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विभागाध्यक्ष को मारने के लिए उठाया जूता!

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में छात्रों के बीच अभद्र व्यवहार और मारपीट की

By Edited By: Updated: Tue, 28 Apr 2015 10:35 PM (IST)
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राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में छात्रों के बीच अभद्र व्यवहार और मारपीट की घटनाएं सामने आती रहती हैं, लेकिन अब शिक्षक भी इससे अछूते नहीं हैं। नया मामला केमेस्ट्री विभागाध्यक्ष और इसी विभाग के शिक्षक के बीच का है। विभागाध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने आरोप लगाया है कि प्रो. रमेश चंद्रा ने उनके साथ गालीगलौज की और मारने के लिए जूता उठाया। हालांकि प्रो. रमेश चंद्रा ने जूता उठाने की बात से इन्कार किया है। उन्होंने विभागाध्यक्ष पर जाति सूचक शब्द का प्रयोग करने का आरोप लगाया है। केमेस्ट्री विभाग में इस तरह का यह पहला मामला है।

डॉ. गुरमीत सिंह का कहना है कि प्रो. चंद्रा वही कमरा मांग रहे हैं, जो वह छोड़ कर गए थे। उनकी अनुपस्थिति में यह कमरा किसी और को दे दिया गया है। सब जानते हुए भी वह बुरा बर्ताव कर रहे हैं। उन्होंने अपशब्दों का भी प्रयोग किया है। डिपार्टमेंट से कुछ दूरी पर प्रॉक्टर का दफ्तर है, इसके बावजूद बीचबचाव करने कोई नहीं आया। सूत्रों के अनुसार घटना की जानकारी प्रॉक्टर को दी गई थी, लेकिन उन्होंने इसे विभागीय स्तर पर निपटाने की बात कही। दोनों शिक्षकों ने कुलपति के उदासीन रवैये पर भी सवाल उठाए हैं। विभागाध्यक्ष ने बताया कि मामले की जानकारी कुलपति को भी लिखित रूप में दी गई है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। प्रो. चंद्रा का कहना है, 'सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय में पदभार ग्रहण करने से लेकर पूर्व सुविधाएं प्रदान करने का आदेश दिया है, फिर भी कुलपति मामले में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं। मुझे अभी तक लैब नहीं मिली है। मुझे साजिश के तहत फंसाया जाता है। मैं डीयू का वरिष्ठ प्रोफेसर हूं और कुलपति बनने का दावेदार भी। वर्ष 2000, 2005, 2010 में भी कुलपति पद का दावेदार था, लेकिन किसी न किसी वजह से मुझे विभिन्न मामलों में फंसाया गया।' उन्होंने कहा कि वर्तमान कुलपति का कार्यकाल पूरा होने वाला है और इस बार भी अपनी दावेदारी पेश करूंगा। यह सब मेरी छवि धूमिल करने के लिए किया जा रहा है।

प्रो. रमेश चंद्रा ने कहा,' विभागाध्यक्ष का रवैया मेरे प्रति अनुकूल नहीं है। उन्होंने मेरे लिए जाति सूचक शब्दों का प्रयोग किया था। इस वजह से मैंने जूता मारने के लिए कहा, लेकिन न तो जूता उठाया और न ही मारा। मैं भी बुंदेलखंड विश्वविद्यालय कुलपति रह चुका हूं और शिक्षक की गरिमा को समझता हूं। कुलपति, सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश और राष्ट्रपति को इस बारे में पत्र लिखा है।'

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