डीयू प्रशासन के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं डूटा और डूसू
By Edited By: Updated: Mon, 16 Sep 2013 11:44 PM (IST)
अभिनव उपाध्याय, नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव (डूसू)में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जीत के बाद अब विश्वविद्यालय के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के पदाधिकारी शुरू से ही यह आरोप लगा रहे थे कि कुलपति एनएसयूआइ के समर्थक हैं। कई कोशिशों के बावजूद छात्रहित के मुद्दों पर वह एबीवीपी कार्यकर्ताओं से नहीं मिले। उसने चार वर्षीय पाठ्यक्रम का शुरू से ही विरोध किया है। अध्यक्ष पद पर जीत के बाद अमन अवाना ने भी यही कहा कि छात्रों ने चार वर्षीय पाठ्यक्रम के विरोध में तथा डीयू प्रशासन की तानाशाही के खिलाफ वोट दिया है। उधर, दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने पहले से ही डीयू प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। डूटा अध्यक्ष नंदिता नारायण ने केवल शिक्षकों के ही नहीं बल्कि छात्रहित के मुद्दों को लेकर डीयू प्रशासन को घेरने की कोशिश की। चाहे चार वर्षीय पाठ्यक्रम का मुद्दा हो या भूख हड़ताल पर बैठे छात्र को उठाए जाने का या फिर असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जीएन साई बाबा के घर पर विश्वविद्यालय की अनुमति के बिना सुरक्षा एजेंसियों की दबिश का। वह मुखर होकर डीयू प्रशासन को तानाशाह कहती रही हैं। नंदिता नारायण का कहना है कि डीयू प्रशासन की नीति असफल रही है। मुद्दा केवल चार वर्षीय पाठ्यक्रम का ही नहीं है। भूख हड़ताल पर बैठे छात्र प्रवीण कुमार से कुलपति मिलने तक नहीं गए। डीयू प्रशासन का यह गैरजिम्मेदाराना रवैया है। डूसू और डूटा के पदाधिकारियों की विचारधारा भले ही अलग हो, लेकिन उनके रुख को देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले समय में वह डीयू प्रशासन को घेरने में पीछे नहीं हटेंगे।
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