मुझे गर्व है कि मैं आरएसएस का स्वयंसेवक हूं: रक्षा मंत्री
केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने युवा संगम के कार्यक्रम में अपनी मन की बात कह दी। उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूं। मेरा जो कुछ अच्छा है वह संघ के कारण है।
By Bhupendra SinghEdited By: Updated: Mon, 17 Aug 2015 08:01 AM (IST)
रायपुर, बिलासपुर [ब्यूरो]। केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने युवा संगम के कार्यक्रम में अपनी मन की बात कह दी। उन्होंने कहा कि मुझे गर्व है कि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक हूं। मेरा जो कुछ अच्छा है वह संघ के कारण है। कुछ बुराई संघ की शाखाओं में जाने के बाद भी रह गई है, उसे दूर करने की कोशिश कर रहा हूं। संघ की शाखाएं अपने स्वयंसेवक को चरित्रवान और समाज के प्रति संवेदनशील बनाने का काम करता है।
वनवासी विकास समिति के बैनर तले पंडित देवकीनंदन दीक्षित सभा भवन में आयोजित युवा संगम कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि केंद्रीय रक्षा मंत्री पर्रिकर शिरकत कर रहे थे।युवा संगम में उपस्थित वनवासी विकास समिति के पदाधिकारियों, वनवासी छात्रों व शहरवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि समाज की मुख्यधारा में जोडऩे हर संभव कोशिश होनी चाहिए। इस काम को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उसकी अनुषांगिक संस्थाएं बखूबी कर रही है। प्रत्येक व्यक्ति को जो संघ की शाखाओं में जाता है, चरित्रवान होता है। उन्होंने कहा कि आज मैं जो कुछ भी हूं उसका पूरा श्रेय संघ को जाता है।
मुझे यह कहने में गर्व महसूस होता है कि मैं संघ का स्वयंसेवक हूं। संघ की शाखाओं में जाने के बावजूद मेरे भीतर जो कुछ बुराई रह गई है उसे दूर करने हरसंभव कोशिश करते रहता हूं। उन्होंने कहा कि संघ की शाखाओं में जाने और गतिविधियों से जुड़े रहने के कारण वनवासी कल्याण आश्रम से मेरा वर्षों पुराना संबंध रहा है। संवैधानिक स्थितियों की चर्चा करते हुए कहा कि वर्ष 1947 से 50 के बीच जब संविधान का निर्माण हुआ और व्यवस्था बनी तब उस वक्त गोवा में जनजातियों को जगह नहीं मिल पाई।इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जब केंद्र की सत्ता पर एनडीए की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और मैं गोवा का मुख्यमंत्री बना, उसी समय से हमने गोवा की जनजातियों को अधिकार दिलाने की कोशिशें शुरू की। 9 जनवरी 2003 को प्रधानमंत्री वाजपेयी ने जनजातियों को जोडऩे का काम प्रारंभ किया। उनका प्रयास सफल रहा। आजादी के बाद पहली मर्तबे गोवा की जनजातियों को संवैधानिक अधिकारों से लैस किया गया।
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