सिर्फ 10 दिन में छूट जाएगी फेसबुक-Whatsapp की लत, देश के नामी संस्थान ने किया दावा
शराब की तरह फेसबुक और वॉट्सएप की लत छुड़वाने का दावा करने वाले संस्थान सामने आ रहे हैं।
गाजियाबाद (जेएनएन)। इंटरनेट की वर्चुअल दुनिया में युवाओं के लिए वाट्सएप, फेसबुक का अत्यधिक इस्तेमाल खतरनाक होता जा रहा है तो ऑनलाइन गेम व चैटिंग का नशा बच्चों-किशोरों तक को बीमार बना रहा है। सोशल मीडिया की युवाओं की बढ़ती लत ने मां-बाप को परेशान कर दिया है, लेकिन अब एक सकारात्मक खबर सामने आ रही है। शराब की तरह फेसबुक और वॉट्सएप की लत छुड़वाने का दावा करने वाले संस्थान सामने आ रहे हैं। ताजा मामले में इंटरनेट की लत छुड़वाने की दिशा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के राष्ट्रीय व्यसन उपचार केंद्र ने इसकी शुरुआत भी कर दी है।
इस कड़ी में दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद स्थित मुख्यालय में वाट्सएप और फेसबुक के साथ इंटरनेट की लत को छुड़वाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इतना ही नहीं, दिल्ली स्थित AIIMS में इंटरनेट की लत को छुड़वाने के लिए काउंसलिंग क्लासेज भी दी जा रही है।
राष्ट्रीय व्यसन उपचार केंद्र के आचार्य डॉ. राकेश लाल की मानें तो इंटरनेट की लत का सर्वाधिक प्रभाव दिमाग पर पड़ता है। वहीं, इसके दुष्प्रभाव की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि इंटरनेट की तल के शिकार लोग चिड़चिड़े स्वभाव का होने के साथ गुस्सैल और आलसी भी हो जाते हैं। जाहिर इससे उनकी सामान्य दिनचर्या के साथ उनका जीवन भी प्रभावित होता है। उन्होंने बताया कि इंटरनेट से दूर होने पर उस शख्स को अचानक तेज पसीना भी आ जाता है और उसे लगता है कि वह अभी बेहोश हो जाएगा।
डॉ. रोशन लाल का कहना है कि इंटरनेट की लत को आसानी से छुड़वाया जा सकता है, लेकिन समय बढ़ने के साथ इंटरनेट की तल से पीछा छुड़वाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। बच्चे और टीनएजर इस लत का सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। युवाओं में कमोबेश इस लत का लेवल कुछ कम है। उन्होंने कहा कि पीड़ित इंटरनेट पर ज्यादा समय देने लगता है और उसे पता ही नहीं चलता कि कब वह इसका अडिक्ट बन गया है।
शराब से ज्यादा कठिन है इंटरनेट की लत छुड़वाना
विशेषज्ञों की मानें तो इंटरनेट की तल के शिकार लोग ख्याली दुनिया में रहने लगते हैं। समस्या तब और बढ़ जाती है जब नेट पर मौजूद तथ्यों और विचारों को ही एक मात्र सत्य मानने लगते हैं। ऐसे में हालात में इंटरनेट की लत को छुड़वाना शराब की लत छुड़वाने से भी कठिन हो जाता है।
दिल्ली के दो सगे भाइयों की कहानी आपको कर देगी हैरान
दिल्ली के दो सगे भाइयों की कहानी से इस खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है जो इंटरनेट की लत और ऑनलाइन गेम के नशे में ऐसे चूर हुए कि अपनी सुधबुध ही खो बैठे। न खाने की चिंता न नहाने की। धीरे-धीरे वे ऐसी मानसिक बीमारी से ग्रसित हो गए कि पैंट में शौच हो जाने पर भी इंटरनेट पर ऑनलाइन गेम खेलना बंद नहीं करते थे। दो बार तो उनके घर में रहते हुए लूट हो गई, लेकिन दोनों भाइयों ने ऑनलाइन खेल जारी रखा।
वे घर-परिवार, पढ़ाई-लिखाई यहां तक कि खुद का ख्याल रखना भी भूल गए और उनकी दुनिया इंटरनेट तक सिमट कर रह गई। भारत में इंटरनेट एडिक्शन (इंटरनेट की लत) का यह सबसे विचित्र मामला है। हाल ही में यह अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल (हाई रिस्क बिहेवियर एंड एडिक्शन) में प्रकाशित हुआ है।यह मामला प्रकाश में आने के बाद डॉक्टरों का कहना है कि इंटरनेट एडिक्शन नाम की बीमारी बच्चों व युवाओं में तेजी से बढ़ रही है। यह डिजिटल होते भारत के लिए बड़ी चेतावनी है। बच्चों के इंटरनेट इस्तेमाल करने, घंटो ऑनलाइन गेम व चैटिंग करने पर रोक नहीं लगाई गई तो आने वाले दिनों में परिणाम ज्यादा घातक होंगे।
दोनों भाइयों का इलाज करने वाले मनोचिकित्सक डॉ. अंकुर सचदेवा (अभी ईएसआईसी अस्पताल फरीदाबाद में कार्यरत) ने कहा कि उनके माता-पिता सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर हैं। वे अपने दोनों बेटों को लेकर इलाज के लिए आरएमएल अस्पताल पहुंचे थे।
तब एक की उम्र 22 और दूसरे की 19 साल थी। उनका बड़ा बेटा इंजीनियरिंग दूसरे वर्ष का छात्र था और छोटा 12वीं क्लास में पढ़ता था। घर में इंटरनेट का कनेक्शन होने के चलते उन्हें ऑनलाइन गेम खेलने की लत लग गई।
शुरुआत में वे दो से चार घंटे ही खेलते थे, लेकिन धीरे-धीरे वे प्रतिदिन 14 से 18 घंटे तक ऑनलाइन गेम खेलने में ही व्यस्त रहने लगे। दोनों पढ़ने में बहुत तेज थे, लेकिन दो साल से ऑनलाइन गेम का नशा ऐसा चढ़ा कि वे क्लास में फेल कर गए। चिड़चिड़ापन होने लगा। वे दिन-रात गेम में ही व्यस्त रहते थे।
रोकने पर अपने माता-पिता के साथ गालीगलौज व मारपीट भी करते थे और उन्हें कमरे में बंद कर देते थे। ऑनलाइन गेम में दिक्कत यह है कि उसे बीच में छोड़ने पर गेम पूरा नहीं हो पाता। ऐसे में वे दिन-रात का फर्क भूल गए। उनके व्यवहार में ऐसा बदलाव आया कि खेलते समय उनके पैंट में शौच हो जाता था।
वे कई दिनों तक कपड़ा नहीं बदलते थे, खाना नहीं खाते थे, कोई फोन पिक नहीं करते थे और खेल जारी रखते थे। घर में कोई बाहरी व्यक्ति प्रवेश भी कर जाए तब भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। दो बार उनके घर में लूट हो गई और वे कमरे में खेलते रहे। वे एक महीने तक आरएमएल अस्पताल में भर्ती रहे।
इसके अलावा डॉक्टरों ने छह महीने तक उनका फालोअप किया। डॉक्टरों ने उनका चिड़चिड़ापन दूर करने और पूरी नींद लेने के लिए दवाएं दी। इसके अलावा उन्हें जब भी गेम खेलने की बेचैनी होती तो उन्हें कम समय वाला वीडियो गेम खेलने का मौका दिया जाता। तब जाकर उनके व्यवहार में दोबारा बदलाव आया और पढ़ाई लिखाई भी शुरू की।