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सरकारी अस्पतालों का नहीं बदला हाल

By Edited By: Updated: Fri, 01 Nov 2013 02:45 AM (IST)
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राजीव अग्रवाल, पूर्वी दिल्ली

पिछले 15 वर्षो से दिल्ली की गद्दी पर काबिज कांग्रेस सरकार राजधानी की तस्वीर बदलने के लाख दावे करे लेकिन लेकिन पूर्वी दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं का हाल सरकार के दावों की तस्दीक नहीं करती है। ऐसा कोई अस्पताल नहीं, जहां डॉक्टरों एवं स्टाफ की कमी न हो। कुछ अस्पतालों में तो जीवनरक्षक दवाओं तक की कमी है। अधिकांश अस्पतालों में मरीजों की लंबी कतार देखी जा सकती है।

पूर्वी दिल्ली में सरकारी अस्पताल

पूर्वी दिल्ली में गुरु तेग बहादुर अस्पताल, राजीव गांधी सुपर स्पेशयालिटी अस्पताल, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, डॉ. हेडगेवार अस्पताल, चाचा नेहरू अस्पताल, शास्त्री पार्क में जगप्रवेश चंद्र अस्पताल है। यहां पूर्वी दिल्ली नगर निगम का स्वामी दयानंद अस्पताल है। इसके अलावा मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान और कैंसर अस्पताल भी है।

अस्पतालों में स्टाफ की कमी

अधिकांश अस्पतालों में स्टाफ की कमी बनी हुई है। गुरु तेग बहादुर अस्पताल में 720 स्टाफ की कमी है। इसी तरह से शास्त्री पार्क स्थित जगप्रवेश चंद्र अस्पताल को वर्ष 2007 में 100 बिस्तरों के अस्पताल से 200 बिस्तरों वाले अस्पताल में तब्दील किया गया, लेकिन इसके अनुरूप चिकित्सक एवं स्टाफ की संख्या नहीं बढ़ाई गई। इतना ही नहीं, इस दौरान अस्पताल में काफी संख्या में कर्मचारी सेवानिवृत्त होते रहे, लेकिन उनके बदले भी स्टाफ की नियुक्ति नहीं हुई। कमोबेश यही स्थिति दूसरे अस्पतालों की भी है।

पर्ची बनवाना भी है चुनौती

अधिकांश अस्पतालों में पर्ची बनवाने के लिए मरीजों को लंबी कतार में लगना पड़ता है। पर्ची बन भी जाए तो इसके बाद दवा लेने के लिए फिर लाइन में लगना पड़ता है। कई बार परिणाम यह होता है कि दवा खिड़की ही बंद हो जाती है। ऐसे में मरीज को निराश लौटना पड़ता है।

अल्ट्रासाउंड व सीटी स्कैन कराना मुश्किल

पूर्वी दिल्ली के अधिकांश अस्पतालों में मरीजों को सीटी स्कैन एवं अल्ट्रासाउंड के लिए डेढ़ से दो महीने का वक्त दिया जाता है। कई बार मरीज को बाहर से सीटी स्कैन एवं अल्ट्रासाउंड कराना पड़ता है। जगप्रवेश चंद्र अस्पताल में सीटी स्कैन करने वाले स्टाफ का पद खाली है। ऐसे में लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल का स्टाफ सप्ताह में तीन दिन जगप्रवेश चंद्र अस्पताल में समय देता है। सरकारी अस्पतालों में जांच मशीनें और दूसरे उपकरण अक्सर खराब रहते है।

दवा भी मिलती नहीं

अधिकांश अस्पतालों में मरीजों को डॉक्टर द्वारा लिखी जाने वाली दवाएं नहीं मिलती हैं। दवाओं का अभाव बता दिया जाता है। मरीजों को बाहर मेडिकल स्टोर से दवा की खरीदनी पड़ती है।

सुरक्षा के नहीं हैं इंतजाम

अधिकांश अस्पतालों में सुरक्षा के इंतजाम ठीक नहीं है। निजी एजेंसियों के माध्यम से जो सुरक्षा गार्ड अस्पतालों में रखे गए है, उनकी कार्यशैली को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते है।

जच्चा-बच्चा केंद्र एवं प्राइवेट वार्ड में उद्घाटन के बाद भी ताला

हाल में स्वामी दयानंद अस्पताल परिसर में 120 बेड के जच्चा-बच्चा केंद्र एवं प्राइवेट वार्ड का उद्घाटन किया गया, लेकिन एक लंबी अवधि बीतने के बाद भी इसे शुरू नहीं किया गया है, इसमें ताला लगा है। परिसर में अभी तक पानी एवं बिजली की सुविधा तक उपलब्ध नहीं हो सकी है।

आग से बचाव के उपकरण नहीं ठीक

अधिकांश अस्पतालों में आग से बचाव के उपकरण भी खराब पडे़ हुए है। गुरु तेग बहादुर अस्पताल परिसर में कई बार आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। ऐसे में मरीजों की सुरक्षा का मामला भी बेहद महत्वपूर्ण है। भारी भीड़ वाले इस अस्पताल में आग से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं होना एक बड़ी चिंता है।

काम नहीं करता गीजर

सरकारी अस्पतालों में सर्दी के दौरान गर्म पानी की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए सौर ऊर्जा पर आधारित उपकरण लगाए गए है। यह उपकरण खराब पडे़ हुए हैं।

बेड का भी अभाव

इन दिनों डेंगू का प्रकोप बना हुआ है। अस्पतालों में डेंगू पीडि़तों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन बेड की कमी के कारण एक बेड पर दो से तीन मरीज देखे जा सकते हैं।

लिफ्ट भी रहती है खराब

कई सरकारी अस्पतालों में लिफ्ट की सुविधा है। स्वामी दयानंद अस्पताल परिसर में दो लिफ्ट लगाई गई है। दोनों अक्सर खराब रहती हैं। ऐसे में गर्भवती महिलाओं एवं बुजुर्ग मरीजों को भी सीढ़ी का ही सहारा लेना पड़ता है।

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अस्पतालों के अनुभव अच्छे नहीं है। हाल में सगे संबंधी को लेकर गुरु तेग बहादुर अस्पताल परिसर के आपातकालीन कक्ष में जाना हुआ। अस्पताल में डॉक्टरों एवं स्टाफ का व्यवहार ठीक नहीं था।

-बीएस बोहरा, अध्यक्ष पूर्वी दिल्ली रेजिडेंट संयुक्त फ्रंट

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किसी गरीब को इलाज के लिए भेजते है तो डॉक्टरों के कमरे पर लंबी कतार होती है। सरकार दावे तो करती है कि नई सुविधाएं शुरू करने की, लेकिन उसका लोगों को लाभ नहीं मिल पाता है।

संदीप कपूर, महामंत्री पूर्वी दिल्ली रेजिडेंट संयुक्त फ्रंट

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अस्पतालों की हालात बद से बदतर होने का कारण सरकार के स्तर से किसी तरह की जिम्मेदारी का तय नहीं होना है। इसका खामियाजा उपचार के लिए पहुंचने वाले मरीज उठा रहे है।

-कुलदीप सिंह, उपाध्यक्ष, बिहार महासंघ।

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