शराब बुरी नहीं होती, शराबियत बुरी होती है.... जानिए क्यों कहा पीयूष मिश्रा ने?
गैंग्स अॉफ वासेपुर से अपनी पहचान वाले पीयूष मिश्रा ने बताया कि लेखन मेरा जुनून है तो थियेटर मेरा नशा है। अभिनेता, लेखक, कलाकार के साथ ही कई विधाओं के धनी पीयूष मिश्रा से बातचीत...
By Kajal KumariEdited By: Updated: Mon, 29 Aug 2016 11:15 PM (IST)
पटना [काजल]। गैंग्स अॉफ वासेपुर, मकबूल और गुलाल जैसी फिल्मों से सुर्खियां बटोरने वाले पीयूष मिश्रा के गीतों में सीपियों की खनक भी है तो सिसकियों की कसक भी।
पीयूष मिश्रा, जो नाटक का आदमी होकर भी नाटकीय नहीं है और अपने गीतों में अनिवार्य रूप से 'साफ-सुथरे' और 'हाइजीनिक' रूपक ही नहीं चुनता है,जिसके शब्द-चित्रण में अंगड़ाई तोड़ते कबूतर और नुक्कड़ पर भौंकते कुत्तों की भी हिस्सेदारी है।बॉलीवुड की गुलाबी और चमकदार-सी दुनिया में एक कलाकार के तौर पर वह हर कतार से अलग खड़े नज़र आते हैं। दारू पीकर भंड हुए बॉलीवुडिया साहित्य के बाद पनपे हैंगओवर का नाम है पीयूष मिश्रा, जो रंगमंच का मंझा कलाकार है तो वैसा ही अभिनेता, संगीत निर्देशक, गायक, गीतकार, पटकथा लेखक ...जाने क्या-क्या गुण छिपा रखे हैं इस कलाकार ने।
रविवार को वे एक कार्यक्रम के सिलसिले में राजधानी पटना पहुंचे थे। बैठकर बतियाना बहुत पसंद करते हैं, और बिल्कुल आराम की मुद्गा में बैठकर उन्होंने बहुत ही कम शब्दों में बिल्कुल सधा हुआ सा उत्तर दिया।दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहा पीयूष मिश्रा ने -
बिहार में शराबबंदी का कानून लागू है, इस बारे में आपकी क्या राय है? हंसकर कहा पीयूष मिश्रा ने- देखो शराब बुरी चीज नहीं है , बुरी होती तो देश-विदेशों में लोग क्यों पीते? शराब बुरी नहीं शराबियत बुरी होती है आदत लग जाए और जरूरत से ज्यादा पीकर कदम लड़खड़ाए ये गलत है। बिहार में शराबबंदी कानून लागू है तो लोगों को नहीं पीनी चाहिए। रिस्क लेने की क्या जरूरत है।कभी आप भी शराबियत के शौकीन रहे?हां, मैं भी शराबियत का शिकार रहा हूं, लेकिन इंसान अगर सोच ले कि खुद को सुधार लेना है तो वह एेसा कर सकता है इसके लिए विल पावर की जरूरत होती है।बिहार में रंगमंच की एेसी स्थिति पर क्या कहेंगे?हर राज्य की अपनी प्रायरिटी होती है, यहां राज्य सरकार का रंगमंच के प्रति सौतेला व्यवहार नजर आता है इसीलिए राज्य में थियेटर की ये हालत है। कभी वक्त था जब यहां भी नाटक होते थे, कलाकारों का सम्मान होता था। जबतक थियेटर को राज्य सरकार स्पांसर नहीं करेंगी यही हाल रहेगा। एेसा ही चलता रहा है।लेखन में जो झलकता है क्या वैसे ही हैं पीयूष मिश्रा? हां, मैं बिल्कुल सीधा-सादा इंसान हूं, जो भी कमाया है अपनी मेहनत की बदौलत कमाया है। दुनिया ने जो दिखाया और समझाया है वही लिखा। दुनिया जैसी देखी है उसी के आधार पर लिखता रहा। लेखन मेरा जुनून है तो थियेटर मेरा नशा है।हमेशा टोपी पहनने के पीछे क्या राज है? कहा-मुझे पसंद है टोपी पहनना और इसीलिए टोपी पहनता हूं। जो मुझे पसंद है मैं वही करता हूं।भोजपुरी फिल्मों को मार्केट क्यों नहीं मिल रहा?भोजपुरी फिल्मों में जो क्लासिकल टच होता था वह खत्म हो गया है। जो प्यूरिटी थी वो अब नहीं दिखती। खासकर स्क्रिप्ट की कमी खली है। बेहतर स्क्रिप्ट पर काम नहीं किया जा रहा है। मराठी फिल्में खूब चलती हैं क्योंकि उनका अपना क्लासिकल टच अब भी बरकरार है। स्क्रिप्ट्स अच्छी लिखी जाती हैं।
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