। आज की पीढ़ी कुछ जागरूक जरूर है, लड़कियों की शिक्षा का प्रतिशत कुछ हद तक ठीक हुआ है लेकिन आज भी लड़कियों को नर्स, अध्यापिका, एयर होस्टेस, रिसेप्शनिस्ट के रूप में ही देखा जाता है। बहुत कम प्रतिशत ही एेसी लड़कियां हैं जो तकनीशियन, आर्किटेक्ट, फौजी बनने के शौक को पूरा कर पाती हैं।

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आज भी दिल्ली, मुबंई जैसे बड़े शहरों में लड़कियों का मानसिक,शारीरिक शोषण किया जाता है। चाहे स्कूल हो दफ्तर हो, पार्क हो, बस-ट्रेन की यात्रा करना हो, चलती कार में और कैब की गाड़ियों में बलात्कार की घटनाएं इन बड़े शहरों में अनगिनत हो रही हैं और इसकी वजह लड़कियों के लिबास को बनाया जाता है, पुरुषों की सोच को नहीं।

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने तो अपनी पोती और नातिन नव्या के लिए एक पत्र लिखकर समाज की मानसिकता पर करारा तमाचा लगाया है, लेकिन ये कितने लोग समझ पाएंगे? समाज की रूढ़ सोच बदलने में अभी बहुत वक्त लगेगा, जब कुमारी पूजन की तरह ही लड़कियों को उनका अधिकार दिलाकर उनकी पूजा की जाएगी।

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आज भी महिलाओं की शिक्षा का प्रतिशत संतोषजनक नहीं है, यह अभी भी मात्र 60 प्रतिशत ही है। महिला शिक्षा के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। लेकिन साक्षरता जरूरी नहीं, महिला का शिक्षित होना जरूरी है। तभी असली दुर्गा की पूजा होगी और देवता फिर से वास करेंगे।

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