'साइलेंट किलर' है दिल्ली का प्रदूषण, 'मेडिकल इमरजेंसी' जैसे हालात: एम्स
एम्स में आयोजित प्रेसवार्ता में डॉ. रणदीप गुलेरिया ने वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इसे मेडिकल इमरजेंसी करार दिया है।
नई दिल्ली [जेएनएन]। दिल्ली की प्रदूषित आबोहवा को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने साइलेंट किलर बताया है। उन्होंने कहा कि इस प्रदूषित हवा का आने वाली पीढ़ी पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। बच्चों के फेफड़े तक प्रभावित हो सकते हैं, बड़े होने पर उन्हें सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। प्रदूषित हवा में जो कण मौजूद हैं, उनसे खून की नली तक सिकुड़ सकती है, जिससे हृदयाघात की आशंका है।
यह मेडिकल इमरजेंसी है
एम्स में आयोजित प्रेसवार्ता में डॉ. रणदीप गुलेरिया ने वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति को देखते हुए इसे मेडिकल इमरजेंसी करार दिया। उन्होंने बताया कि जब प्रदूषण के कण बुजुर्गों और बच्चों की सांस नली में जाते हैं, तो उससे नली में सिकुड़न और सूजन आ जाती है। अस्थमा और दिल की बीमारी से जूझ रहे लोगों को ऐसे समय में सांस लेना मुश्किल हो जाता है।
30 हजार लोगों की मौत
डॉ. गुलेरिया ने कहा कि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रदूषण से दिल्ली-एनसीआर में हर साल करीब 30 हजार लोगों की मौत होती है, लेकिन इसे पुष्ट करना बड़ा मुश्किल है। दिल्ली में जो स्मॉग छाया है, उसका असर 48 और 72 घंटे के बाद दिखेगा। पिछले साल ऐसा देखने को मिला था कि अस्पतालों में सांस की बीमारी और दिल के मरीजों की संख्या में 20 फीसद का इजाफा हो गया था। एम्स में भी ऐसे मरीज आना शुरू हो गए हैं।
मास्क और एयर प्यूरीफायर भी ज्यादा कारगर नहीं
डॉ ने बताया कि प्रदूषण से बचने के लिए मास्क और एयर प्यूरीफायर भी ज्यादा कारगर नहीं हैं, क्योंकि किसी अध्ययन में इस बात की पुष्टि नहीं हुई है। लोगों से आग्रह है कि वे जिन इलाकों में प्रदूषण का स्तर ज्यादा रहता है, वहां न जाएं। किसी भी जगह आने-जाने के लिए सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करें। वातावरण को प्रदूषित न करें और ज्यादा से ज्यादा साइकिल ट्रैक बनें। बाहर से आने वाले प्रदूषण पर भी लगाम लगे।
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