सीबीसीएस के खिलाफ देशभर के शिक्षक लामबंद
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा इस सत्र से देश के सभी विश्वविद्य
By Edited By: Updated: Thu, 14 May 2015 08:28 PM (IST)
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा इस सत्र से देश के सभी विश्वविद्यालयों में च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम (सीबीसीएस) लागू करने के फरमान से देशभर के शिक्षक लामबंद हो गए हैं। बृहस्पतिवार को वुमन प्रेस कार्प में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया सहित देश के अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों ने सीबीसीएस को भारत की विविधता पर चोट करार दिया।
प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. रोमिला थापर ने कहा कि किसी भी सरकार ने देश की शिक्षा व्यवस्था को गंभीरता से नहीं लिया है। न केवल उच्च शिक्षा बल्कि प्राथमिक शिक्षा पर भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। जो शिक्षा नीति विश्वविद्यालयों पर थोपी जा रही है वह न केवल विश्वविद्यालय की स्वायत्तता को प्रभावित करेगी बल्कि भारतीय विविधता के खिलाफ भी है। शिक्षा का मकसद केवल शिक्षित करना ही नहीं बल्कि यह सिखाना भी है कि सूचना को तार्किक ढंग से कैसे समझा जाए। 51 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में यदि एक ही पाठ्यक्रम लागू किया जाएगा तो यह कामन इंट्रेंस टेस्ट होगा और इससे कई समस्याएं आएंगी। इनमें भाषागत, क्षेत्रीय जानकारी का अभाव और गुणवत्ता प्रमुख हैं। जेएनयू की प्रो. जानकी नायर ने कहा कि पिछले 20 वर्षो में प्राथमिक और उच्च शिक्षा धीरे-धीरे निजी हाथों में गई है। गुणवत्तापरक शिक्षा न होने के कारण विश्व के प्रमुख 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। जामिया मिलिया इस्लामिया की प्रो. फरीदा खान ने कहा कि देश में काफी पढ़े-लिखे लोग भी रोजगार नहीं पा रहे हैं। सरकार गरीबी, सामाजिक न्याय आदि विषयों पर ध्यान नहीं दे रही है। प्रो. सतीश देशपांडे ने कहा कि यूजीसी पाठ्यक्रम थोप रही है। इसमें किसी भी शिक्षाविद से राय नहीं ली गई है। यदि 80 फीसद पाठ्यक्रम पूरे देश में लागू होगा तो वह क्षेत्र विशेष के लिए भी उचित नहीं है। विश्वविद्यालय क्षेत्र की सामाजिक, आर्थिक राजनीति और भौगोलिक परिस्थितियों को भी पाठ्यक्रम में जगह देते हैं, ताकि स्थानीय छात्रों की समझ विकसित हो सके।
जेएनयू की प्रो. आयशा किदवई ने कहा कि सरकार क्षेत्रीय विविधता और संस्कृति पर प्रहार कर रही है। डीयू के अपूर्वानंद ने कहा कि यूजीसी खुद पाठ्यक्रम को लेकर स्पष्ट नहीं है। आनन-फानन में पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है। डीयू शिक्षक संघ की अध्यक्ष डॉ. नंदिता नारायण ने कहा कि उच्च शिक्षा के लिए बेहतरी के लिए सरकार कुछ नहीं कर रही है। आल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज एसोसिएशन के महासचिव अशोक बर्मन ने कहा कि जिस तरह से गैरजरूरी चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम का विरोध किया गया, उसी तरह से च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम का भी विरोध करना आवश्यक है।
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