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GB रोड का सच, जिस्म बेचने के बाद भी मयस्सर नहीं दो वक्त की रोटी

दिल्ली के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया का सच भयावह है। जिस्म बेचने के बाद भी सेक्स वर्कर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पाती हैं।

By Amit MishraEdited By: Updated: Tue, 03 May 2016 07:28 AM (IST)
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नई दिल्ली [अमित मिश्रा]। जीबी रोड की बदनाम गलियों में जिस्म का सौदा करने के बाद भी यहां रहने वाली सेक्स वर्करों को दो वक्त की रोटी तक मयस्सर नहीं है। ग्राहकों के लिए रातें तो रंगीन होती हैं लेकिन सेक्स वर्करों के लिए रात का मतलब सिर्फ रोटी कमाने का एक मौका।

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सुबह का वक्त आराम करने का होता है, यही वह वक्त होता है जब सेक्स वर्कर रात में कमाए पैसों को बटुआ उलट-पलट कर देखती हैं। इसी वक्त में शायद इन सेक्स वर्करों को यह भी एहसास होता है कि, सब कुछ लुटाने के बाद भी बेरहम रात ने इतना भी नहीं दिया जिससे पेट की आग बुझाई जा सके।

जीबी रोड का हाल यह है कि यहां सेक्स वर्करों की पीड़ा सुनने वाला शायद ही कोई हो। यहां रहने वाली महिलाएं कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं और हालात यह हैं कि उनकी बातसुनने वाला भी कोई नहीं। एक आंकड़े के मुताबिक यहां रहने वाली 30 फीसदी से अधिक महिलाएं त्वचा, शुगर व शारीरिक कमजोरी की रोगी हैं, जबकि 5 फीसदी सेक्स वर्कर HIV+ हैं।

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जीबी रोड का सच

जीबी रोड पर करीब 25 इमारतें हैं। इन 25 इमारतों में लगभग 116 कोठे हैं। सेक्स वर्करों की कोई आधिकारिक संख्या तो नहीं है लेकिन एक अनुमान के मुताबित इन कोठों में लगभग 5000 से ज्यादा सेक्स वर्कर रहती हैं।

कभी अपराध की गढ़ थीं बदनाम गलियां

जीबी रोड की बात करते हुए एक बार फिर इसके इतिहास में झांकते हैं। अंग्रेजों के समय एक वक्त ऐसा भी आया जब यह इलाका क्राइम का गढ़ बन गया था। सूरज के उजाले में तो चहल-पहल नजर आती, लेकिन रात होते की इलाका अपनी पहचान खो देता। सेक्स के साथ क्राइम और बदमाशों के छिपने की लिए मुफीद जगह, पुलिस भी कभी शायद ही इन कोठों में झांकने जाती रही होगी। सेक्स और क्राइम का सिलसिला कई दशकों तक चला, जिंदगी कितनी भी बेरहम हो वक्त बदलता जरूर है, यहां का वक्त भी बदला, क्राइम में लगाम लगी लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें इतजार है समाज में होने वाले बदलाव का।

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सरकार ने की पहल

भले ही वोट बैंक सियासत रही हो लेकिन, साल 2008 में जीबी रोड पर रहने वाली सेक्स वर्करों का नाम मतदाता सूची में जोड़ने का काम शुरू किया गया था। 2008 में तकरीबन 1,500 महिलाओं का मतदाता पहचान पत्र बना और उन्होंने पहली बार 2008 के चुनाव में मतदान भी किया।

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कोर्ट ने दिया जीने का अधिकार

जीबी रोड का मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट पहले ही संविधान की धारा 21 (जीने का अधिकार) के तहत सरकार को सेक्स वर्कर्स को सशक्त करने के लिए योजनाएं बनाने का आदेश दे चुका है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि योजनाओं के तहत सेक्स वर्करों को वोकेशनल ट्रेनिंग देने का प्रबंध किया जाए साथ ही रोजगार देने की भी व्यवस्था होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी कहा था कि यदि वह देह व्यापार पर नियंत्रण नहीं रख सकती तो उसे कानूनी दर्जा दे दिया जाना चाहिए।

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