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देशद्रोह कानून के दुरुपयोग पर एमनेस्टी इंटरनेशनल ने SC में दायर की याचिका

गैरसरकारी संस्था (NGO) कॉमन कॉज ने देशद्रोह के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।

By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 17 Aug 2016 02:36 PM (IST)
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नई दिल्ली (जेएनएन)। तमाम विवादों-आरोपों के बीच देशद्रोह कानून को लेकर ही सवाल उठने लगे हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने देशद्रोह के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि संगठन पर देशद्रोह का मामला दर्ज करना गलत है।

यहां पर बता दें कि बेंगलुरु पुलिस ने एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा आयोजित सेमिनार में कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाने वालों के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला दर्ज किया था।
पुलिस ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं की शिकायत पर एफ़आईआर दर्ज की थी। शिकायत में शनिवार को ''ब्रोकन फैमिलीज़'' के नाम से रखे गए सेमिनार में आयोजकों और भाग लेने वालों पर देशद्रोह के नारे लगाने के आरोप लगाए गए हैं।

NGO कॉमन कॉज भी पहुंचा कोर्ट

वहीं, गैर सरकारी संगठन (NGO) कॉमन कॉज ने भी देशद्रोह के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में मांग रखी गई है कि इस कानून को खत्म किया जाए या फिर इसके प्रावधानों में बदलाव किया जाए। याचिका में कहा गया है पिछले कुछ सालों में देशद्रोह के आरोप की आड़ में कानून का लगातार दुरुपयोग किया जा रहा है। वहीं, देशद्रोह के मामले में फंसे जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष को दिल्ली हाईकोर्ट ने नियमित जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर करने के लिए कहा है।

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यहां पर बता दें कि देशद्रोह के कानून के दुरुपयोग को लेकर काफी समय से बहस जारी है। कानून को जानकारों का मानना है कि अंग्रेजों के वक्त बने इस कानून के समीक्षा का वक्त आ गया है। इस पर उपजे विवाद के बाद अब केंद्र सरकार देशद्रोह कानून में संशोधन का मन बना रही है।

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गौरतलब है कि संविधान के जानकार सोली सोराबजी कह चुके हैं कि सरकार की आलोचना देशद्रोह नहीं है। सोराबजी ने यह भी कहा था कि पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना भी देशद्रोह नहीं है, लेकिन भारत के टुक़ड़े होंगे जैसे नारे देशद्रोह की श्रेणी में आते हैं।

कानून के जानकार मानते हैं कि बिना शिकायत और शुरुआती रिपोर्ट के बाद भी देशद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है, लेकिन देशद्रोह का केस लगाने के लिए हिंसा होना जरूरी नहीं है लेकिन इस धारा को साबित करने के लिए पुलिस को सारे सबूत जुटाने होंगे।

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कब बना था देशद्रोह का कानून

1860 में बना देशद्रोह की धारा आईपीसी 124ए को 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया। जाहिर है अंग्रेजों ने उनकी हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने के लिए यह देशद्रोह का कानून बनाया था।

1898 में मैकॉले दंड संहिता के तहत देशद्रोह का मतलब था, ऐसा कोई भी काम जिससे सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर होता हो लेकिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस परिभाषा में बदलाव किया गया जिसके तहत सिर्फ सरकार के खिलाफ असंतोष जाहिर करने को देशद्रोह नहीं माना जा सकता, बल्कि उसी स्थिति में इसे देशद्रोह माना जाएगा जब इस असंतोष के साथ हिंसा भड़काने और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की भी अपील की जाए।

1962 में केदारनाथ सिंह पर राज्यों सरकार द्वारा लगाए गए देशद्रोह के मामले पर कोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की एक कॉन्स्टीट्यूशन बेंच की ओर से दिए गए आदेश में कहा गया कि देशद्रोही भाषणों और अभिव्य क्ति को सिर्फ तभी दंडित किया जा सकता है, जब उसकी वजह से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर सामाजिक असंतुष्टिकरण बढ़े। हाल के दिनों में देशद्रोह के बढ़ते मामलों के बीच इस कानून की समीक्षा की मांग उठने लगी है।