केजरीवाल के 21 विधायकों की सदस्यता पर 14 जुलाई को होगा आर या पार
अरविंद केजरीवाल की सरकार ने अपनी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव का पद देते हुए उन्हें विभिन्न मंत्रालयों के काम-काज में सहयोग का जिम्मा दिया था।
By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 29 Jun 2016 07:54 AM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी (AAP) के 21 विधायकों को 14 जुलाई को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया है। अगर चुनाव आयोग ने इन्हें दोषी पाया तो इनकी सदस्यता जा सकती है। चुनाव आयोग ने AAP के 21 विधायकों को लगे आरोपों पर जवाब दो टूक देने के लिए कहा है।
चुनाव आयोग के मुताबिक अरविंद केजरीवाल सरकार की ओर से इन विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर रखे जाने के मामले में कोई फैसला लिए जाने से पहले इन्हें अपना पक्ष व्यक्तिगत रूप से रखने का मौका दिया गया है। इन विधायकों ने आयोग की ओर से मिले नोटिस के जवाब में यह अनुरोध किया था, जिसे आयोग ने मान लिया है।दिल्ली में पूर्ण राज्य के लिए जनमत संग्रह पर अब कांग्रेस भी बोली 'NO'
यूं पैदा हुआ विवाद
यूं पैदा हुआ विवाद
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार ने अपनी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव का पद देते हुए उन्हें विभिन्न मंत्रालयों के काम-काज में सहयोग का जिम्मा दिया था। हालांकि सरकार का दावा है कि इस पद के साथ उन्हें ना तो कोई अधिकार दिए गए हैं और ना ही कोई लाभ। उल्टा नियुक्ति के आदेश में साफ तौर पर लिखा गया है कि उन्हें इस काम के लिए अलग से कोई लाभ नहीं दिया जाएगा। मगर इस अधिसूचना में यह जरूर कहा गया है कि वे इस जिम्मेवारी को पूरा करने के लिए संबंधित मंत्रालय के कार्यालय और यातायात के साधनों का उपयोग कर सकेंगे।राष्ट्रपति ही लेंगे अंतिम फैसला
चुनाव आयोग की रिपोर्ट के बाद इस पर भारत के राष्ट्रपति फैसला लेंगे। राष्ट्रपति इस मामले में केंद्रीय मंत्रिपरिषद से राय नहीं लेते हैं। इस मामले में चुनाव आयोग ही अपनी रिपोर्ट भेज सकता है। संविधान की तमाम व्याख्याओं के अनुसार ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में कानूनी रूप से केंद्र सरकार या मंत्रिपरिषद का कोई रोल नहीं है। आम आदमी पार्टी ने एक कानून बनाकर राष्ट्रपति को भेजा था, लेकिन राष्ट्रपति ने मंज़ूरी नहीं दी। अब यह मामला दिल्ली सरकार के ऊपर तलवार की तरह लटक रहा है।लाभ का पद है संसदीय सचिव संविधान के मुताबिक संसदीय सचिव लाभ का पद है. लाभ के पद पर विधायकों का बैठना, उन्हें विधायिका से अलग करता है. साथ ही संविधान मंत्रियों के लिए संसदीय सचिव नियुक्त करने की इजाजत नहीं देता।विधायिका के कुल सदस्यों के 10 फीसद को ही मंत्री या संसदीय सचिव बनाया जा सकता है।
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