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बिहार में अपने कुनबे को मजबूत बनाने में जुटी लोजपा

केंद्र में मोदी सरकार की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले अपना कुनबा बढ़ाने की तैयारी में जुट गई है।

By Mrityunjay Kumar Edited By: Updated: Sat, 08 Nov 2014 09:52 AM (IST)
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पटना ( सुभाष पाण्डेय)। केंद्र में मोदी सरकार की सहयोगी लोक जनशक्ति पार्टी बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले अपना कुनबा बढ़ाने की तैयारी में जुट गई है। ऐसा इसलिए हो रहा है ताकि चुनाव से पहले सीटों के तालमेल के दौरान पार्टी अपनी दावेदारी मजबूती से पेश कर सके। 1लोजपा अपनी इसी रणनीति के तहत मध्य बिहार की राजनीति में मजबूत दखल रखने वाले जदयू के पूर्व सांसद जगदीश शर्मा को अपने पाले में लाने में सफल दिख रही है। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान व संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान की मौजूदगी में शर्मा 7 दिसंबर को श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में एक बड़े मिलन समारोह में लोजपा में विधिवत शामिल होंगे। पासवान ने उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के संकेत भी दिए हैं।

चारा घोटाले में सजायाफ्ता होने के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साथ ही जगदीश शर्मा को भी लोकसभा की सदस्यता गंवानी पड़ी थी। चुनाव लड़ने केअयोग्य घोषित होने पर जदयू ने पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी जगह पर जहानाबाद से अनिल शर्मा को मैदान में उतारा था। 1977 से घोसी विधानसभा सीट पर शर्मा या उनके परिवार का ही कब्जा रहा है। चुनावी राजनीति में कदम रखने के बाद कोई उन्हें इस सीट से हरा नहीं सका है। जदयू के सांसद रहते अपनी खाली की गई घोसी सीट से उपचुनाव में सरकार के तमाम विरोध के बावजूद अपनी पार्टी को जीत दिलाने में कामयाब रहे थे। यही कारण है कि शर्मा के पार्टी में शामिल होने को लोजपा बड़ी उपलब्धि मान रही है।

हाल तक जदयू के विधायक रहे उनके पुत्र राहुल कुमार पिता के साथ लोजपा में नहीं जा रहे हैं। स्पीकर उदय नारायण चौधरी ने 1 नवंबर को उनकी सदस्यता खत्म कर दी है। हालांकिराहुल लोजपा के बजाय पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के अधिक संपर्क में है। लोजपा की समस्या है कि विधानसभा का पिछला चुनाव वह राजद से गठबंधन करके 75 सीटों पर लड़ी थी। इस बार लोकसभा का चुनाव वह भाजपा के गठबंधन में सात सीटों पर लड़ी थी। ऐसे में दावा तो उनका किसी भी हालत में 42 से अधिक बनता नहीं है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवसेना के साथ तालमेल टूटने के बाद लोजपा नेताओं को लगने लगा है कि जनाधार का विस्तार नहीं किया और अपने कुनबे से मजबूत नेताओं को नहीं जोड़ा, तो शायद उतनी सीटें भी लड़ने को न मिले।

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