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आंखों को नम कर दिलों में बस गए सचिन

सक्रिय क्रिकेट जीवन से औपचारिक विदाई से पहले ही वानखेड़े का माहौल भावुक हो चुका था। शनिवार को दर्शकों की आंखों में तैरती-झिलमिलाती नमी स्टेडियम की फिजाओं में महसूस हो रही थी। सचिन के चाहने वालों को ऐसे माहौल का आभास पहले ही हो गया था। कुछ दिग्गज क्रिकेटर एक दिन पहले ही कह चुके थे कि सचिन विदाई के मौके पर अपने आंसू रोक नहीं पाएंगे। ऐसा ही हुआ और कुछ इस तरह से कि सचिन हमेशा के लिए दिलों में बस गए। वह खुद तो रोए ही, औरों को भी रुला गए।

By Edited By: Updated: Sun, 17 Nov 2013 01:23 AM (IST)

जागरण न्यूज नेटवर्क, मुंबई। सक्रिय क्रिकेट जीवन से औपचारिक विदाई से पहले ही वानखेड़े का माहौल भावुक हो चुका था। शनिवार को दर्शकों की आंखों में तैरती-झिलमिलाती नमी स्टेडियम की फिजाओं में महसूस हो रही थी। सचिन सचिन के चाहने वालों को ऐसे माहौल का आभास पहले ही हो गया था। कुछ दिग्गज क्रिकेटर एक दिन पहले ही कह चुके थे कि सचिन विदाई के मौके पर अपने आंसू रोक नहीं पाएंगे। ऐसा ही हुआ और कुछ इस तरह से कि सचिन हमेशा के लिए दिलों में बस गए। वह खुद तो रोए ही, औरों को भी रुला गए।

पढि़ये: विदाई से पहले सचिन के आखिरी बोल.

अपने मंत्रमुग्ध करने वाले विदाई भाषण से वह अपना कद और ऊंचा कर गए और रही-सही कसर भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न प्रदान करने की घोषणा से पूरी कर दी। वह इतनी कम उम्र (40 वर्ष) में और साथ ही खिलाड़ी के तौर पर यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वाले पहले शख्स बनेंगे।

बिना क्रिकेट सचिन की कल्पना करना मुश्किल: अंजलि तेंदुलकर

सचिन सचमुच भारत रत्न हैं। उन्होंने भले ही सक्रिय क्रिकेटर के तौर पर संन्यास ले लिया हो लेकिन कोई भी उनके मुंह से संन्यास और विदाई जैसे शब्द सुनना नहीं चाहता। उनके बिना क्रिकेट की कल्पना करना भी मुश्किल है। वह क्रिकेट से दूर जा नहीं सकते और प्रशंसक उन्हें ऐसा करने भी नहीं देंगे। उन्होंने क्रिकेट को बहुत कुछ दिया है और आने वाली क्रिकेट की पीढि़यों को भी उनसे बहुत उम्मीदें हैं। यह उम्मीदें सचिन की औपचारिक विदाई के समय वानखेड़े स्टेडियम में दिखाई भी दीं। वेस्टइंडीज टीम पर फतह हासिल कर सचिन जब टीम के साथ मैदान से बाहर निकले तो न तो अपने आंसू रोक सके और न ही उन्हें छिपा सके। वह हैट काम नहीं आई जो शायद उन्होंने अपनी आंखों के भावों को छिपाने के लिए पहन रखी थी।

पुरस्कार वितरण समारोह के लिए सचिन टीम और परिवार के साथ मैदान पर आए। रवि शास्त्री ने पुरस्कार वितरण की तमाम औपचारिकताएं पूरी कीं। ये जरूरी थीं, लेकिन सभी का ध्यान सचिन, उनके साथ मौजूद पत्नी अंजलि, बच्चों सारा और अर्जुन पर था। सारे अवा‌र्ड्स बंट जाने के बाद सचिन की बारी आई तो रवि शास्त्री ने उनसे कुछ पूछने के बजाय माइक ही उनके हाथ में थमा दिया। बहुत कम बोलने वाले सचिन पहली बार खुल कर बोले और ऐसा बोले कि अपने आंसुओं को थामने की कोशिश कर रहे लोग नाकाम हो गए।

अपने विदाई भाषण के जरिये उन्होंने साबित किया कि धन्यवाद ज्ञापित करने में भी उनका कोई सानी नहीं।

सचिन बोलते समय रोना नहीं चाह रहे थे इसलिए बार-बार पानी पिए जा रहे थे। उन्होंने बारी-बारी से सब को याद किया और कोई छूट न जाए इसलिए एक लिस्ट भी लेकर आए थे। जब उन्होंने अपने परिवार के बारे में बोलना शुरू किया तो बच्चों के साथ खड़ीं अंजलि अब रोईं कि तब रोईं वाली हालत में आ गईं।

जब सचिन ने उनका जिक्र करना शुरू किया तो तमाम जतन के बावजूद वह रो ही पड़ीं। सचिन ने आखिर में कहा कि जब तक मैं जिंदा रहूंगा तब तक सचिन-सचिन मेरे कानों में गूंजता रहेगा। उनका इतना कहना था कि पूरा स्टेडियम सचिन-सचिन से गूंज उठा। जब उन्होंने कहा कि शायद उनका भाषण लंबा हो गया है तो नहीं-नहीं की आवाजें आईं। लोगों के लिए यह कल्पना करना कठिन था कि सचिन अब खेलते हुए नहीं दिखेंगे, लेकिन कहीं न कहीं सबके दिलों में भरोसा था कि जिन सचिन ने खुद कहा हो कि क्रिकेट उनके लिए अॅाक्सीजन की तरह है वह उससे दूर नहीं जा सकते और इसका संकेत उन्होंने टीम इंडिया की ओर मुखातिब होते हुए यह कहकर दिया भी कि हमेशा याद रखें कि वे देश की सेवा कर रहे हैं।

विदाई भाषण के बाद सचिन पूरी टीम के साथ विक्ट्री लैप के लिए उतरे। सबसे पहले विराट कोहली और महेंद्र सिंह धौनी ने उन्हें कंधे में उठाया। इसके बाद शिखर धवन और मुरली विजय के कंधों पर सवार होते हुए सचिन ने वानखेड़े का आखिरी चक्कर पूरा किया। सचिन ने एक बार फिर तब भावनाओं का ज्वार पैदा किया जब वह मैदान से विदा होने के पहले पिच को प्रणाम करने आए। उनकी आंखों से फिर से गंगा-जमुना बह निकलीं।

यकीन नहीं हो रहा कि पिछले 24 साल से 22 गज के दरम्यान की मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। सभी को धन्यवाद, जिन्होंने मुझे सहयोग किया। मैं पहली बार सूची लेकर आया हूं, जिन्हें मुझे धन्यवाद देना है, क्योंकि कई बार मैं भूल जाता हूं। सबसे पहले मेरे पिता (रमेश तेंदुलकर) जिनका 1999 में निधन हो गया। .. खेल चुके सभी सीनियर क्रिकेटरों को धन्यवाद। .. मुझे पूरा यकीन है कि आप इसी तरह देश की सेवा करते रहेंगे।

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