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सुनंदा पुष्कर को किसने मारा? SIT दो साल बाद भी जवाब पाने में नाकाम

अभिनेत्री जिया खान, आरुषि तलावार की तरह सुनंद पुष्कर हत्याकांड भी मर्डर मिस्ट्री में तब्दील होता जा रहा है। हाइटेक तकनीक से लैस पांच सदस्यीय एसआइटी पौने दो साल बाद भी सुनंदा पुष्कर हत्याकांड से पर्दा नहीं उठा पाई है।

By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 17 Sep 2015 11:43 AM (IST)
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नई दिल्ली (राकेश कुमार सिंह)। अभिनेत्री जिया खान, आरुषि तलावार की तरह सुनंद पुष्कर हत्याकांड भी मर्डर मिस्ट्री में तब्दील होता जा रहा है। हाइटेक तकनीक से लैस पांच सदस्यीय एसआइटी पौने दो साल बाद भी सुनंदा पुष्कर हत्याकांड से पर्दा नहीं उठा पाई है।

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ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या राजनीतिक दबाव के कारण इस केस से पर्दा उठाने में हिलाहवाली हो रही है। क्या यह मामला भी कुछ अन्य मामलों की तरह मर्डर मिस्ट्री ही बना रहेगा।

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बेहद हैरानी की बात है कि फरवरी माह में जब सुनंदा के विसरा को जांच के लिए यूएसए की लैब में भेजा गया था तब पुलिस आयुक्त भीमसेन बस्सी ने दावा किया था कि जांच की रिपोर्ट डेढ़ से दो माह में आ जाएगी। आठ माह बीतने को है, लेकिन अब तक रिपोर्ट नहीं आई है।

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अब तो सवाल यह उठने लगा है कि क्या रिपोर्ट आएगी भी या नहीं। सवालों की श्रृंखला लंबी है, जिसमें क्या विसरा की जांच यूएसए के लैब में हो सकेगी या नहीं। काफी दिन व्यतीत होने के बाद विसरा के नमूने से हत्याकांड के राज का खुलासा हो भी सकेगा या नहीं जैसे सवाल भी शामिल हैं।

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लोगों को यह बात हजम नहीं हो रही है कि यूएसए के हाइटेक लैब में भी सुनंदा के विसरा जांच को आठ महीने से ज्यादा का समय लग जा रहा है। जबकि वहां का लैब हाइटेक होने के कारण ही पुलिस आयुक्त ने विसरा जांच के लिए वहां भेजने का निर्णय लिया था।

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घटना के करीब एक साल बाद पुलिस ने एक जनवरी को हत्या की धारा में मामला दर्ज किया। मुकदमा दर्ज करने के बाद जांच के लिए पांच सदस्यीय एसआइटी बनाई गई।

उससे पहले पोस्टमार्टम व विसरा की रिपोर्ट को लेकर एम्स के फॉरेंसिक विभाग के प्रमुख डॉक्टर सुधीर गुप्ता व वसंत विहार के तत्कालीन एसडीएम आलोक कुमार की रिपोर्ट को लेकर दिल्ली पुलिस उलझती रही।

यहां विसरा की जांच में जहर का पता नहीं चलने पर उसका पता लगाने के लिए विसरा को फरवरी के पहले हफ्ते यूएसए भेजा गया। उसके बाद सुनंदा के पति पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर, उनके बेटे समेत परिवार के सदस्यों, दोस्तों, डॉक्टरों, घरेलू सहायक, चालक व कुछ वरिष्ठ पत्रकारों से भी एसआइटी ने पूछताछ की।

उनके बयान दर्ज किए। यहां तक कि कई का कोर्ट से अनुमति लेने के बाद लाइ डिटेक्टिव भी कराया गया। बावजूद इसके किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़ा कर रहा है।

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