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पाठ्यक्रम को लेकर शिक्षकों व यूजीसी में टकराव

अभिनव उपाध्याय, नई दिल्ली राजधानी के विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की नाराजगी चरम पर है। झगड़ा इस बात

By Edited By: Updated: Tue, 21 Apr 2015 10:54 PM (IST)
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अभिनव उपाध्याय, नई दिल्ली

राजधानी के विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की नाराजगी चरम पर है। झगड़ा इस बात का है कि अब विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) में बैठे लोग तय करेंगे या फिर शिक्षाविद्। अब तक अनुदान और सलाह देने की भूमिका निभा रहे यूजीसी द्वारा पाठ्यक्रम तैयार करने की कोशिशों को लेकर भड़के शिक्षक अब सड़क पर उतरने की तैयारी में हैं।

यूजीसी द्वारा देश भर के विश्वविद्यालयों में च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) लागू किए जाने की घोषणा के बाद अब अपनी वेबसाइट पर 19 कोर्स के पाठ्यक्रम बनाकर डाले जाने से शिक्षकों में भारी रोष है। दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संगठन (डूटा) की अध्यक्ष डॉ. नंदिता नारायण का कहना है कि यूजीसी ने गत 10 अप्रैल को अपनी वेबसाइट पर पाठ्यक्रम बनाकर डाला है और 15 दिन के अंदर इस पर लोगों से राय मांगी है लेकिन सवाल यह है कि यूजीसी को पाठ्यक्रम बनाने का अधिकार कहां से मिला। यदि यूजीसी ही पाठ्यक्रम तय करेगा तो कमेटी ऑफ कोर्स और डिपार्टमेंट क्या करेंगे? उन्होंने कहा कि यूजीसी का यह रवैया खतरनाक है क्योंकि आगे भी वैचारिक स्तर पर और भी चीजें लादी जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि एक बड़ा सवाल शैक्षिक स्वायत्तता का भी खड़ा हो रहा है।

विवि प्रशासन की व्यवस्था पर प्रहार की कोशिश

डॉ. नंदिता नारायण ने कहा, हम डीयू के 30 कॉलेजों से फीडबैक लेकर उसे 24 अप्रैल को यूजीसी को सौंपेंगे और इस मुद्दे को लेकर आगे प्रदर्शन भी करेंगे। 2 मई को देश भर के विभिन्न शिक्षक संगठनों की बैठक होगी और 6 मई को हम जनरल बाडी की मीटिंग भी कर रहे हैं। डूटा अध्यक्ष ने कहा कि दरअसल यूजीसी विश्वविद्यालय प्रशासन की व्यवस्था पर प्रहार कर रहा है।

अपने हिसाब से बनाया जाता है कोर्स वर्क

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार का कहना है कि दरअसल यूजीसी स्टैंडर्ड फ्रेमवर्क बनाकर ऐसा कर रही है। वर्ष 2002 में भी यूजीसी ने ऐसा किया था लेकिन सवाल यह है कि यूजीसी का पाठ्यक्रम देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों की जरूरत के हिसाब से कैसे हो सकता है। उन्होंने कहा कि अच्छे विश्वविद्यालय और अच्छे शिक्षक अपने हिसाब से कोर्स वर्क बनाते हैं। हर विश्वविद्यालय की जरूरत और मानक अलग हैं उत्तर-पूर्व के विश्वविद्यालय और दक्षिण के विश्वविद्यालय के मानक अलग हो सकते हैं, ऐसे में सबको एक पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इससे कहीं शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी तो कहीं बिगड़ेगी। प्रो. अरुण कुमार ने कहा कि यूजीसी और मानव संसाधन विकास मंत्रालय मानक तय करने में जुटे हैं लेकिन विश्वविद्यालय और शिक्षकों की स्वायत्ता दाव पर लगाकर मानक तय करना ठीक नहीं है।

उच्च शिक्षा का सत्यानाश करना चाहती है यूजीसी

एकेडमिक फार एक्शन एंड डेवलेपमेंट के अध्यक्ष डॉ. आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा कि यूजीसी उच्च शिक्षा का सत्यानाश करना चाहती है। विश्व के किसी भी देश में ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि यूजीसी जो मानक लागू करना चाहती है उससे उच्च शिक्षा स्कूली शिक्षा की तरह हो जाएगी। इससे शिक्षकों का वर्कलोड भी घटेगा जिससे उनकी नौकरियां भी खतरे में आ जाएंगी। डॉ. आदित्य नारायण मिश्रा ने कहा कि पाठ्यक्रम तय करने का अधिकार हर विश्वविद्यालय को है और यूजीसी चाहता है कि 80 फीसद वह बनाकर देगा और मात्र 20 फीसद विश्वविद्यालय। यह विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर हमला है।

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