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मुरझाए पौधों में भी जान डाल देते हैं भारती

By Edited By: Updated: Mon, 03 Jun 2013 01:44 AM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : मन में कुछ अच्छा करने की ललक और सेवा का भाव हो, तो उम्र बाधा नहीं बनती। द्वारका निवासी 80 वर्षीय तेजपाल भारती को देखकर तो यह कहा ही जा सकता है। महात्मा गांधी के जीवन दर्शन से प्रभावित भारती द्वारका क्षेत्र में पिछले छह साल में करीब एक हजार पेड़ लगा चुके हैं।

उनका प्रकृति प्रेम ही है कि वह पौधों पर न केवल अपने बच्चों की तरह ध्यान देते हैं, बल्कि मुरझाए पौधों में भी जान डाल देते हैं। तेजपाल भारती बताते हैं, 'प्रकृति हमें बहुत कुछ देती है। इसके बदले क्या हमें उसे कुछ नहीं देना चाहिए? क्या हम संतान की परवरिश नहीं करते हैं? फिर पेड़-पौधों की परवरिश करने में क्या हर्ज है? वैसे भी एक पेड़ अपनी पूरी आयु में हमें काफी फायदा पहुंचाता है।'

लगभग 34 साल पहले दिल्ली मिल्क स्कीम (डीएमएस) से नौकरी छोड़कर समाज सेवा में लगे भारती पूरी तरह से प्रकृति की सेवा में रमे हैं। वह सुबह पांच बजे उठते हैं। इसके बाद हाथ में फावड़ा, खुरपी और अन्य जरूरी औजार लेकर निकल पड़ते हैं। जहां भी उन्हें अनायास बेरी, शीशम या अन्य पौधे दिखते हैं, वहां से उन्हें अविकसित पार्को या आसपास खुली जगह पर रोपित कर देते हैं। शीशम और बेरी इस इलाके के लिए उपयुक्त हैं, इसलिए उन पर ज्यादा ध्यान रहता है। वह नर्सरी से भी पौधे लाते हैं। इतना ही नहीं किसी पेड़ या पौधे की शाखा ज्यादा बड़ी हो गई हो, तो उनकी ध्यान से कटाई-छंटाई भी करते हैं। भारती बताते हैं कि द्वारका जैसी उपनगरी में खुली जगह है। यहां कंक्रीट के जंगल तो हैं, लेकिन पेड़-पौधे नहीं। इस कमी को ही दूर करने की कोशिश कर रहे हैं।

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