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डीयू की स्वायत्तता पर लगातार प्रहार हुआ है

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी नोटिफिकेशन के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने वर

By Edited By: Updated: Sun, 26 Jun 2016 08:31 PM (IST)
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विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा जारी नोटिफिकेशन के विरोध में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने वर्तमान में न केवल मूल्यांकन का बहिष्कार किया है बल्कि दाखिले के बहिष्कार की भी घोषणा की है। 30 जून से दाखिला प्रक्रिया डीयू में शुरू होने वाली है। यूजीसी के नोटिफिकेशन के विरोध, तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति, डीयू में शिक्षकों की गुटबाजी तथा नियुक्ति की राजनीति और शिक्षक राजनीति सहित अन्य मुद्दों पर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) की अध्यक्ष नंदिता नारायण से वरिष्ठ संवाददाता अभिनव उपाध्याय की बातचीत :

30 जून से डीयू में आवेदन करने वाले छात्रों का दाखिला शुरू हो रहा है, लेकिन आप लोगों ने बायकॉट किया है? क्या इससे दाखिला प्रभावित नहीं होगा?

बायकॉट का फैसला शिक्षकों की सहमति से लिया गया है। इससे निश्चित रूप से दाखिला प्रक्रिया प्रभावित होगा, लेकिन प्रिंसिपल नॉन टीचिंग स्टाफ के साथ मिलकर इसका विकल्प निकालेंगे। इस बारे में सरकार को भी सोचना चाहिए। केवल शिक्षकों के ऊपर ही दबाव डालना ठीक नहीं है।

यूजीसी के नोटिफिकेशन को आप कैसे शिक्षकों की हितों के खिलाफ मानती हैं, जबकि इसमें कुछ संशोधन हो चुका है?

एपीआइ का मसला बहुत गंभीर है। 2008 से शिक्षकों की पदोन्नति नहीं हुई है। कुछ मसले सुलझे हैं लेकिन बाकी पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, वरना शिक्षकों को सड़कों पर नहीं उतरना पड़ता।

शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति का मसला अभी अटका है, ऐसे में तदर्थ शिक्षकों के लिए नया फरमान आया है, इसे किस तरह से देखती हैं?

दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस के डायरेक्टर के साथ हमारी बैठक हुई है। उन्होंने कहा कि तदर्थ शिक्षकों को परेशान करने का हमारा कोई इरादा नहीं है। हमने स्पष्ट कर दिया है कि जो लोग तदर्थ पढ़ा रहे हैं उनकी पुन: ज्वाइनिंग हो और नए विषयों में दूसरे तदर्थ शिक्षक लिए जाएं। जो भी निर्णय हो उसमें चुने हुए प्रतिनिधि भी शामिल हों। उन्होंने कहा है कि पत्र को लेकर चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

आप लोग शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता की बात करते हैं, डीयू को कितना स्वायत्त मानती हैं?

डीयू स्वायत्तता पर लगातार प्रहार हुआ है। यूजीसी के नियम हमारे ऊपर बाध्य हैं। च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम या पूर्व में सेमेस्टर सिस्टम का मामला ऐसे ही थे। आज शिक्षकों का ग्रेडिंग, कंटेंट और गुणवत्ता को लेकर कोई नियंत्रण नहीं है। धीरे-धीरे निजीकरण की तरफ बढ़ रही है। निजी संस्थानों की दुकान चलाने के लिए यह किया जा रहा है।

क्या आप मानती हैं कि शिक्षकों के विभिन्न गुट हो जाने के कारण यूजीसी के नोटिफिकेशन के विरोध में चल रहा आंदोलन प्रभावित हुआ है?

मैं इसकी डिटेल में नहीं जाना चाहूंगी लेकिन हमारी बैठकों में सभी लोग हिस्सा ले रहे हैं और सभी शिक्षक संगठन पर शिक्षकों का दबाव है क्योंकि यह लड़ाई सभी शिक्षकों के हक की है।

डीयू की शिक्षक राजनीति को यहां पर शिक्षकों की नियुक्ति की राजनीति से जोड़ा जाता है, आप इससे कितनी सहमत हैं?

मैं इससे सहमत नहीं हूं। डूटा एप्वाइंटमेंट की पॉलिटिक्स नहीं करता है। डूटा शिक्षकों के हितों के लिए शुरू से संघर्षरत रहा है। हमारी शुरू से मांग है कि जो पढ़ा रहे हैं उन्हें निकाला नहीं जा सकता। यहां विगत कुलपति के कार्यकाल में जिस तरह की नियुक्तियां हुई हैं उसका विरोध लोगों ने किया है।

पूर्व कुलपति के कार्यकाल में और वर्तमान कुलपति के कार्यकाल में किस तरह का अंतर महसूस करती हैं?

पिछले कुलपति के कार्यकाल में बातचीत के दरवाजे बंद थे, जो अब खुल गए हैं। वर्तमान कुलपति प्रो. योगेश त्यागी लोगों से मिल रहे हैं। मैं खुद प्रतिनिधियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर उनसे मिली हूं। मुझे खुशी है कि वह हमारे लोकतांत्रिक हकों के प्रति गंभीर हैं।

अब आगे की क्या रणनीति है?

सोमवार को हमारी कार्यकारिणी की बैठक है। इसमें विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होगी। हम इस मुद्दे को लेकर छात्रों और अभिभावकों के बीच भी जाएंगे। इसके अलावा बैठक में होने वाले निर्णयों को आगे ले जाएंगे।

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