इतिहास के पन्नों के बीच दर्ज है एक और जौहर गाथा, हुमायूं को मिली थी राख
हुमायूं जब तक मेवाड़ पहुंचा तो वहां सब कुछ राख हो गया था। उसने बहादुरशाह की सेना को खदेड़कर मेवाड़ का बदला लिया था।
नई दिल्ली [विकास पोरवाल]। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती के विरोध के बाद जौहर सबसे अधिक सर्च किया जाने वाला कीवर्ड बन चुका है। पद्मावती व चित्तौड़ के इतिहास के साथ ही लोग जौहर का अर्थ और इसका इतिहास भी खोज रहे हैं।
इतिहास के पन्नों के बीच एक और जौहर गाथा दर्ज है। यह महारानी कर्णावती व उनके साथ 13,000 नारियों का जौहर है। इसी के साथ हिंदू पर्व राखी की मान्यता का भी उदाहरण दिया जाता है। हालांकि इस जौहर के सही इतिहास को लेकर हमेशा मतभेद रहा है, साथ ही कई दंतकथाएं भी प्रचलित हैं।
गुजरात के शासक ने की थी चढ़ाई
यह 1530 के आसपास का समय था। आम्बेर के युद्ध में राणा रतनसिंह की वीरगति के बाद उनका भाई विक्रमादित्य मेवाड़ की गद्दी पर बैठा था। गुजरात के शासक बहादुरशाह की मेवाड़ पर तिरछी नजर थी। मौका देखकर उसने चढ़ाई कर दी। वह कई बार मेवाड़ पर हमले की कोशिश कर चुका था, लेकिन हर बार उसे हार का मुंह देखना पड़ा था। इस बार सत्ता बदलने से वह दोगुने सैनिक और उत्साह के साथ आया था। इधर, आम्बेर से युद्ध के कारण मेवाड़ की सैन्य शक्ति कमजोर हो चुकी थी।
रानी कर्णावती ने हुमायूं को भेजी थी राखी
युद्ध के दौरान विक्रमादित्य की मां रानी कर्णावती ने दिल्ली के शासक हुमायूं को रक्षा का वचन देकर राखी भेजी और सहायता मांगी। हुमायूं राखी के महत्व को समझता था क्योंकि वह खुद कई राजपूत राजाओं के यहां पहले शरणार्थी बनकर रह चुका था। राखी मिलते ही हुमायूं मेवाड़ की सहायता के चल निकला। इधर गुजरात की गोलाबारी से मेवाड़ के किले की दीवारें गिरने लगीं।
सरदारों ने किया शाका
8 मार्च 1535 को किले के सभी सरदारों ने सिर में चिता की धूल डालकर शाका किया और अंतिम युद्ध लड़ने के लिए किले के द्वार खोल दिए। इधर कर्णावती 13,000 रानियों के साथ जौहर की तैयारियां करने लगीं। विक्रमादित्य की वीरगति का समाचार पाते ही सभी ने जौहर कर लिया।
इधर हुमायूं जब तक मेवाड़ पहुंचा तो वहां सब कुछ राख हो गया था। उसने बहादुरशाह की सेना को खदेड़कर मेवाड़ का बदला लिया था। इसके बाद से रक्षाबंधन की कथाओं में मेवाड़ की इस कहानी को भी जगह मिल गई।
हुमायूं ने नहीं की थी मदद
विद्वानों के मतानुसार हुमायूं दिल्ली से निकला तो था, लेकिन उसकी खुद भी मेवाड़ पर नजर थी, इसलिए वक्त पर नहीं पहुंचा। कुछ कहते हैं कि बहादुरशाह के कहने पर वह सारंगपुर में ही रुक गया था। इतिहास में कर्णावती को भी कई स्थानों पर कर्मवती व कर्मावती बताया गया है। कहानी कुछ भी हो, लेकिन पद्मावती के अलावा एक और जौहर इतिहास में अपनी जगह बनाए हुए है और भारतीय इतिहास के गौरव के तौर पर जाना जाता है।
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