दिल्ली की आबोहवा को जहरीला कर रहा फर्नेस ऑयल
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली इसे सरकारी अनदेखी कहें या कुछ और.. दिल्ली के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों मे
By JagranEdited By: Updated: Tue, 21 Mar 2017 01:00 AM (IST)
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली
इसे सरकारी अनदेखी कहें या कुछ और.. दिल्ली के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में अभी भी फर्नेस और रबड़ ऑयल का उपयोग हो रहा है। जबकि इसके प्रयोग पर 20 वर्ष पूर्व प्रतिबंध लग चुका है। यह सच पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) ने स्वयं अपनी रिपोर्ट में बयां किया है। ईपीसीए ने इस रिपोर्ट पर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) से जवाब मांगा है और बृहस्पतिवार को बैठक भी बुला ली है। जानकारी के मुताबिक फैक्ट्रियों में फर्नेस ऑयल के प्रयोग से जो धुआं निकलता है, वह आबोहवा में कार्बन मोनोक्साइड जैसी जहरीली गैसें घोलता है। इससे कैंसर जैसे जानलेवा रोगों को भी बढ़ावा मिलता है। 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने इसके उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। कई शिकायतें मिलने पर हाल ही में ईपीसीए की एक टीम ने राजधानी के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों का निरीक्षण किया। टीम में ईपीसीए अध्यक्ष भूरेलाल, सदस्य सचिव डा. सुनीता नारायण तथा सदस्य अनुमिता राय चौधरी सहित अनेक अन्य लोग भी शामिल थे। इस टीम ने वजीरपुर, जीटी करनाल रोड, समयपुर बादली इत्यादि क्षेत्रों में काफी फैक्ट्रियों का औचक निरीक्षण जिसमें फर्नेस ऑयल ही नहीं, रबड़ यानी कि टायरों से निकला ऑयल भी प्रयोग होता मिला। टीम को वहां यह ऑयल सप्लाई करने वाले कई ट्रक भी खड़े हुए मिले। पूछने पर ड्राइवरो ने बताया कि यह ऑयल वे पानीपत एवं मथुरा रिफाइनरी से लाते हैं। हैरानी की बात यह भी कि दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में लिखित में दे रखा है कि दिल्ली में फर्नेस ऑयल का उपयोग नहीं होता।
फर्नेस ऑयल में मौजूद सल्फर तत्व आबोहवा को करता प्रदूषित फर्नेस ऑयल यानी जला हुआ काला तेल और ऑयल रिफाइनरी का एक बाय प्रोडक्ट औद्योगिक इकाइयों में बॉयलर और टरबाइन चलाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इनमें सल्फर की काफी अधिक मात्रा पाई जाती है। यही वायु प्रदूषक तत्व उत्पन्न करता है।
जवाब मांगा है, बैठक भी बुलाई हमने अपने निरीक्षण में खुद पाया है कि फैक्ट्रियों में फर्नेस ऑयल ही नहीं, रबड़ ऑयल का भी प्रयोग हो रहा है। पानीपत और मथुरा रिफाइनरी से लाया जा रहा यह गंदा ऑयल राजधानी में धड़ल्ले से प्रयोग में लाया जा रहा है। यह सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का खुला उल्लंघन है। हमने डीपीसीसी से इस पर जवाब मांगा है, बृहस्पतिवार को बैठक भी बुलाई है जिसमें इसी मुददे पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।
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