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सूरजकुंड में 'सोने की चिड़िया' की तलाश में खाक छान रहे विदेशी पर्यटक

विदेशी पर्यटक यहां उस 'साेने की चिड़िया' की तलाश में आते हैं। मेले में इस महादेश की समृद्ध सभ्‍यता और संस्‍कृति की झांकी विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

By Ramesh MishraEdited By: Updated: Thu, 08 Feb 2018 02:23 PM (IST)
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सूरजकुंड में 'सोने की चिड़िया' की तलाश में खाक छान रहे विदेशी पर्यटक

फरीदाबाद [रमेश मिश्र]। सूरजकुंड मेले में जाकर ही इस जिज्ञासा को विराम मिला कि आखिर यहां इतनी बड़ी तादाद में सैलानियों की आवक क्‍यों होती है। आखिर क्‍या वजह होगी, जिसकी वजह से यहां विदेशी आना नहीं भूलते हैं। दरअसल, मेले में इस महादेश की समृद्ध सभ्‍यता और संस्‍कृति की झांकी विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह बरबस उन्‍हें यहां खींच लाती है।

'साेने की चिड़िया' की तलाश

विदेशी पर्यटक यहां उस 'साेने की चिड़िया' की तलाश में आते हैं, जिन्‍होंने इतिहास के पन्‍नों में भारत के गौरवशाली अतीत को पढ़ा और सुना है। कुछ पर्यटक तो इस मेले में भारत की जादू टोने वाले छवि के साथ आते हैं और इस धारणा से मुक्‍त होकर जाते हैं। आइए जानते हैं विदेशी पर्यटकों के मन की बात।

संस्‍कृति की बारीकियों को समझने में जुटे ताइशो

सोने की चिड़िया की तलाश में जापान के टोकियो शहर से आए ताइशो भी सूरजकुंड मेले की खाक छान रहे हैं। उनके साथ छात्रों का एक समूह दिल्‍ली में ठहरा है। यह दल विदेशी सभ्‍यता और संस्‍कृति पर अनुसंधान कर रहा है। ताइशो सूरजकुंड मेले के चमक-दमक वाले बाजार से प्रभावित नहीं हैं।

गौरवपूर्ण इति‍हास है

उनकी दिलचस्‍पी इस देश की विविधतापूर्ण सभ्‍यता और उसकी संस्‍कृति की बारीकियों को समझने में ज्‍यादा है। ताइशो हरियाणा की उस विरासत को समझने में जुटे हैं, जिसका गौरवपूर्ण इति‍हास है। वह सूरजकुंड में हस्तिनापुर के समृद्धि इतिहास को भी खंगाल रहे हैं।

महाभारत के सभी प्रमुख पात्रों से परिचित 

इस काल की गौरवगाथा से भी वह भलीभांति वाकिफ हैं। वह महाभारत के सभी प्रमुख पात्रों के नामों से भी परिचित हैं। ताइशो यह भी जानते हैं कि लॉर्ड कृष्‍णा का इस महाभारत में अहम रोल रहा है। इनका कहना है कि मेले में उनको कई अहम जानकारी हासिल हो रही हैं।

जादू टोना वाली छवि से मुक्‍त हुआ भारत

थाइलैंड की छात्रा सिरिकित मेले में लगे हरियाणा राज्‍य के 'अपना घर' स्‍टॉल पर ठहर गई हैं, जहां रखे सभ्‍यता के कुछ अवशेष और औजार हरियाणा के सामाजिक, सांस्‍कृतिक और आर्थिक ताने-बाने की दास्‍तां को बयां कर रहे हैं। ये संसाधन उनको इस महादेश की विरासत को समझने में सहायक बना रही हैं।

मन से निकल गई धारणा 

सिरिकित ने कहा कि मेरे मन में भारत के प्रति जादू टोने वाले देश के रूप में एक छवि अंकित थी। लेकिन अब यह धारणा मन से निकल गई। 'अपना घर' में लौह धातु के बने भारी भरकम हल और कृषि से जुड़े अन्‍य उपकरण उनकी जिज्ञासा को और बढ़ा रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि कृषि उपकरण यह बताते हैं कि यह देश यूं ही नहीं कृषि प्रधान देश रहा है।

ग्रामीण भारत की तस्वीर  

दही से छाछ को अलग करने के पुराने विधान और उसके उपकरणों (मथानी) को सिरिकित अपलक निहारती हैं। यहां की अनोखी पगड़ी और परंपरागत हुक्के के चलन ने तो जैसा उनका मन ही मोह लिया। उनकी निगाह उस महिला के घूंघट पर टिकी है, जो अपने मुख को ढककर छाछ निकालने के काम को अंजाम दे रही है।

बदल गया है भारत

विदेशी छात्रा ने कहा कि 21वीं सदी का भारत इससे काफी इतर है। यह देश बदल गया है। हालांकि उन्‍होंने पलट के सवाल किया कि क्‍या आज भी इस तरह घूंघट का रिवाज है। अपने इस सवाल का जवाब भी उन्‍होंने दे दिया। अपने शोध कार्य पर निकली सिरिकित कहतीं हैं कि अब भी ग्रामीण समाज में घूंघट चलन में है। लेकिन युवा पीढी में बदलाव देखने को मिल रहा है। 

युवाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बने विदेशी स्‍टॉल

एक ओर जहां विदेशी पर्यटक मेले में हिंदुस्‍तान के विरासत को समझ रहे हैं, वहीं देश का युवा तबके को यहां के विदेशी स्‍टॉल खूब रास आ रहे हैं। सार्क देशों के स्‍टॉल में सजे समान उनको यहां की सभ्‍यता समझने में सहायक बन रहे हैं। करीब-करीब सभी सार्क देश बाजार के बहाने ही सही अपनी सभ्‍यता के संवाहक बन रहे हैं। उनके देश में निर्मित समान समृद्ध सभ्‍यता की कहानी का बयां कर रहे हैं। 

सभ्‍यता और संस्‍कृति को सहेजने का दुर्लभ मंच

मेले में मुस्‍तैदी से तैनात सहायक जिला लोक संपर्क अधिकारी मुकेश धामा का कहना है कि यह मेला कई लिहाज से अनूठा है। भारतीय सभ्‍यता और संस्‍कृति को सहेजने का एक दुर्लभ मंच है। इसके साथ यह मेला अपने पड़ोसी मुल्‍कों की सभ्‍यता और संस्‍कृति को समझने और जानने का मंच मुहैया कराता है। उन्‍होंने कहा कि हमारा यह मंच बाजार में दिलचस्‍पी रखने वाले लोगों को बाजार का साझा प्‍लेटफार्म भी मुहैया कराता है।

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