जानें सवा घंटे तक दिल की धड़कन बंद रहने के बावजूद युवक को कैसे मिली नई जिंदगी
23 वर्षीय आसिफ नामक युवक को गंभीर हार्ट अटैक के बाद करीब सवा घंटे (1.10 घंटा) तक हृदय की धड़कन बंद रही।
नई दिल्ली [ जेएनएन ] । चिकित्सा के चमत्कार से एक बार फिर मरीज को जिंदगी मिली। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के रहने वाले व इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी चुके 23 वर्षीय आसिफ नामक युवक को गंभीर हार्ट अटैक के बाद करीब सवा घंटे (1.10 घंटा) तक हृदय की धड़कन बंद रही।
फिर भी सरिता विहार स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने हार नहीं मानी और दुर्लभ एंजियोप्लास्टी कर उसे जिंदगी थी। हालांकि एक समय ऐसा भी आया जब डॉक्टरों ने उसके बचने की आशा छोड़ दी थी पर उनका प्रयास रंग लाया। डॉक्टरों का कहना है कि ऐसे मामले बहुत विरले ही होते हैं। डॉक्टरों के अनुसार आसिफ के पिता अलीगढ़ में ही चाय की दुकान चलाते हैं।
बड़ी मेहनत करके अपने बेटे को पढ़ाया है। इंजीनियरिंग करने के बाद वह नौकरी की तलाश में दिल्ली आया था और 15 दिन से यहीं हॉस्टल में रह रहा था। 4 फरवरी को सीने में दर्द (हार्ट अटैक) होने पर उसके दोस्त उसे लेकर दोपहर करीब डेढ़ बजे अस्पताल के इमरजेंसी में पहुंचे।
इमरजेंसी में पहुंचने के बाद उसे गंभीर हार्ट अटैक हुआ। इस वजह से उसकी धड़कन व ब्लड प्रेशर का पता नहीं चल पा रहा था। अस्पताल इमरजेंसी की विभागाध्यक्ष डॉ. प्रियदर्शनी पाल सिंह ने कहा कि करीब सवा घंटे उसे सीपीआर (कार्डियक पल्मोनरी रिससिटेशन) दिया गया। इसे साधारण बोलचाल में हृदय का मसाज भी कहा जाता है। इसके अलावा इलेक्ट्रिकल शॉक, दवाएं दी गई व वेंटिलेटर पर डाला गया।
डॉक्टरों के अनुसार उसे वेंटिलेटर स्पोर्ट के साथ ही कैथ लैब में ले जाया गया। इस दौरान डॉक्टर लगातार उसके हृदय का मसाज कर रहे थे। ताकि हृदय में रक्त संचार बरकरार रहे। कैथ लैब में उसे दोबारा हार्ट अटैक हुआ फिर भी डॉक्टरों ने उसकी एंजियोप्लास्टी के जरिये मुख्य धमनी में स्टेंड डालकर ब्लॉकेज साफ किया। मुख्य धमनी में रक्त थक्का होने के कारण उसे हार्ट अटैक हुआ था।
अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के वरिष्ठ कंसल्टेंट व संयोजक (क्वार्डिनेटर) डॉ. एनएन खन्ना ने कहा कि एंजियोप्लास्टी के अलावा कई एड्रेनालाइन इंजेक्शन मरीज के हृदय में देना पड़ा। इसके बाद ब्लड प्रेशर में सुधार हुआ। उसके हृदय में बैलून पंप भी लगाया गया। इस प्रोसिजर के बाद उसे आइसीय में भर्ती किया गया। कोमा में होने के कारण मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।
इसलिए उसका मस्तिष्क प्रभावित होने का खतरा था। इससे बचाने के लिए 35 डिग्री सेंटीग्रेड पर उसके मस्तिष्क को ठंडा कर उसमें ऑक्सीजन की जरूरत कम की गई। फिर भी वह दो दिन तक कोमा में रहा। डॉक्टर उसे ब्रेन डेड समझने लगे थे लेकिन तीसरे दिन जांच से पहले उसे होश आया। फिर धीरे धीरे हृदय की कार्यक्षमता में भी सुधार होता चला गया। वह स्वस्थ्य है और उसे बृहस्पतिवार को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
युवा मरीजों के मामले में 20 मिनट का सीपीआर काफी नहीं
डॉ. एनएन खन्ना ने कहा कि अक्सर देखा गया है कि हार्ट अटैक के मरीजों को 15-20 मिनट तक सीपीआर देने पर यदि हृदय गति में सुधार नहीं होता है तो डॉक्टर सीपीआर देना बंद कर देते हैं। जबकि आसिफ के इलाज में करीब सवा घंटे तक हृदय का मसाज किया गया। इसलिए युवा मरीजों के मामले में 15-20 मिनट में यदि हृदय गति वापस न आए तो भी प्रयास बंद नहीं करना चाहिए।
दूसरी अहम बात यह है कि हृदय बंद होने के बावजूद ब्लॉकेज हटाने के लिए एंजियोप्लास्टी का फैसला किया गया और प्रयास सफल रहा। मरीज को जब अस्पताल लाया गया तो परिवार का कोई सदस्य उसके साथ नहीं था पर अस्पताल ने इलाज के खर्च की परवाह नहीं की। बाद में उसके पिता से फोन पर संपर्क किया गया।