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भारत में शिशु मृत्यु दर पड़ोसी देशों से भी अधिक

By Edited By: Updated: Thu, 08 Aug 2013 03:07 AM (IST)

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : हर साल चार लाख से ज्यादा शिशुओं की जन्म के चौबीस घंटों के दौरान ही मौत हो जाती है। वहीं लगभग दो लाख बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन भी नहीं देख पाते। अंतरराष्ट्रीय एनजीओ सेव द चिल्ड्रन की रिपोर्ट ने भारत में विकास की पोल खोल दी है। इसके अनुसार शिशु मृत्यु दर में देश पिछड़े कहे जाने वाले तथाकथित पड़ोसी देशों से भी आगे है। राष्ट्रीय राजधानी भी इस शर्मिंदगी में अपनी भागीदारी निभा रही है।

दिल्ली सरकार द्वारा 2010 में जारी वार्षिक सांख्यिकी हैंडबुक के आंकड़ों के अनुसार, यहां शिशु मृत्यु दर में साल-दर-साल बढ़त देखी जा रही है। यूनीसेफ इंडिया का कहना है कि जन्म के घंटेभर बाद शिशु को मां का दूध मिलना और छह माह तक सिर्फ मां का दूध दिया जाना सुनिश्चित कर सालाना दो लाख शिशुओं को बचाया जा सकता है। स्तनपान नहीं कराने का एक बड़ा कारण मांओं के पास समय का अभाव है। यूनीसेफ कामकाजी महिलाओं के लिए छह माह के मातृत्व अवकाश का समर्थन करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से इस संबंध में अनुरोध करेगा।

सम्मिलित प्रयासों के चलते असम में बहुत से चायबागान अपनी महिला कर्मचारियों को नर्सिग ब्रेक देने लगे हैं। साथ ही झूलाघर जैसी सुविधा भी मिल रही हैं। ऐसे ही प्रयास हर राज्य में किए जाएंगे, जिनमें दिल्ली भी शामिल है, क्योंकि यहां महिलाओं का एक बड़ा प्रतिशत कामकाजी है।

माताएं क्यों नहीं करातीं स्तनपान

बहुत से मिथक इसका कारण हैं, जैसे मां के शुरुआती दूध की गुणवत्ता खराब होती है, इसलिए शिशु को शहद आदि पर रखना चाहिए। कामकाजी माताओं के शिशु प्राय: इससे वंचित रह जाते हैं। विशेषकर बड़े शहरों में लंबी दूरियों के कारण मां नर्सिग ब्रेक नहीं ले सकतीं। मां के दूध की गुणवत्ता की जानकारी अक्सर पढ़ी-लिखी महिलाओं को भी नहीं होती, इसलिए भी वे बच्चों को इससे वंचित रखती हैं।

स्तनपान के आंकड़े

-भारत में केवल 34 प्रतिशत महिलाएं ही जन्म के पहले घंटे में शिशु को ब्रेस्टफीड कराती हैं।

- लगभग दो लाख शिशुओं को मौत के मुंह में जाने से रोका जा सकता है अगर उन्हें लगातार छह माह तक मां का दूध मिले।

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बांटे अनुभव

विश्व स्तनपान सप्ताह के अंतिम दिन यूनीसेफ ने देश के विभिन्न राज्यों के गांवों में हो रहे प्रयासों को दिखाने के लिए बुधवार सुबह चाणक्यपुरी में प्रेस मीट का आयोजन किया। इसमें देश के चार राज्यों के गांवों से आई कम्युनिटी हेल्थ वर्कर्स ने शिरकत की और अपने अनुभव बांटें। इसमें झारखंड की कार्यकर्ता सुमि, मध्यप्रदेश की उज्मा, उत्तरप्रदेश की विमला एवं कल्पना तथा गुजरात की शोभना एवं बीना ने बताया कि उनके राज्यों के ग्रामीण अंचलों में मिथकों के कारण किस तरह से शिशु मां के दूध से वंचित रह जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है।

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कामकाजी महिलाओं, खासकर जो बड़े शहरों में रहती हैं, उनको शिशु को स्तनपान कराना आसान नहीं है। वे लंबे वक्त के लिए घर से बाहर रहती हैं और बहुत कम ही दफ्तरों में झूलाघरों की सुविधा है। ऐसे में 10 से बारह घंटे तक शिशु को आहार नहीं मिल पाता है, साथ ही इतने वक्त तक फीड न कराने के कारण मां को भी परेशानी होती है। इसके लिए हम कई तरह की योजनाओं का प्रस्ताव सरकार को देते रहे हैं।

डॉ. विक्टर एम एगुयायो,

मुख्य अधिकारी, यूनीसेफ इंडिया

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