क्या टीम इंडिया के बीच ट्रॉफी हाथ में लिए इन जनाब को जानते हैं आप?
भारतीय टीम ने टी20 सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को लगातार तीसरी बार हराकर ऐतिहासिक क्लीन स्वीप किया। जब ट्रॉफी उठाने की बारी आई तो मंच पर पूरी टीम और सपोर्ट स्टाफ भी पहुंचा, इसी बीच अचानक फोटो सेशन के दौरान ट्रॉफी एक दुबले-पतले से लड़के को थमा दी जाती है जो
By ShivamEdited By: Updated: Mon, 01 Feb 2016 08:06 PM (IST)
(शिवम् अवस्थी), नई दिल्ली। भारतीय टीम ने टी20 सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को लगातार तीसरी बार हराकर ऐतिहासिक क्लीन स्वीप किया। जब ट्रॉफी उठाने की बारी आई तो मंच पर पूरी टीम और सपोर्ट स्टाफ भी पहुंचा, इसी बीच अचानक फोटो सेशन के दौरान ट्रॉफी एक दुबले-पतले से लड़के को थमा दी जाती है जो टीम के बीच बैठकर फोटोग्राफर्स और फैंस के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाता है। आखिर कौन है ये, आइए जानते हैं।
कौन है ये? दरअसल, ये हैं राघवींद्र, जिनको भारतीय क्रिकेट में प्यार से रघु के नाम से बुलाया जाता है। रघु भारतीय टीम के साथ एक खास मकसद को लेकर जुड़े हुए हैं। अभ्यास सत्र के दौरान वो रघु ही हैं जो थ्रो-डाउन की जिम्मेदारी निभाते हैं, यानी नेट्स में बल्लेबाजों को गेंदें फेंकते हैं। चाहे नेट्स पर गेंदबाज हों या न हों, रघु लगातार घंटों तक गेंदें फेंकते रहते हैं और भारतीय बल्लेबाजों को अभ्यास कराते हैं। चाहे सचिन तेंदुलकर हों, राहुल द्रविड़ हों, धौनी हों या फिर कोहली, इन सभी दिग्गजों को रघु अभ्यास कराते आए हैं।
बनना चाहता था क्रिकेटरः कर्नाटक के एक छोटे से जिले से आने वाले रघु कई साल पहले परिवार की मर्जी के बिना क्रिकेटर बनने के सपने के साथ मुंबई आए थे। कुछ साल मुंबई में अभ्यास करने के बाद जब कुछ खास होता नजर नहीं आया तो वो हुबली चले गए जहां कुछ क्लबों के लिए खेले, हालांकि वहां भी सफलता नहीं मिली। अंत में वो बेंगलुरू पहुंचे। कर्नाटक के एक क्रिकेट इंस्टीट्यूट में एक कोच ने रघु की जिम्मेदारी उठाई और वो इस इंस्टीट्यूट से जुड़ गए और देखते-देखते वो वहां की रणजी टीम के थ्रो-डाउन एसिस्टेंट बन गए। 2008 में आखिरकार उन्हें राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी (एनसीए) में नौकरी मिल गई और कुछ ही समय में वो टीम इंडिया से जुड़ गए। आज भारतीय टीम में हर खिलाड़ी रघु को अपने भाई की तरह मानता है और रघु भी अभ्यास सत्र के दौरान खिलाड़ियों को अभ्यास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ते फिर चाहे उन्हें दिन में कितनी बार भी गेंद फेंकनी पड़े।