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जानें, बावरिया गिरोह के लिए वारदात के पहले क्‍या है बकरे का बड़ा रोल

बावरिया गिराेह ने ब्रिटिश कालीन पुलिस के नाक में दम कर रखा था। उस समय वह लूटपाट करता था। काली में अपार आस्‍था रखने वाला गिरोह इसे काम को गैरकानूनी नहीं मानता था।

By Ramesh MishraEdited By: Updated: Fri, 12 Aug 2016 07:37 AM (IST)
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नोएडा [ जेएनएन ] । बुलंदशहर गैंगरेप की घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। गैंगरेप को अंजाम देनेे वालेे बावरिया गिरोह के बारेे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। यह एक संगठित गिरोह है। इसके अपने रीति-रिवाज हैं। इतना ही नहीं अपराध करने के अपने तौर तरीके हैं। कई राज्याें में इनका सशक्त नेटवर्क है। छिपने के ठिकाने हैं। पुलिस ने इनके बारे में जो बताया उससे सुनकर या पढ़कर कोई भी चौंक जाएगा। आइए जानते हैं बावरिया गैंग की हैरतअंगेज बातें।

देशभर में 36 स्थानों पर छिपने का डेरा

बावरिया गिरोह का जाल और विस्तार पूरे देश में है। इस गिराेह ने कई राज्यों में अपने छिपने के ठिकने बना रखेे हैंं। यही कारण है कि गिरोह पुलिस को चकमा देने में आसानी से सफल हो जाता है। गिरोह के सदस्यों को पकड़ना पुलिस के लिए भी एक बड़ी चुनौती रहती है। अपराध को अंजाम देने के बाद गिरोह के सदस्य कहां छिपे होंगे इसका सुराग लगा पाना बहुत मुश्किल होता है।

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जंगल में हैं छिपने के ठिकाने

कई राज्यों के घनों जंगलों में भी इनके छिपने के ठिकाने हैं। इन जंगलों में परिंदा भी पर नहीं मार सकता। ऐसे में पुलिस को इनकी खोज मुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर होती है। यह गिरोह किसी वारदात को अंजाम देने के बाद किसी अन्य राज्य में छिप जाते हैं। गैंग इन जंगलों में वाहनों का इस्तेमाल नहीं करता। जंगलों में भ्रमण के लिए गैंग के सदस्य घोड़ों का इस्तेमाल करते हैं। पुलिस के मुताबिक गैंग इन घोड़ों का इस्तेमाल दो वजहों से करता है। जंगलों के घने होने के कारण वाहनों के बजाय घोड़े ज्यादा सुगम और सहज होते हैं। हालांकि गैंग के पास कितने घोड़े है यह जानकारी पुलिस के पास नहीं है।

सलीम गैंग वारदात से पहले करता था काली की पूजा

इस गैंग की कुलदेवी काली हैं। वारदात के पहले गैंग का मुखिया विधि विधान से काली की पूजा करता है। इस गैंग के सदस्य काली के भक्त हैं। इसलिए किसी भी वारदात के पहले काली की पूजा करते हैं। गैंग के सदस्य जय काली की जय घोष्ा के साथ यह अपने मिशन पर निकलते हैं। इस गिरोह के लोग एक बकरे को अपनी कुलदेवी की मूर्ती के सामने खड़ा कर देते हैं। अगर वह मूर्ती के करीब जाता है तो गिरोह उस दिन वारदात करता है और अगर वह बकरा मूर्ती की तरफ नहीं जाता तो उस दिन को अपशकुन मानते हुए ये किसी भी वारदात को अंजाम नहीं देते। इन्हें एक बकरा बताता है कि लूट करनी है या नहीं।

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बावरिया एक विशेष जनजाति है

बावरिया एक विशेष जनजाति का नाम है। इस समुदाय के लोग खानाबदोश जीवन जीते हैं। यह जनजाति तकरीबन साढ़े तीन सौ साल पहले चित्तौड़गढ़ से विस्थापित हो गई थी। इस समुदाय का मूल मुख्य रूप से भरतपुर (राजस्थान) के पास है। इसके बाद ये लोग देशभर में फैल गए।

ब्रिटिश काल से ही लूटपाट में संलिप्त

इस जनजाति के लोगों का मुख्य काम ही लूटपाट की वारदात को अंजाम देना हैं। बावरिया जनजाति ब्रिटिश काल से ही लूटपाट में संलिप्त थी। इसीलिए इन्हें अपराध संलिप्त जातियों की श्रेणी में रखा गया था। ये जनजाति लूटपाट, चोरी, अवैध शराब की बिक्री जैसे काम करती थी, लेकिन हाल ही में इन्होंने गैंगरेप जैसी वारदातों को भी अंजाम दिया है।

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शरीर में तेल लगाकार देते हैं वारदात को अंजाम

वारदात को अंजाम देने से इस गिरोह के सदस्य अपने पूरे शरीर पर तेल मलते हैं, ताकि पकड़े जाने पर फिसलन की वजह से आसानी से बच निकलें। यह गिरोह जब भी लूट को अंजाम देता है तो सिर्फ नगदी और गहने ही लूटता है बाकी किसी भी चीज को हाथ नहीं लगाता।

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