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विचारों की मजबूती के लिए साहित्य का डिजिटलाइजेशन जरूरी : जे. नंद कुमार

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार न

By Edited By: Updated: Thu, 12 Jan 2017 11:03 PM (IST)
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राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली :

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार ने कहा कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक विचार, एक आदर्श से यह एक राष्ट्र है। राष्ट्रीय साहित्य के संदर्भ में इस विचार को समाज के अन्दर पहुंचाने के लिए पहले जो साहित्य निर्माण होता रहता था, उस साहित्य के प्रचार के बारे में हमें सोचना होगा। उस तरह के साहित्य से मिले विचार से ही पूर्व में यह राष्ट्र शक्तिशाली बना था।

इन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र तथा नेशनल बुक ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में विश्व पुस्तक मेले में आज राष्ट्रीय साहित्य एवं डिजिटल मीडिया विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई। इस अवसर पर सुरुचि प्रकाशन द्वारा 'कल्पवृक्ष' नाम से पुस्तक का विमोचन संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख जे. नन्द कुमार द्वारा किया गया।

कुमार ने कहा कि भारत में साहित्य अनेक भाषाओं में लिखा गया है, लेकिन उसमें विचार एक ही है। पूरे भारत को जोड़कर रखने वाला साहित्य, भारत को एक दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाले साहित्य को ज्यादा प्रचार गत कुछ सालों से नहीं मिल रहा है। उन्होंने बताया कि आज के डिजिटल युग में माना जा रहा है कि पुस्तक पढ़ना कम हो गया है, लेकिन ऐसा नहीं है। आज भी प्रकाशन संस्थाओं की संख्या बढ़ रही है, इससे पता चलता है कि लोग पुस्तकें खरीद कर पढ़ रहे हैं। पुस्तक मेले में बड़ी संख्या में युवाओं द्वारा पुस्तकें खरीदना इसका प्रमाण है।

आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने बताया कि डिजिटल मीडिया विचारों के प्रचार के लिए आज एक वैकल्पिक स्त्रोत के रूप में उभरा है। भारत के विषय में जो भी चर्चा चली है, जिसमें चाहे जम्मू-कश्मीर, गोहत्या पर प्रतिबन्ध, भारत की सास्कृतिक विरासत का विषय हो, इन सारे विषयों पर हमें यह दिखता है कि एक काउंटर व्यू डिजिटल मीडिया में अचानक प्रमाणिक तथ्यों, संदर्भ सहित आता है और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ प्रिंट मीडिया को भी उसका सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए औरंगजेब रोड के नाम परिर्वतन का विषय आया। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर उस मार्ग का नाम क्यों न हो, स्वभावत: 70-80 के दशक की तरह इस विषय को ले जाने की कोशिशें होने लगीं कि क्या सेकुलर है और क्या कम्यूनल। वो दौर होता तो औरंगजेब कितना सेकुलर था, कितना अच्छा प्रशासक था, कितना श्रेष्ठ था यह बताने का बहुत प्रयास होता। ऐसी स्थिति में शायद कुछ निर्णय भी नहीं होता। लेकिन डिजिटल मीडिया का प्लेटफार्म था जिसने यह विषय पकड़ा, उस पर चर्चाएं कीं। उस पर साहित्य से संदर्भ भी निकाले, नया साहित्य भी डिजिटल प्लेटफार्म पर प्रस्तुत हुआ और चर्चा इस दिशा में गई कि बिना कुछ समय गंवाए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर उस रास्ते का नामातरण हुआ।

हिन्दी ब्लॉगर नलिन चौहान ने कहा कि आज प्रिंट मीडिया डिजिटल मीडिया को फॉलो कर रहा है। यूनिकोड के आने से अब हम अपने विचार डिजिटल मीडिया द्वारा सुगमता से सबको बता सकते हैं।

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