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'मेट्रो में बनें अलग-अलग कोच, सुविधा के हिसाब से यात्री करें सफर'

मेट्रो में रेल की तरह अलग-अलग कोच बना दिए जाएं। सुविधाएं भी उनमें अलग-अलग ही हों। ऐसे में यात्री अपने हिसाब से कोच का चयन करेंगे।

By Amit MishraEdited By: Updated: Wed, 11 Oct 2017 09:07 PM (IST)
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'मेट्रो में बनें अलग-अलग कोच, सुविधा के हिसाब से यात्री करें सफर'

नई दिल्ली [जेएनएन]। मेट्रो के किराये में वृद्धि पर्यावरण के लिए भी खतरे की घंटी है। यात्रियों के घटने से सड़कों पर निजी वाहन बढ़ेंगे। वाहनों का धुआं प्रदूषण फैलाएगा। चिंताजनक यह भी है कि मेट्रो का किराया बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) के सुझाव को भी दरकिनार कर दिया गया।

डेढ़ लाख यात्री घट चुके हैं

दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण कम करने के लिए जहां एक ओर सड़कों से निजी वाहन कम करने और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की बात हो रही है, वहीं मेट्रो के किराये में पिछली वृद्धि से ही प्रतिदिन औसत डेढ़ लाख यात्री घट चुके हैं। यह सच्चाई स्वयं दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) भी मान चुका है। किराया और बढ़ने से यह आंकड़ा भी बढ़ेगा। मेट्रो से इतने यात्रियों का घटना पर्यावरण को सुधारने की मुहिम पर पानी फेर सकता है। लोग निजी वाहनों की तरफ जाएंगे, इससे सड़कों पर वाहनों का दबाव बढ़ेगा और आबोहवा भी प्रदूषित होगी।

28 से 30 लाख लोग करते हैं सफर 

एक अनुमान के मुताबिक, मेट्रो से रोजाना 28 से 30 लाख लोग सफर करते हैं। इनमें एनसीआर के शहरों गाजियाबाद, साहिबाबाद, नोएडा, गुरुग्राम और फरीदाबाद के निवासी भी शामिल हैं। ज्यादातर लोग निजी वाहनों को पार्किंग में लगाकर फिर मेट्रो की सेवा लेते हैं। वहीं डीटीसी की करीब चार हजार व 1800 क्लस्टर बसों से रोजाना सफर करने वालों की संख्या करीब 40 लाख है। निजी कार से सफर करने वालों की संख्या छह लाख के आसपास, जबकि बाइक से चलने वालों की संख्या करीब 10 लाख है।

महंगा होना चिंता का विषय

मेट्रो किराये में 50 फीसद तक इजाफे के बाद मेट्रो के किराये तथा छोटी कार या दोपहिया वाहन से यात्रा के खर्च में ज्यादा अंतर नहीं रह गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व चेयरमैन पारितोष त्यागी कहते हैं कि मेट्रो की लोकप्रियता उसके सस्ते और बेहतर परिवहन विकल्प के तौर पर ही रही है। इस विकल्प का महंगा होना चिंता का विषय है। स्वाभाविक तौर पर लोग निजी वाहनों को प्राथमिकता देंगे। बसें कम होने और उनके समय पर कहीं न पहुंचा पाने की स्थिति के चलते लोग कार या बाइक का सहारा लेना ज्यादा पसंद कर रहे हैं।

यात्री अपने हिसाब से कोच का चयन करें

इंडियन पॉल्यूशन कंट्रोल एसोसिएशन की उपनिदेशक डॉ. राधा गोयल कहती हैं कि बसें पहले ही कम हैं, मेट्रो से भी यात्री विमुख होने लगेंगे तो दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर निजी वाहनों का दबाव बढ़ेगा, जिससे आबोहवा प्रदूषित होगी। अगर किराया बढ़ाया ही जाए, तो साथ में मेट्रो का ढांचागत विस्तार भी किया जाए। बेहतर तो यह होगा कि मेट्रो में रेल की तरह अलग-अलग कोच बना दिए जाएं। सुविधाएं भी उनमें अलग-अलग ही हों। ऐसे में यात्री अपने हिसाब से कोच का चयन करेंगे। 

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