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बच्चों के खिलाफ यौन अपराध रोकना चाहते हैं तो, पढ़ें इस कानून की बरीकियां

समाज मेंं बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। हमारे आस-पड़ोस में भी बच्चों पर खतरा हर वक्त मंडराता रहता है। यदि आप अपने बच्चों को यौन अपराध से बचाना चाहते हैं तो इस कानून के बारे में जानकारी बेहद जरूरी है।

By Amit MishraEdited By: Updated: Sun, 12 Jun 2016 10:26 PM (IST)

नई दिल्ली [अमित मिश्रा]। बच्चों के साथ आए दिन यौन अपराधों की खबरें समाज को शर्मसार करती हैं। बच्चों के साथ बढ़ते यौन अपराध को रेकने के लिए सरकार ने साल 2012 में एक विशेष कानून बनाया था। यह कानून बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है। इसी कानून का नाम है 'पास्को एक्ट' ।

क्या है पास्को, और क्या है इसका मतलब
असल में पास्को अंग्रेजी शब्द है। इसका पूर्णकालिक मतलब होता है प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फार्म सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 यानी लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012। इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है। यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।

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अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा

साल 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है।इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इसमें सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है।

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पास्को एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। इसमें दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इसी प्रकार पास्को अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इसके धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

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पास्को कानून की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है। जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।

18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है। यह कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।

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