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अाखिर क्यों-कैसे हुई सुनंदा पुष्कर की मौत, अब नहीं खुलेगा राज!

दो साल से हो रही लीपापोती से अब यह माना जा रहा है कि सुनंदा हत्याकांड से पर्दा उठ पाना बहुत मुश्किल है। उनकी हत्या अब राज ही रह जाएगा। हालांकि, सुनंदा पुष्कर की मौत के एक साल बाद हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज करने और अब नौ माह

By JP YadavEdited By: Updated: Fri, 13 Nov 2015 11:13 AM (IST)
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नई दिल्ली (राकेश कुमार सिंह)। दो साल से हो रही लीपापोती से अब यह माना जा रहा है कि सुनंदा हत्याकांड से पर्दा उठ पाना बहुत मुश्किल है। उनकी हत्या अब राज ही रह जाएगा।

हालांकि, सुनंदा पुष्कर की मौत के एक साल बाद हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज करने और अब नौ माह बाद वाशिंगटन स्थित एफबीआइ लैब से विसरा रिपोर्ट आने के बाद दिल्ली पुलिस ने तीसरी बार इस मामले में जांच शुरू की है, लेकिन नतीजा आने की उम्मीद कम ही है।

सुनंदा की मौत जब दो साल पहले हुई थी तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और दिल्ली पुलिस के मुखिया सुशील कुमार शिंदे थे। मौत के बाद देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मेडिकल बोर्ड से सुनंदा के शव का पोस्टमार्टम कराया गया।

फोरेंसिक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुधीर गुप्ता की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय टीम ने प्रारंभिक रिपोर्ट में मौत का कारण जहर बताया था। कुछ दिन बाद केंद्र में सरकार बदल गई तब डॉ.सुधीर ने कहा था कि उन पर गलत रिपोर्ट के लिए काफी दबाव बनाया गया, लेकिन वे दबाव में नहीं आए।

कई महीने बाद दूसरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण पोलोनियम जहर बताया गया। उस रिपोर्ट को नहीं मानने पर तीसरी बार जब विसरा की रिपोर्ट में बताया गया कि जहर की वजह से ही सुनंदा की मौत हुई।

तब एक साल बाद बीते 1 जनवरी को पुलिस ने सरोजनी नगर थाने में यह कहते हुए हत्या की धारा में मुकदमा दर्ज किया कि अज्ञात व्यक्ति ने सुनंदा को जहर दिया है।

विसरा रिपोर्ट में डॉक्टरों की टीम ने देश की प्रयोगशालाओं पर सवाल उठाया था कि यहां की लैब उतनी विकसित नहीं हैं, जिससे वे जहर के बारे में पता लगा सकें। लिहाजा, पुलिस ने फरवरी में विसरा को जहर के बारे में पता लगाने के लिए अमेरिका की लैब में भेज दिया था।

एफबीआइ की रिपोर्ट से देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स की साख पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल उठता है कि जब एफबीआइ की रिपोर्ट में जहर की पुष्टि नहीं हो सकी तो एम्स ने तीन बार जहर की रिपोर्ट कैसे दी?

सवाल यह भी उठने लगा है कि कहीं एक साल बाद विसरा को जांच के लिए भेजने के कारण रिपोर्ट सही नहीं आई और जहर की पुष्टि नहीं हो सकी? कहीं जानबूझ कर विसरा को जांच के लिए विदेश भेजने में विलंब तो नहीं किया गया? एफबीआइ लैब को रिपोर्ट देने में नौ महीने क्यों लगे?

विश्व के हाइटेक लैब में इतना समय क्यों लगा? रिपोर्ट को अत्यंत गोपनीय रखने के पीछे क्या औचित्य है? कहीं ऐसा तो नहीं रिपोर्ट के उस अंश को ही मीडिया से साझा किया गया, जिससे कोई दिक्कत नहीं हो?

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