बड़ा खतराः देश में तेजी से बदल रहा मानसून का स्वरूप, बारिश के दिन भी घटे
रिपोर्ट के मुताबिक देश के तकरीनब सभी शहरों में नमी बढ़ रही है। बादलों के अधिक या कम बरसने के लिए भी यह नमी ही प्रमुख कारक बनती है।
नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। अर्बन हीट आइलैंड की बढ़ती संख्या से दिल्ली-एनसीआर सहित देश भर में मानसून का परंपरागत स्वरूप भी बदल रहा है। साल दर साल 5 से 10 फीसद का बदलाव देखा जा रहा है। बारिश के दिन भी घट गए हैं।
रॉयल मीटियोलॉजिकल सोसायटी की रिसर्च रिपोर्ट ‘द इंडियन मानसून इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’ के मुताबिक हिन्द महासागर काफी ठंडा है, जबकि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता इत्यादि महानगरों सहित देश के तमाम शहरों में कंक्रीट का जंगल बढ़ने से जमीन अब कहीं ज्यादा तपने लगी है।
शहरों की इस गर्मी और महासागर की ठंड से लैंड सी थर्मल कंट्रास्ट अर्थात दोनों के बीच विरोधाभास बढ़ रहा है।रिपोर्ट के मुताबिक इसी विरोधाभास के कारण देश के शहरों में नमी बढ़ रही है। बादलों के अधिक या कम बरसने के लिए भी यह नमी ही प्रमुख कारक बनती है।
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रिपोर्ट बताती है कि भारतीय शहरों में इस स्थिति से साल दर साल मानसून के स्वरूप में 10 फीसद तक का बदलाव देखा जा रहा है। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक मानसून के बदलते ट्रेंड्स में एक तथ्य यह भी सामने आ रहा है कि बारिश वाले दिन भी घट रहे हैं।
पहले जहां जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर यानी 120 दिन में से लगभग 80-90 दिन बारिश होती थी वहीं अब बारिश के दिन सिमटकर 40 से 60 ही रह गए हैं। पिछले 10 साल में जून माह का औसत रिकार्ड 35 मिलीमीटर बारिश का है जबकि इस वर्ष 23 जून तक ही 122.8 मिलीमीटर हो चुकी है।
पिछले 16 साल पर एक नजर
सन 2000 से 2010 के बीच तीन बार मानसून में सामान्य से कम वर्षा हुई जबकि अधिक वर्षा एक बार भी नहीं हुई। 2011 से 2016 के बीच दो बार मानसून की बारिश सामान्य से कम हुई और बेहतर एक बार भी नहीं रही। इस साल यानि 2017 में मानसून सामान्य से बेहतर रहने की संभावना है। जून माह की बारिश गत छह साल का रिकार्ड तोड़ चुकी है।
जल चक्र का प्रभावित होना है वजह
मौसम विज्ञानियों की मानें तो इसके लिए जल चक्र का प्रभावित होना एक बड़ी वजह है। वातावरण में अधिक समय तक नमी रहने के कारण सूरज समुद्र से उतना वाष्पीकरण नहीं कर पाता जितना कि नमी ना होने पर हो पाता है।
यह होते हैं अर्बन हीट आइलैंड
अर्बन हीट आइलैंड शहर के वह हिस्से होते हैं जहां वन क्षेत्र बिल्कुल नहीं है। वाहनों का आवागमन बहुत ज्यादा रहता है। इनका धुंआ प्रदूषण और गर्मी दोनों फैलाता है। इसके अलावा व्यवसायिक इमारतों में लगे एयर कंडीशनर गर्म हवा छोड़ते है।
यहां का तापमान भी शहर के अन्य हिस्सों से कहीं ज्यादा रहता है। यह सही है कि परंपरागत मानसून अब बदल रहा है। मानसून ही नहीं, बढ़िया सर्दी और गर्मी के लिए भी वन क्षेत्र होना बहुत जरूरी है।
प्रकृति का संतुलन वनों से ही कायम रहता है, लेकिन शहरों में सब कुछ इसके उलट ही हो रहा है। इसीलिए जल चक्र एवं मौसम चक्र भी स्थिर नहीं रह पा रहा है। यह स्थिति चिंता का भी विषय है।
यह सही है कि परंपरागत मानसून अब बदल रहा है। मानसून ही नहीं, बढ़िया सर्दी और गर्मी के लिए भी वन क्षेत्र होना बहुत जरूरी है। प्रकृति का संतुलन वनों से ही कायम रहता है, लेकिन शहरों में सब कुछ इसके उलट ही हो रहा है। यही वजह है कि जल चक्र एवं मौसम चक्र भी स्थिर नहीं रह पा रहा है। यह स्थिति चिंता का भी विषय है। -डा. रवींद्र बिशेन, मौसम विज्ञानी तथा प्रभारी, मौसम विज्ञान विभाग, दिल्ली केंद्र।
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